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हाईकोर्ट के नगर निगम शिमला को आदेशः कनलोग में दुर्गा माता मंदिर तक बनाएं सड़क
हाईकोर्ट ने नगर निगम शिमला को कनलोग के शिव मंदिर से दुर्गा माता मंदिर तक 3 माह के भीतर एंबुलेंस योग्य सड़क बनाने के आदेश दिए । कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश सत्यन वैद्य की खंडपीठ ने प्रार्थी सड़क निर्माण में बाधा बने अवैध निर्माण को 2 सप्ताह के भीतर हटाने के आदेश भी दिए। याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार आर्किटेक्ट प्लानर नगर निगम को 14 नवंबर 2009 को मुख्यमंत्री संकल्प सेवा के माध्यम से प्रार्थी कवि खन्ना के खिलाफ अवैध निर्माण को लेकर शिकायत प्राप्त हुई थी। प्रार्थी से निगम आयुक्त ने कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा था कि क्यों न उसको निगम द्वारा दी गई सुविधाओं से वंचित किया जाए और उसके अवैध निर्माण को गिरा दिया जाए। 5 दिसंबर 2019 को जारी किए गए इस कारण बताओ नोटिस के मुताबिक प्रार्थी को 7 दिसंबर 2019 को नगर आयुक्त के समक्ष पेश होने के आदेश जारी किए गए थे।
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नोटिस के जवाब में प्रार्थी ने अपने बचाव में कहा था कि वह अकेला विवादित संपत्ति का मालिक नहीं है। सीजीआई फेंसिंग शीट 16 नवंबर 2017 को प्लॉट के बचाव के लिए प्रार्थी व अन्य सह मालिकों द्वारा लगाई गई थी। प्रार्थी व अन्य सह मालिकों द्वारा स्थानीय लोगो द्वारा फेंके जाने वाले मलवे व कूड़े से बचाव के लिए यह वयवस्था की गई थी। नगर आयुक्त द्वारा मामले का निपटारा पर न करने की स्थिति में वहां के स्थानीय निवासियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर नगर आयुक्त द्वारा मामले का समय पर निपटारा करने की गुहार लगाई थी। ताकि नगर निगम द्वारा शिव मंदिर से दुर्गा मंदिर कनलोग तक एंबुलेंस मार्ग का कार्य समय पर समाप्त हो सके।
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कोर्ट ने मामले का निपटारा 31 दिसंबर 2020 तक करने के आदेश जारी किए थे। 6 नवम्बर 2020 को मामले का निपटारा कर दिया गया। प्रार्थी द्वारा अवैध निर्माण 2 सप्ताह के भीतर हटाने की आदेश जारी किए। ऐसा न किये जाने की स्थिति में नगर निगम के कार्यकारी अभियंता को आदेश जारी किए गए कि वह अवैध निर्माण को खुद हटवाए । प्रार्थी ने इन आदेशों को जिला जज शिमला की अदालत के समक्ष चुनौती दी थी । 22 मार्च 2022 को प्रार्थी की अपील खारिज हो गई। इसके बाद प्रार्थी ने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल की । प्रार्थी द्वारा दायर याचिका व कनलोग के बाशिंदों द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई हाईकोर्ट ने एक साथ की। प्रार्थी की याचिका को गुणवत्ता हीन पाते हुए हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया और उपरोक्त आदेश पारित कर दिए।