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Himachal हाईकोर्ट ने सुनी छात्रों की फरियाद, 9 अगस्त से पहले HPU वीसी को पेश होने का निर्देश
शिमला। जवाहर लाल नेहरू कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स में सुविधआों की कमी के मामले में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो सिकंदर और कुलसचिव को 9 अगस्त से पहले शिमला हाईकोर्ट (Shimla High Court) में पेश होने का निर्देश दिया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि मलीमठ और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने कॉलेज के छात्राओं द्वारा दाखिल किये गये पीआईएल (PIL) पर ये आदेश पारित किये। छात्रों ने जनहित याचिका के जरिये हाईकोर्ट को बताया कि कॉलेज की शुरूआत साल 2015 में हुई थी, लेकिन 6 साल बीत जाने के बावजूद भी यहां पढ़ रहे छात्रों को विवि प्रशासन (University Administration) बुनियादी सुविधा देने में भी नाकाम रहा है।
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हाईकोर्ट ने पहले भी लगा चुका है फटकार
छात्रों ने पीआईएल के जरिये विश्वविद्यालयों के साथ अपने पाठ्यक्रम की गैर-संगतता और उनके परिणामों की घोषणा न करने की भी शिकायत की है। छात्रों ने उच्च न्यायालय को यह भी बताया कि शिमला के पास कॉलेज को पर्याप्त जमीन दी गई है, लेकिन ऐसा लगता है कि कॉलेज प्राधिकरण प्रस्तावित क्षेत्र में स्थानांतरित करने के लिए इच्छुक नहीं है।
उन्होंने हाईकोर्ट के इस संबंध में पुराने आदेश की भी याद दिलायी। हाईकोर्ट ने कोर्ट ने अपने पहले के आदेश में विश्वविद्यालय को निर्देश दिया था कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले कॉलेजों की संख्या, इन संस्थानों में से प्रत्येक में पेश किए जा रहे पाठ्यक्रमों, प्रत्येक कॉलेज में छात्रों, शिक्षकों आदि की संख्या से संबंधित जानकारी प्रस्तुत करे। बता दें कि राज्य सरकार ने मई 2015 में गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज चौरा मैदान, शिमला के पांच कमरों में जवाहर लाल नेहरू कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स शुरूआत हुई थी। उक्त कॉलेज में लगभग 143 छात्र बीएफए की पढ़ाई कर रहे हैं।
कैंटीन के आवंटन पर लगायी रोक
हिमाचल हाईकोर्ट ने आईजीएमसी शिमला में रोगियों को खाना वितरण करने वाली कैंटीन के आवंटन पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने प्रथम दृष्टया में पाया कि उक्त कैंटीन का आवंटन नियमों के विपरीत किया जा रहा है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ व न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की खंडपीठ के समक्ष इस मामले पर सुनवाई की। याचिकाकर्ता यदुपति ठाकुर ने मामले में याचिका दायर की है. उन्होंने आरोप लगाया है कि कैंटीन आवंटन की प्रक्रिया 2020 में पूरी कर दी गई थी, जबकि इस बाबत वित्तीय स्वीकृति फरवरी 2021 में ली गयी. यदुपति ने कोर्ट को बताया कि प्रशासन ने पूरी निविदा एक व्यक्ति विशेष को फायदा पहुंचाने इरादे से की है। उन्होंने कोर्ट से गुहार लगाई है कि इस आवंटन प्रक्रिया को अवैध घोषित कर रद्द किया जाए।