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इस मंदिर में आज भी चौसर खेलने आते है भगवान शिव व पार्वती
सावन का पवित्र महीना चल रहा है, इस दौरान भक्त बड़ी संख्या में भगवान शिव के दर्शन के लिए मंदिरों में जाकर भोले नाथ को प्रसन्न करते हैं। सावन में बड़ी संख्या में भक्त शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंग में भगवान भोलेनाथ का चौथा ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर है। यहां पर भगवान शिव ज्योति स्वरूप में विराजमान हैं। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही मनुष्य की सभी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के इंदौर शहर से 80 किमी दूर है। ओंकारेश्वर नर्मदा नदी के किनारे बसी एक ऊंची पहाड़ी पर मौजूद है। यहां शिव का ज्योतिर्लिंग ऊं के आकार वाली पहाड़ी पर मौजूद है इसी कारण इन्हें ओंकारेश्वर कहा जाता है। शिव पुराण में इसे परमेश्वर लिंग भी कहा गया। आइये जानते हैं ओंकारेश्वर मंदिर का रहस्य…
मान्यता के मुताबिक भगवान शिव -माता पार्वती के साथ ओंकारेश्वर में रात में सोने के लिए आते हैं। रात के समय शिव आदिशक्ति माता पार्वती के साथ हर रोज यहां चौपड़ खेलते हैं। इसलिए शाम की आरती के बाद यहां चौपड़ बिछाकर मंदिर के गर्भगृह को बंद कर दिया जाता है। अगले दिन सुबह जब गर्भगृह खोला जाता है तो यह चौपड़ बिखरा हुआ मिलता है।
कहा जाता है कि जो भी भक्त शिव के ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर लेता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और मनोकामना भी पूर्ण होती है। शास्त्रों में कहा गया है कि ओंकारेश्वर मंदिर में दर्शन के बाद नर्मदा या फिर किसी अन्य नदी का जल चढ़ाना जरूरी होता है,तभी दर्शन पूर्ण माने जाते हैं।