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किसी जादू से कम नहीं बिदरी कलाः मिट्टी चखकर जान लेते हैं कारीगर इसकी खासियत
मिट्टी खाना सेहत के लिए ठीक नहीं माना जाता। इससे सेहत से जुड़ी कई तरह की समस्याएं पैदा हो जाती है। खास तौर पर बच्चों को मिट्टी खाने से बचाने के लिए परिजनों को कई जतन करने पड़ते हैं। ईरान में एक ऐसा आइलैंड है जिसका नाम होरमूज है। कहते हैं कि इस आइलैंड की मिट्टी इतनी स्वादिष्ट है कि लोग उसे चाव से खाते हैं। ये तो भारत से बाहर के देश की बात। अब अपने देश की बात हो जाए। हमारे देश में एक जगह ऐसी है यहां पर मिट्टी के बर्तन जम कर बनते हैं और इनको बनाने वाले कलाकार पहले मिट्टी चखते हैं। वे मिट्टी को चखकर ही जान लेते हैं कि ये उनके काम की है भी या नहीं।
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कर्नाटक की सैंकड़ों वर्ष पुरानी है बिदरी कला
आप ने कर्नाटक की सैंकड़ों वर्ष पुरानी बिदरी कला के बारे में तो सुना होगा। बिदरी वेयर कर्नाटक की प्रसिद्ध मेटल हैंडीक्राफ्ट है। जिसकी उत्पत्ति 14वीं शताब्दी से मानी जाती है। इस कला का नाम बीदर क्षेत्र पर ही रखा गया है।इस कला को तराशने में जो मिट्टी इस्तेमाल होती है वो देश भर में सिर्फ एक ही स्थान पर मिलती है। मिट्टी की खासियत यह है कि यह ऑक्सीडाइजिंग गुणों से भरपूर होती है। हैंडीक्राफ्ट को जिस मिट्टी में डुबोया जाता है उस मिट्टी की खासियत ही इस कला की असली पहचान है।
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बिदर फोर्ट में मिलती है यह मिट्टी
शिल्पकार सर्वप्रथम जस्ता-लोहा, तांबा या किसी भी धातु से बना कोई बर्तन लेते हैं, फिर इस पर जिंक से पॉलिश कर तैयार किया जाता है। इसके बाद चांदी या सोने के तार से इस पर हाथों से डिजाइन बनाई जाती है। फिर शुरु होता है असली जादू। इसके बाद इसे मिट्टी से बने घोल में डुबोया जाता है, जिसकी पहचान चखकर की जाती है। बिदरी मेटल वर्क को जिस मिट्टी में डुबोया जाता है वह बिदर फोर्ट में मिलती है। यह बिल्कुल सामान्य दिखती है। इस मिट्टी को केवल चखकर ही पहचाना जाता है।
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रासायनिक प्रक्रिया के कारण धातु का रंग काला हो जाता है। यानि बर्तन काले रंग का हो जाता है और जो इस पर गोल्ड या सिल्वर तार का वर्क किया जाता है ,वह और ज्यादा उभरकर आता है। यह पूरी प्रक्रिया किसी जादू से कम नहीं है।