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मां दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन होगा आज, कैसे होती है पूजा व सिंदूर खेला यहां पढ़ें
नवरात्र में नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है और इस के बाद मां प्रतिमा विसर्जन किया जाता है। इसी के साथ नवरात्र की समाप्ति भी होती है। विसर्जन नदी या सरोवर में करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन को विजयादशमी, सिंदूर उत्सव या सिंदूर खेला के नाम से भी जाना जाता है। सिंदूर खेला बंगाल में विशेष रूप से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से मां की अराधना करने वालों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।इस साल विजयादशमी का त्योहार कुछ हिस्सों में 25 अक्टूबर (रविवार) को मनाया जा रहा है। हालांकि कुछ हिस्सों जैसे पश्चिम बंगाल में विजयादशमी और दुर्गा प्रतिमा विसर्जन 26 अक्टूबर को भी मनाया जाएगा। 26 अक्टूबर को मां दुर्गा के विसर्जन का समय
दुर्गा विसर्जन तिथि – 26 अक्टूबर 2020
शुभ मुहूर्त – 06:33 से 08:46 तक
पूजा और भोग अनुष्ठान
विसर्जन के दिन अनुष्ठान की शुरुआत महाआरती से होती है, और देवी मां को शीतला भोग अर्पित किया जाता है, जिसमें कोचुर शाक, पंता भात और इलिश माछ को शामिल किया जाता है। पूजा के बाद प्रसाद बांटा जाता है। पूजा में एक दर्पण को देवी के ठीक सामने रखा जाता है और भक्त देवी दुर्गा के चरणों की एक झलक पाने के लिए दर्पण में देखते हैं। मान्यता है कि जिसे दर्पण में मां दुर्गा के चरण दिख जाते हैं उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
देवी बोरन की बारी
पूजा के बाद देवी बोरन किया जाता है, जहां विवाहित महिलाएं देवी को अंतिम अलविदा कहने के लिए कतार में खड़ी होती हैं। उनकी बोरान थली में सुपारी, पान का पत्ता, सिंदूर, आलता, अगरबत्ती और मिठाइयां होती हैं। वे अपने दोनों हाथों में पान का पत्ता और सुपारी लेती हैं और मां के चेहरे को पोंछती हैं। इसके बाद मां को सिंदूर लगाया जाता है। शाखां और पोला (लाल और सफेद चूडि़यां) पहनाकर मां को विदाई दी जाती हैं। मिठाई और पान-सुपारी चढ़ाया जाता है. आंखों में आंसू लिए हुए मां को विदाई दी जाती है।
सिंदूर खेला
जिस दिन मां दुर्गा को विदा किया जाता है यानी जिस दिन प्रतिमा विसर्जन के लिए ले जाया जाता है, उस दिन बंगाल में सिंदूर खेला उत्सव मनाया जाता है। दशमी पर सिंदूर खेला की पंरपरा सदियों से चली आ रही है। यह विदाई का उत्सव होता है। इस दिन विजयदशमी भी होती है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पान के पत्ते से मां दुर्गा को सिंदूरअर्पित करती हैं। उसके बाद एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और उत्सव मनाती हैं। एक दूसरे के सुहाग की लंबी आयु की शुभकामनाएं भी देती हैं। कहा जाता है कि मां दुर्गा मायके से विदा होकर जब ससुराल जाती हैं तो सिंदूर से उनकी मांग भरी जाती है. साथ ही दुर्गा मां को पान और मिठाई भी खिलाई जाती हैं। इसी मौके पर महिलाएं एक दूसरे की मांग में सिंदूर लगाती हैं। कई महिलाएं चेहरे पर भी सिंदूर लगाती हैं। विजयदशमी या मां दुर्गा विसर्जन के दिन महिलाएं एक-दूसरे के साथ मां दुर्गा के लगाए सिंदूर से सिंदूर खेला खेलती हैं। सिंदूर विवाहित महिलाओं की निशानी है और इस अनुष्ठान के जरिए महिलाएं एक दूसरे के लिए सुखद और सौभाग्य से भरे वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।
मायके में 10 दिन रूकती हैं मां दुर्गा
ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा साल में एक बार अपने मायके आती हैं और वह अपने मायके में 10 दिन रूकती हैं, जिसको दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। सिंदूर खेला कि रस्म पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में पहली बार शुरू हुई थी। लगभग 450 साल पहले वहां की महिलाओं ने मां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिकेय और भगवान गणेश की पूजा के बाद उनके विसर्जन से पूर्व उनका श्रृंगार किया और मीठे व्यंजनों का भोग लगाया। खुद भी सोलह श्रृंगार किया। इसके बाद मां को लगाए सिंदूर से अपनी और दूसरी विवाहित महिलाओं की मांग भरी। ऐसी मान्यता थी कि भगवान इससे प्रसन्न होकर उन्हें सौभाग्य का वरदान देंगे और उनके लिए स्वर्ग का मार्ग बनाएंगे।