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हिमाचल हाईकोर्ट ने खारिज की स्थानांतरण को चुनौती देने वाली याचिका, लगाई 30 हजार कॉस्ट
Last Updated on September 16, 2022 by Vishal Rana
शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने स्थानांतरण को चुनौती देने वाली याचिका (Petition) को 30,000 रुपये कॉस्ट के साथ खारिज (Dismissed) कर दिया। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने यह पाया कि प्रार्थी स्वयं भी डीओ नोट (DO Note) की लाभार्थी रही है और उसने इसी आधार पर अपने स्थानांतरण को चुनौती दी है। यही नहीं वह वर्ष 1990 से अपनी पहली नियुक्ति की तारीख से अब तक चंबा जिला में ही सेवाएं दे रही है। जब 17 अगस्त, 2022 को उसका तबादला (Transfer) पशुपालन विभाग हिमाचल प्रदेश शिमला के लिए किया गया तो उसने उस स्थानांतरण आदेश को याचिका के माध्यम से यह कहकर चुनौती दे डाली कि उसका स्थानांतरण आदेश डीओ नोट के आधार पर किया गया है। हालांकि इस तरह का रिकॉर्ड कोर्ट के समक्ष पेश होने पर प्रार्थी की ओर से याचिका को वापस लेने की प्रार्थना की गई। लेकिन न्यायालय ने प्रार्थी के रिकॉर्ड के दृष्टिगत याचिका को 30,000 रुपये कॉस्ट के साथ वापस लेने की अनुमति प्रदान की। 30000 रुपये में से 15000 रुपये निजी तौर पर बनाएं प्रतिवादी को देने के आदेश जारी किए व 15000 रुपये हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन में जमा करवाने के आदेश पारित किए।
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आरोपी कर्मचारी के खिलाफ मनपसंद जांच रिपोर्ट ना होने पर दोबारा जांच के आदेश गैरकानूनी
विभागीय कार्यवाही के दौरान जांच रिपोर्ट मनपसंद (Favorite Investigation Report) न होना होने के कारण आरोपी कर्मचारी (Accused Employee) के खिलाफ नए सिरे से जांच करने के आदेश गैरकानूनी। अनुसाशनात्मक प्राधिकारी के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं कि जांच रिपोर्ट मिलने के बाद वह नए सिरे से जांच के आदेश जारी करे। प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने स्पष्ट किया कि कानून के तहत आरोपी कर्मचारी के खिलाफ वास्तव में एक ही जांच की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा भी हो सकता है कि किसी मामले में जांच सही तरीके से न हुई हो क्योंकि जांच में कोई गंभीर गलती उत्पन्न हो गई हो या कोई महत्वपूर्ण गवाह जांच के समय उपलब्ध न हुए हो या उनकी गवाही किसी कारण से दर्ज न की जा सकी हो तो अनुसाशनात्मक प्राधिकारी जांच अधिकारी को आगामी गवाही दर्ज करने के आदेश दे सकता है। परंतु किसी भी सूरत में वह जांच रिपोर्ट को मनपसंद न होने पर रद्द कर नए सिरे से जांच करने के आदेश नही दे सकता।
मामले के अनुसार कृष्णु राम को साल 2010 में कथित अनियमितताओं के लिए निलंबित किया गया था। उस समय वह शिक्षा बोर्ड के सेल बुक डिपो बिलासपुर में बतौर मैनेजर तैनात था। मामले की विभागीय जांच की गई और प्रार्थी के खिलाफ जांच रिपोर्ट अनुसाशनात्मक प्राधिकारी को सौंपी गई। 5 जनवरी 2012 को अनुसाशनात्मक प्राधिकारी ने मामले की नए सिरे से जांच करने के आदेश जारी कर दिए। नई जांच का कारण बताते हुए अनुसाशनात्मक प्राधिकारी ने कहा कि एक तो जांच अधिकारी दस्तावेज समझने में नाकाम रहा दूसरा जांच अधिकारी प्रत्येक आरोप के संबंध में साक्ष्य पर अपना मूल्यांकन करने में विफल रहा और तीसरा जांच अधिकारी प्रत्येक आरोप पर अपने निष्कर्ष पर पहुंचने का कारण बताने में भी असफल रहा। कोर्ट ने इन कारणों को कानून के विपरीत पाते हुए कहा कि कानून में केवल एक ही जांच का प्रावधान है और विभाग को पेश की गई जांच रिपोर्ट पर ही आरोपी के खिलाफ आगे बढ़ना होता है।
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