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यहां हर दिन की जाती है तिरंगे की पूजा, 1917 से चली आ रही परंपरा
पूरे भारत में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। केंद्र सरकार के हर घर तिरंगा (Har Ghar Tiranga) अभियान के तहत देश के हर घर में लोग तिरंगा फहरा रहे हैं। बहुत सारे शहरों में तिरंगा (Tiranga) यात्राएं निकाली जा रही हैं। आज हम आपको भारत की एक ऐसी जगह के बारे में बताएंगे, जहां पिछले करीब 105 साल से हर रोज घरों में तिरंगे की पूजा की जाती है।
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हम बात कर रहे हैं झारखंड में टाना भगत नामक जनजातीय समुदाय की। इस समुदाय के लोग पिछले 105 साल से हर रोज तिरंगे की पूजा के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते हैं। ये समुदाय आजादी से पहले 1917 से ही तिरंगा को अपना सर्वोच्च प्रतीक और महात्मा गांधी को देवपुरुष के रूम में पूजता रहा है। इस समुदाय के घर के आंगन में जो तिरंगा फहरता है, उसमें अशोक चक्र की जगह चरखे का चिन्ह बना हुआ होता है।
बता दें कि आजादी के आंदोलन के दौरान तिरंगे का स्वरूप यही था। उस दौर से इस समुदाय ने हर घर तिरंगा, हर हाथ तिरंगा का मंत्र आत्मसात कर रखा है। इस समुदाय के लोगों का अहिंसा आज भी जीवन मंत्र है। ये लोग सरल और सात्विक जीवन शैली के लोग हैं और ये मांसाहार और शराब से दूर रहते हैं। ये लोग सफेद खादी के कपड़े और गांधी टोपी पहनते हैं।
तिरंगे की पूजा से दिन की शुरुआत
ग्रामीणों का कहना है कि चरखे वाला तिरंगा हमारा धर्म है। हम लोग तिरंगे की पूजा से दिन की शुरुआत करते हैं। उन्होंने बताया कि पूजा करने के बाद फिर हम लोग शाकाहारी भोजन करते हैं।
ये हैं टाना भगत
टाना भगत एक पंथ है, जिसकी शुरुआत जतरा उरांव ने 1914 में की थी। जो कि गुमला जिले के बिशुनपुर प्रखंड के चिंगारी नामक गांव के रहने वाले थे। उन्होंने आदिवासी समाज में पशु- बलि, मांस भक्षण, भूत-प्रेत के अंधविश्वास, शराब सेवन और जीव हत्या के विरुद्ध मुहिम शुरू की। उन्होंने समाज के सामने सात्विक जीवन का सूत्र रखा। खास बात ये रही कि ये अभियान असरदार रहा। इसके बाद जिन लोगों ने इस नई जीवन शैली को स्वीकार किया उन्हें टाना भगत कहा जाने लगा। वहीं, जतरा उरांव को भी लोग जतरा टाना भगत के नाम से जाने जाने लगे
अंग्रेज सरकार के खिलाफ आंदोलन
बताया जाता है कि इस पंथ की शुरुआत में ब्रिटिश हुकूमत का शोषण-अत्याचार चरम पर था। इस पंथ में शामिल हुए हजारों आदिवासियों नें ब्रिटिश हुकूमत के अलावा साहुकारों, सामंतों, मिशनरियों के खिलाफ आंदोलन किया था। जतरा टाना भगत ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मालगुजारी नहीं देने, बेगारी नहीं करने और टैक्स नहीं देने का ऐलान किया।
जिसके बाद 1914 में अंग्रेज सरकार ने जतरा उरांव को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें डेढ़ साल के लिए कैद की सजा दी गई। इसके बाद जेल से छूटने के बाद अचानक जतरा उरांव का निधन हो गया। वहीं, टाना भगत आंदोलन अहिंसक नीति के कारण महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गया।
दिया था ये मंत्र
जतरा टाना भगत ने अपने अनुयायियों को गुरु मंत्र दिया था कि किसी से मांग कर मत खाना और अपनी पहचान को तिरंगे के साथ अपनाना। बस इसके बाद तिरंगा टाना भगत पंथ का सर्वोच्च प्रतीक मानता है। इस समुदाय की परंपरागत प्रार्थनाओं में महात्मा गांधी का नाम आज भी शामिल है।