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बुजुर्गों के कल्याण के लिए बने कानून को लागू ना किए जाने पर Central-State Govt से एक हफ्ते में मांगा जवाब
Last Updated on May 26, 2020 by saroj patrwal
शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court)ने केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2007 में बुजुर्गों के कल्याण (Welfare of old people) के लिए बनाए गए कानून (law)को प्रदेश में लागू ना किए जाने पर केंद्र और प्रदेश सरकार से एक हफ्ते में जवाब (Reply)मांगा है। हाईकोर्ट ने संबंधित पक्षों से जवाब तलब किया है कि इस बारे में क्या कदम उठाए जा रहे हैं। न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति चंद्रभूषण बारोवालिया की खंडपीठ ने अधिवक्ता अर्जुन लाल और श्रद्धा करोल के माध्यम से मानवाधिकारों के लिए कार्यरत संस्था उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव (Ajay Srivastava)द्वारा दायर याचिका पर यह कदम उठाया।
13 वर्ष बीत जाने के बावजूद कुछ नहीं हुआ
याचिका में कहा गया है कि संसद में अभिभावक एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 बनाया था। इसमें बुजुर्गों के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं हैं। लेकिन 13 वर्ष बीत जाने के बावजूद प्रदेश सरकार ने इसे लागू नहीं किया। इससे बुजुर्गों को अनेक प्रकार के लाभों से वंचित होना पड़ रहा है। यह भी कहा गया है कि वैश्विक महामारी कोविड-19 (Covid-19) के कारण केंद्र और प्रदेश सरकारों द्वारा बुजुर्गों की आवाजाही पर लगाए गए प्रतिबंधों के समय में उन्हें वर्ष 2007 के केंद्रीय कानून का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
2007 के केंद्रीय कानून को लागू करने का आग्रह
अधिवक्ता अर्जुन लाल और श्रद्धा करोल ने कोर्ट को बताया कि प्रदेश सरकार ने वर्ष 2001 में अभिभावक एवं आश्रित भरण पोषण कानून बनाया था जो काफी पुराना हो चुका है। उससे बेहतर और कहीं ज्यादा व्यापक 2007 में बना केंद्रीय कानून है। इसलिए याचिकाकर्ता अजय श्रीवास्तव ने कोर्ट से प्रार्थना की है कि वर्ष 2001 के प्रदेश सरकार (State government) के कानून को रद करके उसके स्थान पर वर्ष 2007 के केंद्रीय कानून को तुरंत लागू किया जाए।