-
Advertisement
स्कूल रिओपनिंग: बड़ा गैप करना है फिल, लाखों छात्र भूल गए मैथ्स और लैंग्वेज स्किल
Last Updated on February 6, 2022 by sintu kumar
देशभर में स्कूल रिओपनिंग की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। 9 राज्यों में अभी भी स्कूल खोले जाने बाकी है। दिल्ली में सीनियर छात्रों के लिए स्कूल 7 फरवरी से खुलने जा रहे हैं। हालांकि, यह कोई सामान्य स्कूल रिओपनिंग (Schools Re-Opening) की प्रक्रिया नहीं है। दरअसल, लंबे समय तक और बार बार स्कूल बंद किए जाने के कारण लाखों छात्र बेसिक मैथ्स, लैंग्वेज कोर्सिस के फंडामेंटल स्किल्स, विज्ञान और पढ़ने की निरंतरता तक भूल चुके हैं। यानी स्कूलों को नए सिरे से शुरूआत करनी होगी और एक बड़ा गैप भरना होगा।
यह भी पढ़ें:हिमाचल: कॉलेजों में लौटेगी रौनक, सात से लगेंगी रेगुलर कक्षाएं, मार्च में होंगे पेपर
प्रसिद्ध शिक्षाविद सीएस कांडपाल के अनुसार, यह स्कूल रिओपनिंग कोई एक सामान्य घटना व साधारण बात नहीं है। स्कूलों को अब एक नई शुरूआत करनी होगी। वे वहां से शुरू नहीं कर सकते जहां से उन्होंने छोड़ा था, क्योंकि बार-बार हुई स्कूल बंदी के कारण छात्र अपने पुराने स्तर से काफी पीछे जा चुके हैं। ऐसे में अगर स्कूलों ने छात्रों का आकलन पुरानी प्रक्रिया के आधार पर किया या उसी स्तर से पढ़ाई शुरू की तो डर है कि देश भर में लाखों छात्र इस स्कूली शिक्षा सिस्टम में पीछे छूट जाएंगे।
भारत सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना के कारण स्कूल कॉलेज व शिक्षण संस्थान बार-बार बंद किए जाते रहे हैं, जिसका व्यापक प्रभाव छात्रों के सीखने की क्षमता पर पड़ा है। अधिकांश शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई ऑनलाइन माध्यमों पर शिफ्ट की गई है। रिपोर्ट बताती है कि ऑनलाइन शिक्षा के लिए अभी भी सभी छात्रों के पास स्मार्टफोन उपलब्ध नहीं है। इससे लाखों छात्र ऑनलाइन शिक्षा से भी वंचित रह गए।
आर्थिक सर्वेक्षण में भी कहा गया है कि शिक्षा प्रणाली पर महामारी का महत्वपूर्ण असर हुआ, जिससे भारत के स्कूलों और कॉलेजों के लाखों छात्र प्रभावित हुए। शिक्षा की स्थिति पर वार्षिक रिपोर्ट (एएसईआर) 2021 के मुताबिक 2018 के 36.5 प्रतिशत के तुलना में 2021 में स्मार्टफोन की उपलब्धता बढ़कर 67.6 प्रतिशत हो गई है।
शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, ग्रामीण भारत के क्षेत्रों में केवल 50 प्रतिशत बच्चों की पहुंच ही स्मार्ट फोन तक है। एएसईआर रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च कक्षा के बच्चों की तुलना में निचली कक्षाओं के बच्चों के लिए ऑनलाइन कार्य करना कठिन रहा। बच्चों को स्मार्टफोन की अनुपलब्धता तथा कनेक्टिविटी नेटवर्क की अनुपलब्धता जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा
रहा है।
सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च की प्रेसिडेंट यामिनी अय्यर ने कहा कि लम्बे समय से स्कूलों से दूर रहने के कारण छोटे बच्चों में काफी बड़ा लर्निग गैप देखने को मिल रहा है। रिसर्च में पाया गया है कि बच्चे बेसिक मैथमेटिक्स और लैंग्वेज के फंडामेंटल स्किल्स को भी भूल रहे हैं। इस लनिर्ंग गैप को पाटने की जरूरत है।
पब्लिक पालिसी एंड हेल्थ सिस्टम एक्सपर्ट डॉ. चंद्रकांत लहरिया ने बताया कि एम्स, आईसीएमआर, इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स, नीति आयोग, यूनिसेफ, डब्लूएचओ सहित विभिन्न संस्थाओं के अनुसार, छोटे बच्चों में कोरोना का जोखिम बहुत कम होता है। उन्होंने कहा कि स्कूलों के बंद होने से बच्चों की लनिर्ंग और मानसिक भावनात्मक स्वास्थ्य की हानि हुई है।
गौरतलब है कि प्रारंभिक कोविड-19 प्रतिबंधों और फिर उसके बाद भी छात्रों को कोविड-19 (Covid-19) से बचाने के लिए एहतियाती उपाय के रूप में, पूरे भारत में स्कूल और कॉलेज बंद किए गए। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि स्कूल कॉलेज बंद होना शिक्षा की निरंतरता के मामले में सरकार के समक्ष एक नई चुनौती है।
शिक्षाविदों के अनुसार, दरअसल बार-बार स्कूल बंद किए जाने की प्रक्रिया में लाखों छात्र ड्रॉप आउट हो चुके हैं। अब तक लाखों बच्चे स्कूली पढ़ाई से हाथ धो चुके हैं क्योंकि ऑनलाइन शिक्षा के लिए उचित बुनियादी सुविधाएं और संसाधन उनकी पहुंच से परे हैं।
गौरतलब है कि देश के 11 राज्यों में स्कूल खुल चुके हैं। वहीं 16 राज्यों ने आंशिक रूप से स्कूल खोले हैं और 9 राज्यों में स्कूल-कॉलेज अभी भी बंद है। इन 9 राज्यों में देश की राजधानी दिल्ली भी शामिल है। दिल्ली में 7 फरवरी से सीनियर कक्षाओं के लिए और 14 फरवरी से सभी कक्षा के छात्रों के लिए स्कूल खोलने का फैसला लिया जा चुका है।
आईएएनएस
हिमाचल और देश-दुनिया की ताजा अपडेट के लिए join करें हिमाचल अभी अभी का Whats App Group…