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स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खुलने पर तन गई मंत्री साहब की भौंहे, जानिए क्या कहा
फतेहपुर। कोरोना की मार ने हिमाचल (Himachal) को भी गहरे जख्म दिए हैं। लेकिन आज भी प्रदेश के अस्पतालों की बेबसी नहीं बदली, बदहवासी नहीं बदली और नहीं बदला तो वह सरकारी रवैया जो कान में मोम डालकर सोया हुआ है, खुद स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा संभाले डॉ राजीव सैजल (Dr. Rajiv Saijal) दिन में सपने देखने में मशगूल है।
जब पत्रकारों ने हिमाचल में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर सवाल किया, तो उन्होंने कहा कि अगर बखान किया तो पूरा दिन कम पर जाएगा। इसके बाद जब मीडिया कर्मियों ने एक-एक करके हिमाचल के स्वास्थ्य सुविधाओं के पोल खोलने शुरू की, तो मंत्री साहब के भौहें तन गई। सवाल का जवाब देने के बजाए, उल्टे ही मीडिया से सवाल कर दिया कि यह सिर्फ उनके कार्यकाल में हुआ है या पिछली सरकार की देन है।
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मीडिया का जवाब सुन ढीले पड़े स्वास्थ्य मंत्री
मंत्री जी के इस सवाल पर मीडिया कर्मियों ने उन्हें याद दिलाया कि हुजूर जनता ने वर्तमान में आपको चुनकर सत्ता में बिठाया है। आपकी जवाबदेही पूर्ववर्ती सरकार के मुकाबले कहीं अधिक है। तब जाकर स्वास्थ्य मंत्री महोदय की अकड़ थोड़ी ढ़ीली पड़ी। उन्होंने कहा कि वे मानते हैं कि कहीं थोड़ी बहुत कमियां रह गई हैं। उनको जल्द दुरूस्त कर दिया जाएगा। इसके बाद वे मीडिया से कन्नी काट गए।
हर गंभीर मरीज को करना पड़ता है रेफर
हिमाचल में स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत यह है कि अगर कोई क्रिटिकल कंडीशन में पहुंच गया तो सूबे का एक भी अस्पताल ऐसा नहीं है। जहां मरीजों का इलाज हो, मरीज को डॉक्टर फौरन पीजीआई चंडीगढ़ रेफर करते हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत तो और भी बुरी है। मंत्री राजीव सैजल जहां आज यह बात कर रहे थे। उस फतेहपुर की हालत तो यह है कि अगर कोई टेस्ट करवाना पड़ जाए, तो मरीजों और तीमारदारों को दिन में तारे दिखने लगते हैं। उन्हें या तो टांडा आना पड़ता है। यहा फिर पड़ोसी राज्य पंजाब जाकर अपना इलाज कराना पड़ा है।
हर जिले आती है चरमराई हुई स्वास्थ्य व्यवस्था की तस्वीर
वहीं, स्वास्थ्य सुविधाओं की चरमराई हुई यह हाल सिर्फ कांगड़ा जिले तक सीमित नहीं है। सूबे के सभी जिलों से आए दिन ऐसी तस्वीर देखने को मिल जाती है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़े-बड़े दावे हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की सैंज घाटी में बेईमानी दिखते हैं। सैंज घाटी की दुर्गम पंचायत गाड़ापारली में सुविधाओं का अभाव है।
यहां कोई व्यक्ति बीमार हो जाए तो उसे पालकी या कुर्सी पर उठाकर अस्पताल तक पहुंचाना पड़ता है। ऐसे एक दो नहीं बल्कि बीते दो महीने में चार मामले सामने आ चुके हैं। बीते शनिवार को भी मरीज को कुर्सी पर बिठाकर सड़क तक लाए। उन्हें मरीज को गांव से निहारणी तक उठाकर लाने में छह से सात घंटे लग गए। यह दूरी करीब दस किलोमीटर है। इसके बाद मरीज को सीएचसी सैंज में उपचार दिया गया। जबकि कुछ दिनों पहले सैंज घाटी की एक प्रसूता का प्रसव बीच रास्ते में करवाना पड़ा था।
चंबा ट्रांसफर करने पर डॉक्टरों के बागी तेवर
हिमाचल प्रदेश के 28 सरकारी चिकित्सकों ने सरकार को बागी तेवर दिखाए हैं। उन्हें आईजीएमसी शिमला और कांगड़ा स्थित टांडा मेडिकल कॉलेज से चंबा मेडिकल कॉलेज के लिए ट्रांसफर किया गया था, लेकिन उन्होंने ड्यूटी ज्वाइन नहीं की। 6 सितंबर को 28 चिकित्सकों की चंबा में नियुक्ति के आदेश हुए। चिकित्सक रोटेशन के आधार पर भेजे गए हैं। उनकी नियुक्ति अस्थाई तौर पर हुई।
उन्हें 15 सितंबर को कार्यभार संभालने के आदेश दिए गए। लेकिन चिकित्सकों ने हिमाचल सरकार के विशेष स्वास्थ्य सचिव के आदेशों को ठेंगा दिखाते हुए ज्वॉइन ही नहीं किया। ऐसे में सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठते हैं कि डॉक्टर सरकार की बात ही नहीं मान रहे। इतना ही नहीं यहां पर एमबीबीएस की पढ़ाई भी उधार की फैकल्टी से चल रही है। चंबा मेडिकल कॉलेज में 55 फीसदी पद रिक्त हैं, कॉलेज सिर्फ 45% चिकित्सकों के सहारे चल रहा है।
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