- Advertisement -
शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने 7 दिसंबर 2021 को आयोजित वॉक इन इंटरव्यू (Walk in Interview) के तहत चयनित प्रार्थी डॉक्टरों को 2 सप्ताह के भीतर नियुक्ति पत्र (Appointment Letters) जारी करने आदेश दिए हैं। न्यायाधीश सबीना और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने कहा कि सरकार मनमानी नहीं कर सकती। सरकार बिना किसी ठोस कारण के पात्र उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र जारी करने से इंकार भी नहीं कर सकती। मामले के अनुसार 29 नवंबर 2021 को स्वास्थ्य विभाग (Health Department) ने कांट्रेक्ट आधार पर वॉक इन इंटरव्यू के माध्यम से 81 डॉक्टरों के पद भरने के लिए आवेदन आमंत्रित किए। प्रार्थी डॉक्टरों समेत कुल 450 डॉक्टरों ने इस प्रक्रिया में भाग लिया। साक्षात्कार के बाद 76 डॉक्टरों की मेरिट लिस्ट तैयार की गई।
प्रार्थियों के नाम भी उस लिस्ट में शामिल थे। परंतु विभाग ने 1 फरवरी, 2022 को केवल 43 डॉक्टरों को ही नियुक्ति पत्र जारी किए। प्रार्थियों का नम्बर 43 डॉक्टरों के बाद था इसलिए उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं दिए गए। सरकार का कहना था कि विभाग में 114 डॉक्टर सरप्लस है। कोर्ट ने पाया कि विभाग और मेडिकल कॉलेजों (Medical College) में डॉक्टरों का कैडर अलग अलग है। स्वास्थ्य मंत्री ने भी विधान सभा में 81 डॉक्टरों के पद रिक्त होने की बात करते हुए शीघ्र ही इन्हें भरने की बात की थी। इसलिए डॉक्टरों के सरप्लस होने की बात गलत पाई गई। इतना ही नहीं सीएम ने भी कैबिनेट मीटिंग में कहा था कि प्रदेश के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए 500 डॉक्टरों के पद भरे जायेंगे।
11 अप्रैल, 2022 को 114 डॉक्टरों के पद स्वीकृत किए गए, जबकि 30 सितंबर, 2022 को 300 डॉक्टरों के पद सृजित किए गए। प्रार्थियों का आरोप था कि सरकार का यह कहना गलत है कि 81 पदों के खिलाफ केवल 43 पद ही भरे जाने थे। क्योंकि 21 जुलाई, 2022 को दो सालों के लिए 106 अस्थाई डॉक्टरों की भर्तियां की गई। कोर्ट (Court) ने प्रार्थियों की दलीलों से सहमति जताते हुए सरकार को आदेश दिए कि दो सप्ताह के भीतर प्रार्थियों को नियुक्ति पत्र जारी करे और 30 दिसंबर को अनुपालना रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष रखे।
शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट ने यह व्यवस्था दी कि एक पद के लिए पदोन्नति के विकल्प पर विफल होने के पश्चात दूसरे पद के लिए विकल्प देना कानूनी तौर पर न्यायोचित नहीं है। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने वीपी राणा की याचिका को स्वीकार करते हुए उसे वर्ष 2002 से रोजगार अधिकारी के पद पर पदोन्नति देने के आदेश जारी कर दिए। हाईकोर्ट ने मामले से जुड़े तथ्यों का अवलोकन करने के पश्चात यह पाया कि प्रार्थी को वर्ष 2002 से रोजगार अधिकारी के पद पर पदोन्नति के लाभ लेने से वंचित होना पड़ा। क्योंकि प्रार्थी सांख्यिकीय सहायक के लिए पदोन्नति का केवल एक ही चैनल था और दूसरी ओर निजी तौर पर प्रतिवादी बनाये वरिष्ठ सहायक मोहिंदर सिंह के लिए पदोन्नति के दो चैनल थे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि श्रम एवं रोजगार विभाग द्वारा वरिष्ठ सहायकों को पदोन्नति के लिए एक से अधिक अवसर देने के अपने विकल्पों का प्रयोग करने देना मनमाना है और कानून की नजर में न्यायोचित नहीं है। चुनाव का सिद्धांत, पहली बार में, एक कर्मचारी पर यह चुनाव करने का दायित्व डालता है कि क्या वह पदोन्नति के लिए ‘ए’ या स्ट्रीम ‘बी’ का विकल्प चुनना चाहता है। कोर्ट ने कहा कि एक बार, उसने उस विशेष विकल्प का प्रयोग किया है, तो उसे बाद में उसके उस विकल्प से पीछे हटने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
- Advertisement -