-
Advertisement
Christmas Day पर जानिए क्रिसमस ट्री के बारे में कुछ रोचक बातें
Last Updated on December 24, 2022 by sintu kumar
कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोन की दहशत के बीच इस बार दुनिया भर में क्रिसमस डे मनाया जा रहा है। हालांकि कई जगह पर सार्वजनिक कार्यक्रमों पर रोक लगाई गई है लेकिन लोग इस दिन को अपने घरों पर परिजनों के साथ तो मना ही सकते हैं। क्रिसमस का नाम सुनते ही हमारे जहन में सैंटा क्लॉज, क्रिसमस ट्री, केक और जिंगल बेल का गीत गूंजने लगते हैं।
इस दिन चर्च में प्रार्थना सभाएं होती हैं। क्रिसमस डे से पहले 24 दिसंबर को लोग ईस्टर ईव मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था। उन्हें ईश्वर का पुत्र कहा जाता है। जीसस इस धरती पर लोगों को जीवन की शिक्षा देने के लिए आए थे। क्रिसमस डे पर बच्चों को अपने प्यारे से सैंटा क्लॉज़ का ड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। हैं। दरअसल सैंटा क्लॉज क्रिसमस के दिन बच्चों के लिए कई सारे गिफ्ट लेकर आता है। सैंटा क्लॉज को एक देवदूत की तरह माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि वह बच्चों के लिए चॉकलेट, गिफ्ट सभी चीजें स्वर्ग से लेकर आता है और वापस वहीं चला जाता है।
यह भी पढ़ें:ईसाई धर्म नहीं मानता जिंगल बेल को क्रिसमस सॉंग, जानिए क्या है कारण
क्रिसमस ट्री के बिना क्रिसमस अधूरा है। कहते हैं कि क्रिसमस ट्री इसलिए बनाया जाता है जिससे साल भर क्रिसमस ट्री की तरह आपके जीवन में भी जगमगाहट रहे। दिसंबर के पहले सप्ताह से ही क्रिसमस पेड़ को सजाना शुरू कर देते हैं। यह नये साल तक सजा रहता है। इसमें रंगीन ब्लब, सांता का गिफ्ट, चाकलेट आदि लगाये जाते हैं। क्रिसमस का पेड़ आशीर्वाद का प्रतीक है। दरवाजे पर क्रिसमस पेड़ लगाने की परंपरा ईसाई धर्म के लोग क्रिसमस ट्री अपने दरवाजे पर लगाते हैं। यह पेड़ नये साल के शुरुआत तक रहती है। इसे पूरा सजाया जाता है। क्रिसमस ट्री से खुशियां आती हैं, इसलिए इस घर में लगाया जाता है। क्रिसमस ट्री जनवरी के पहले सप्ताह तक ही रहता है। इसके बाद इसे हटा दिया जाता है।
क्रिसमस ट्री के पीछे कहानी यह है कि 723 AD में जर्मनी में Saint Boniface को पता चला था कि कुछ लोग एक अच्छे से सजाए गए आक के पौधे के नीचे एक बच्चे की बलि देने जा रहे थे। Saint Boniface ने प्रभु का नाम लेकर कुल्हाड़ी के वार से पेड़ को दो टुकड़ों में काट दिया। जहां, उन्होंने पेड़ काटा वहां एक फर ट्री उग आया। Saint Boniface ने लोगों से इसे ईश्वर का प्रतीक बताया। माना जाता है कि आधुनिक क्रिसमस ट्री को सबसे पहले 16 वीं शताब्दी में ईसाई समाज सुधारक मार्टिन लूथर ने पुनर्जागरण के दौरान प्रारंभिक आधुनिक जर्मनी में सजाया था। कहा जाता है कि उन्होंने पहली बार एक सदाबहार पेड़ में मोमबत्ती जलाई थी। इसके बाद से समय के साथ क्रिसमस के दौरान सदाबहार के पेड़ पर मोमबत्ती जलाने की परंपरा बन गई। ईसाई समुदाय में अपने घरों में क्रिसमस ट्री को सजाने का रिवाज है। ऐसा माना जाता है कि यह क्रिसमस ट्री उन्हें बुरे नजर और भूत-प्रेत से बचाता है.