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को-ऑपरेटिव बैंक कर्मियों की वरिष्ठता और पदोन्नति को लेकर High Court के यह आदेश
Last Updated on October 19, 2020 by Vishal Rana
शिमला। न्यायालयों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता मशीन की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए बल्कि न्यायोन्मुखी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। प्रदेश हाईकोर्ट (High Court) ने यह व्याख्या राज्य सहकारी बैंकों के कर्मचारियों की सेवाओं से जुड़े मामलों को हाईकोर्ट में रिट याचिकाओं के माध्यम से चुनौती देने की योग्यता के मुद्दे को लेकर स्थिति स्पष्ट करते हुए दी। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने सहकारी बैंकों के कर्मचारियों की सेवाओं से जुड़े मामलों में रिट याचिकाओं को योग्य बताते हुए कानून की यह व्यवस्था स्पष्ट की। कोर्ट ने महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कि भले ही कोई संस्था राज्य या राज्य के अंगों की परिभाषा में ना आती हो तब भी तथ्यों और परिस्थितियों को देखाते हुए ऐसी संस्थाएं रिट याचिकाओं के माध्यम से हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार के तहत आती हैं।
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कोर्ट ने एचपी स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक (HP Co-Operative Bank) के कर्मचारियों की वरिष्ठता (Seniority) और पदोन्नति से जुड़े विवाद का निपटारा करते हुए राज्य को-ऑपरेटिव सोसाइटीज के रजिस्ट्रार को आदेश दिए कि वह 31 दिसंबर तक बैंक के कर्मियों की सेवा शर्तों में न्यायोचित व उचित प्रक्रिया का प्रावधान बनाए। कोर्ट ने रजिस्ट्रार को ग्रेड 4 के सभी पदोन्नत कर्मियों की वरिष्ठता को फिर से तैयार करने का निर्देश भी दिया। याचिकाओं का निपटारा करते हुए कोर्ट ने कहा कि अदालतों (Courts) के गठन ठोस एवं सारभूत न्याय प्रदान करने के लिए किया गया है। न्याय प्रदान करने वाली संस्था होने के नाते अदालतों को न्याय प्रदान करने का दृष्टिकोण रखना चाहिए ना कि मामलों को कुछ ज्यादा ही तकनीकी होकर दोषपूर्ण या आधी अधूरी प्लीडिंग को आधार बनाकर खारिज कर देना चाहिए। जहां तक हो सके अदालतों को मामले की तह तक जाते हुए प्रार्थी की व्यथा को समझना चाहिए और उसका निवारण करने की कोशिश करनी चाहिए।
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