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लकवे के बावजूद नहीं मानी हार,अचार-बड़ी बेचकर बनीं परिवार का सहारा
Last Updated on January 7, 2024 by Soumitra Roy
नितेश सैनी/मंडी। मुश्किलों के बादल चाहे लाख गहरे हों, अगर इरादा (Determination) मजबूत हो तो कोई भी चुनौती नामुमकिन नहीं। इसी बात को चरितार्थ किया है सुंदरनगर (Sundernagar) के छातर गांव की 54 वर्षीय हरदीप कौर ने। लकवे (Paralysis) की शिकार होने के बाद भी आज वे अचार, सीरा और बड़ी बनाकर अपने बीमार पति और परिवार का सहारा बन गई हैं। कम उम्र में शादी के बाद हरदीप को 20 साल की उम्र में लकवा मार गया था। उसके बाद पति को भी डायबिटीज (Diabetes) के कारण परेशानी होने लगी। ऐसे में परिवार और बच्चों की परवरिश का पूरा जिम्मा हरदीप पर आ गया। तब हरदीप साक्षरता समिति मंडी से जुड़ीं और वहां नाबार्ड (Nabard) के प्रशिक्षण शिविर में चार, सीरा और बड़ी बनाना सीखा। फिर वे उन्हें अपने घर पर ही बनाने लग गईं। इससे आमदनी तो होने दलगी, लेकिन इतनी नहीं कि पूरा घर चल जाए।
पैदल पहुंचीं गांवों में
हरदीप कौर ने लकवे की हालत में ही पैदल गांवों में अपने उत्पादों को बेचना शुरू किया। इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि बहुत ज्यादा पैदल चलने के कारण हरदीप लकवे से उबर पाईं। फिर तो उन्होंने आज तक पीछे मुड़कर नहीं देखा।
कृषि विभाग ने बनाया मास्टर ट्रेनर
कृषक प्रशिक्षण केंद्र सुंदरनगर और स्वयं सहायता समूह (SHG) से जुड़कर हरदीप कौर ने निशुल्क प्रशिक्षण प्राप्त कर मोटे अनाज के व्यंजन बनाना भी शुरू कर दिए। इसके साथ ही मशरूम, एलोवेरा जैल के हैंड वॉश, साबुन (Soap) आदि बनाने का प्रशिक्षण भी ले लिया। उनके कार्य को देखते हुए कृषि विभाग ने उन्हें मास्टर ट्रेनर (Master Trainer) चुन लिया। हरदीप कौर अपने उत्पादों को बेचने के लिए शिमला, चंडीगढ़, कांगड़ा, केलांग आदि जगहों पर हुए फूड फेस्टिवल में भी पहुंची।
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सालाना ढाई से 3 लाख की कमाई
हरदीप कौर का अधिकतर सामान घर में ही बिक जाता है। वह एक दुकान भी चला रही हैं और चौराहों पर भी स्टॉल लगाकर सामान बेचती है। इससे सालाना ढाई से तीन लाख रुपये की कमाई कर लेती है। उपायुक्त मंडी अरिंदम चौधरी ने बताया कि निशुल्क प्रशिक्षण कार्यक्रम हज़ारों परिवारों के लिए वरदान साबित हो रहे हैं। महिलाओं को निशुल्क प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है, जिससे महिलाएं अपना व्यवसाय शुरू कर आत्मनिर्भर बन रही हैं।