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#Pangi_Valley में फूल यात्रा शुरू, कोरोना नियमों के साथ सुख-समृद्धि की कामना करने निकले लोग
पांगी। कोरोना संकट के बीच भी लोग किसी तरह सदियों से चली आ रही परंपराएं निभा रहे हैं। कबायली क्षेत्र पांगी घाटी में तीन दिवसीय फूल यात्रा शुरू हो गई है। सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) सहित कोरोना से बचाव के नियमों का पालन करते हुए फूल यात्रा (फुल्याच उत्सव) का आयोजन किया गया। यह मेला जहां आपसी भाईचारे के लिए प्रसिद्ध है, वहीं ग्रीष्म ऋतु के समापन और सर्दियों के आवगमन का प्रतीक भी माना जाता है। पांगी घाटी (Pangi Valley) में फसलों का काम पूरा होने और शरद ऋतु के आगमन पर सुख-समृद्धि की कामना के लिए हर वर्ष अक्टूबर माह के दूसरे सप्ताह में फूल यात्रा मेले का आयोजन किया जाता है। इस मौके पर करयास, सेरी फटवास, करेल गांव से लोग पारंपरिक परिधान में सज-धजकर वाद्य यंत्रों की धुनों के बीच कूफा गांव तक जाते हैं तथा वहां पूजा-पाठ करते हैं।
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तीन दिन की इस यात्रा में लोग एक-दूसरे को सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। लोग सर्दियों से बचने के लिए इसी समय में गर्म वस्त्र खरीद लेते हैं क्योंकि यहां बर्फबारी (Snowfall) के बाद छह से सात माह तक पांगी मुख्यालय का संपर्क दुनिया से कटा रहता है। इस दौरान केवल हवाई यात्रा से ही पांगी तक पहुंचा जा सकता है। वहीं, फूल यात्रा के बारे में एक अन्य मान्यता यह है कि तीन दिनों तक लोग आटा पिसवाने के लिए घराट में नहीं जाते हैं, जो अपशगुन माना जाता है और साच पास को आर-पार नहीं करते हैं।
मेले में पहले लुज, सुराल, धरवास, करयास, कूफ़ा, कवास, हुडान, किरयूनी और किलाड़ के कूफ़ा गांव के लोग फुलयतानु मैदान में इकट्ठा हो कर मेला मनाती थीं, लेकिन अब कूफ़ा, कवास, किलाड़, कर यास के लोग मेले में भाग लेते हैं। मेले को मनाने के बारे में कई किंवदंती है। कहा जाता हैं पांगी में पहले आपसी मिलन का एकमात्र साधन मेले त्योहार ही होते थे। पांगी के लोग फूलयात्रा मेले से पहले अपनी जमींदारी के साथ-साथ सर्दियों का खाने-पीने का सारा सामान इकट्ठा कर लेते थे। यहां तक कि पशुओं का चारा भी इकट्ठा करना पड़ता था।
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