-
Advertisement
हिमाचल High Court की बड़ी टिप्पणी- अनुशासन हर कर्मचारी के लिए अनिवार्य…
Last Updated on August 16, 2020 by Vishal Rana
शिमला। सरकारी कर्मचारी (Government Employee) कानून के प्रावधानों व विभागीय नियमों तथा निर्देशों से नियंत्रित होते हैं। अनुशासन हर कर्मचारी के लिए अनिवार्य है और यदि कर्मचारी खुद को अनुशासन में रखने के लिए तैयार नहीं हैं तो जाहिर है, वह ना केवल अपने नियोक्ता के क्रोध को आमंत्रित करता है, बल्कि कम से कम विभागीय रूप से कार्रवाई के लिए भी उत्तरदाई होता है। हाईकोर्ट (High Court) के न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ ने यह टिप्पणी असिस्टेंट कमिश्नर टैक्सेज एंड एक्साइज (Assistant Commissioner Taxes and Excise) के मामले में की जो 6 जनवरी 2019 से 7 मार्च 2019 तक की अवधि का अर्जित अवकाश स्वीकार करने बाबत राज्य सरकार को निर्देश दिए जाने की गुहार लगा रही थी। न्यायालय ने आगे कहा कि हर एक कर्मचारी को अपने नियोक्ता के प्रति वफादार व अनुशासित होना चाहिए, जिसमें प्रार्थी विफल रही।
ये भी पढ़ें: PTA शिक्षक नियमितीकरण मामलाः हाईकोर्ट का सरकार से जवाब-तलब
ये भी पढ़ें: हिमाचल में SMC अध्यापकों की नियुक्तियों को लेकर High Court का बड़ा फैसला
याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार 2 जनवरी 2019 को प्रार्थी का तबादला बतौर असिस्टेंट कमिश्नर स्टेट टैक्स एंड एक्साइज नूरपुर के लिए किया गया था। प्रार्थी ने नूरपुर (Nurpur) ज्वाइन करने की बजाए 6 जनवरी 2019 से 7 मार्च 2019 तक अर्जित अवकाश (Earned Leave) बढ़ाने की राज्य सरकार से प्रार्थना की थी। वह 26 दिसंबर 2018 से 5 जनवरी 2019 तक पहले ही अर्जित अवकाश पर चल रही थी। राज्य सरकार की ओर से रखे पक्ष के अनुसार प्रार्थी को 26 दिसंबर 2018 से 7 मार्च 2019 तक अर्जित अवकाश स्वीकृत करवाने बाबत सक्षम अधिकारी को रिवाइज्ड रिक्वेस्ट लेटर सबमिट करना चाहिए था, जिसे करने में प्रार्थी विफल रही। उसके खिलाफ यह भी शिकायत थी कि जब उसे सिरमौर व कांगड़ा (Kangra) में तैनाती दी गई थी, तब भी वह ड्यूटी से गैर हाजिर रही और उसने अपने उच्च अधिकारियों के आदेशों को नहीं माना। जानबूझकर ड्यूटी से गैरहाजिर रहने के लिए उसे विभाग की ओर से कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) भी जारी किया गया था। फिर भी वह अपने को बदलने में विफल रही।
न्यायालय ने कहा कि एक कर्मचारी से ना केवल अपेक्षा की जाती है, बल्कि उसे कानून द्वारा बाध्य किया जाता है कि वह कार्यलय में शिष्टाचार व अनुशासन बनाए रखे। कोर्ट ने पाया कि इस मामले में प्रार्थी के पास कोई वैद्य कारण नहीं था कि वह किस कारणवश ड्यूटी के लिए रिपोर्ट नहीं कर सकी। न्यायालय ने फैसले में 17 वीं शताब्दी में कहे चर्चमैन थॉमस फुलर के अमर शब्दों का उल्लेख करते हुए लिखा ‘तुम चाहे कितने ऊंचे बनो, कानून तुमसे ऊपर है।