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पितरों का यज्ञः कैसे करें श्राद्ध , किन बातों का रखें खास ख्याल- यहां पढ़े
देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितृ शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। इस विषय में शास्त्र ने विविध नियम बनाए हैं। शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध पक्ष में दिवंगत पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान यज्ञ और भोजन का विशेष प्रावधान बताया गया है। श्राद्ध को ही पितरों का यज्ञ कहते हैं। मनुष्य मात्र के लिए शास्त्रों में तीन ऋण विशेष बताये गये है। देव ऋण, ऋषि ऋण व पितृ ऋण। इनमें से श्राद्ध की क्रिया से पितरों का पितृ ऋण उतारा जाता है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि श्राद्ध से तृप्त होकर पितृ ऋण समस्त कामनाओं को तृप्त करते है।
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श्राद्ध विधि: सुबह उठकर स्नान कर देवस्थान व पितृस्थान को गाय के गोबर से लीपकर व गंगा जल से पवित्र करें। घर-आंगन में रंगोली बनाएं। महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं। श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद, भतीजा आदि) को न्योता देकर बुलाएं। ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि कराएं। पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही,… घी एवं खीर अर्पित करें। गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से 4 ग्रास निकालें। ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं, मुखशुद्धि, वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें। ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें और गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें।
पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामथ्र्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है। जो पितृपक्ष में पंद्रह दिनों तक श्राद्ध-तर्पण नहीं कर पाते उन्हें सर्वपितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन श्राद्ध कर देना चाहिए। ध्यान रखें कि इस दिन सभी पितर पिंडदान व श्राद्ध की आशा से आते हैं। यदि उन्हें पिंडदान या तिलांजलि नहीं मिलती तो वे अप्रसन्न होकर चले जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को पितृदोष लगता है और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
कुछ बातों का अवश्य ध्यान रखें:
-दूसरे के घर में या निवास पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
– ब्राह्मण द्वारा पूजा कर्म करवाए जाएं अन्यथा श्राद्ध के संपूर्ण फल नष्ट हो जाते हैं।
– सर्वप्रथम अग्नि को भोग अर्पित किया जाता है। उसके बाद पितरों के निमित्त पिंडदान किया जाता है।
– श्राद्ध रात्रि में न करें। दोनों संध्या और पूर्वान्ह में भी श्राद्ध करना वर्जित है।
– शास्त्रों अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रमास की पूर्णिमा से आरंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में पितरों को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। कहते हैं कि श्राद्ध के इन दिनों में पितृ अपने घर आते हैं। इसलिए उनकी परिजनों को उनका तर्पण करना चाहिए।
– इन 15 दिनों में कोई शुभ कार्य जैसे, गृह प्रवेश, कानछेदन, मुंडन, शादी, विवाह नहीं कराए जाते। इसके साथ ही इन दिनों में न कोई नया कपड़ा खरीदा जाता और न ही पहना जाता है। पितृ पक्ष में लोग अपने पितरों के तर्पण के लिए पिंडदान, हवन भी कराते हैं।
– श्राद्ध के दिन तर्पण करना बहुत जरूरी है। तर्पण 11 बजे से 12 बजे के बीच दोपहर में करना चाहिए। काला तिल, गंगाजल, तुलसी और ताम्रपत्र से तर्पण करना चाहिए। इस दिन पितरों की पसंद का भोजन बनवाना चाहिए। गाय और कौए के लिए ग्रास निकालना चाहिए। इसके अलावा बह्मण को दान दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, गुड़, चांदी, पैसा, नमक और फल का दान करना चाहिए।
– जिन पितरों के देहावसान की तारीख नहीं पता उनका तर्पण : आश्विन अमावस्या को
– किसी पितृ की अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका तर्पण : चतुर्दशी तिथि को
– पिता का श्राद्ध, जिनकी तिथि मालूम नहीं : अष्टमी
– माता का श्राद्ध, जिनकी तिथि मालूम नहीं : नवमी तिथि