- Advertisement -
शिमला। बीजेपी का ज्वालामुखी से एक पुराना इतिहास रहा है। अगर सही मायनों में कहें तो ये ज्वालामुखी ही है जिसने प्रेम कुमार धूमल को किसी वक्त नेता बनाया था। यहीं पर शांता बनाम धूमल की जंग में पार्टी की जमकर फजीहत हुई थी। आज फिर से उसी ज्वालामुखी ने बीजेपी में एक बड़ा भूचाल खड़ा किया तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) तक को हस्तक्षेप करना पड़ा। फिलवक्त मामला विधायक रमेश धवाला (BJP MLA Ramesh Dhawala) के पत्र लिखने के साथ शांत बताया जा रहा है, लेकिन असल में लड़ाई अब शुरू हुई है। मसला खड़ा हो गया है कि अगर धवाला ने खेद पत्र लिख दिया तो पार्टी ने उसे मीडिया में क्यों जारी कर दिया। अब अगली अंदरूनी लड़ाई इस बात को लेकर शुरू है।
खैर दो दिनों से मचे बीजेपी के बबाल को ठंडा करने के लिए पहले सीएम जयराम ठाकुर (CM Jai Ram Thakur) को शुक्रवार रात रमेश धवाला को बुलाकर चर्चा करनी पड़ी। इसमें ही ये तय हुआ था कि शनिवार सुबह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से चर्चा होगी, उसके अनुरूप जैसा कहा जाएगा, आगे तय किया जाएगा। आज सीएम जयराम ठाकुर की नड्डा से फोन पर बात हुई उसके कुछ देर बाद ही धवाला ने पार्टी को एक पत्र लिखते हुए खेद जता दिया। इसके साथ ही उन्हें सीएम जयराम ठाकुर से इस बात का भी आश्वासन मिल गया कि ज्वालामुखी की निगरानी वह स्वयं करेंगे। धवाला ने जो पत्र पार्टी को लिखा, उसी पत्र को पार्टी ने हू-ब-हू मीडिया तक परोस दिया।
धवाला फिलवक्त तो पार्टी को, शांत दिख रहे हैं, लेकिन क्या पार्टी के संगठन मंत्री पवन राणा (Pawan Rana) चुप रहेंगे। मसला दोनों के बीच का है, जो लंबे समय से सार्वजनिक होता आया है। धवाला ने सीएम जयराम ठाकुर के सरकारी आवास पर बैठक के बाद ही पवन राणा पर सीधा हमला बोला था,उसके बाद ही ज्वालामुखी के लगडू में बीते कल उनका पुतला जलाया गया। आज पुतला जलाने वाले दस लोगों के खिलाफ मामला भी दर्ज हुआ है। ये सब चीजें तो अब निकल चुकी हैं। लोग आज तक धूमल बनाम शांता के वर्ष 1997 वाले ज्वालामुखी कांड को नहीं भुला पाए हैं। कैसे वर्चस्व की लड़ाई में एक-दूसरे पर थूक दिया गया था।
ज्वालामुखी का दर्द एक नहीं अनेक है। धवाला दो मर्तबा इससे पहले धूमल सरकार में कैबिनेट मंत्री (Cabinet Minister) रहे, वरिष्ठ विधायक हैं, इस मर्तबा उन्हें मंत्री पद से दूर रखा गया है। उस पर पार्टी के संगठन मंत्री पवन राणा की ज्वालामुखी में दखलअंदाजी पिछले अढाई साल से चल रही है। धवाला एक कदम बढाना चाहते हैं, तो उनके कदम पीछे खींच लिए जाते हैं। धवाला अपना दर्द अभी भी रोक नहीं पा रहे हैं। वह इतना कह रहे हैं कि कई मर्तबा पार्टी-संगठन को ध्यान में रखते हुए ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं। लेकिन क्या असल में बीजेपी का ज्वालामुखी शांत हो गया है या नहीं। ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
- Advertisement -