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हिमाचल में यहां एक दिन पहले खेली जाती है होली, गैरों पर नहीं लगाया जाता है रंग
मंडी। हिमाचल में होली (Holi) हर जगह अलग अलग ढंग से मनाई जाती है, लेकिन मंडी की होली इन सबसे बिल्कुल अलग है। मंडी की होली की खासियत यह है कि यहां गैरों पर रंग नहीं डाला जाता, बिना जान-पहचान के किसी पर रंग नहीं डालते और महिलाएं भी बाजार में होली खेलने आती हैं। इस दिन सभी लोग सेरी मंच पर एकत्रित होकर एक साथ होली मनाते हैं। हालांकि दो साल कोविड के कारण सेरी मंच पर होली नहीं मनाई गई, लेकिन इस बार यहां जमकर होली खेली गई।
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कोरोना के कारण दो वर्षों के बाद इस वर्ष छोटी काशी मंडी (Mandi) में रंगों का पर्व होली त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया। इस उपलक्ष्य पर गुरुवार को मंडी शहर के ऐतिहासिक सेरी मंच पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें युवक युवितियों ने डीजे की धुनों पर थिरकर खुब गुलाल उड़ाया। इसके साथ ही मंडी शहर में विभिन्न स्थानों पर छोटी-छोटी टोलियों में लोगों ने निकलकर अपनों के साथ होली खेल कर इस पर्व की खुशियों को सभी के साथ सांझा किया। लोगों ने कोरोना के कारणे दो वर्षों बाद हुए बड़े सार्वजनिक कार्यक्रम का भरपूर लुत्फ उठाया।
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इस मौके पर स्थानीय लोगों के साथ-साथ बाहरी राज्यों से आए पर्यटकों ने भी मंडी की होली का आनंद लिया। मंडी में सुबह लोगों ने अपने घर से होली मनाने की शुरुआत की जिसके बाद मंडी लोगों ने मंडी शहर के ऐतिहासिक सेरी मंच पर आयोजित डीजे पार्टी (DJ Party) का भी आनंद लिया। इस दौरान लोग दोपहर तक लोग गानों पर झूमते हुए नजर आए। बता दें कि मंडी में होली का पर्व एक दिन पूर्व मनाया जाता है। जिसमें शहर में राज माधव राय (Raj Madhav Rai) की पालकी (जलेब) एक शोभा यात्रा के रूप में निकाली जाती है जिसके दौरान लोग अपने राजा के साथ भी होली खेलने का आनंद लेते हैं। मंडी में दो वर्षों के बाद होली के मौके पर हुए इस कार्यक्रम का बच्चों, युवक- युवतियों, पुरुषों व महिलाओं के साथ सभी ने भरपूर आनंद लिया।
क्या है मंडी की होली का इतिहास
राज देवता माधोराय की भागीदारी तो रियासतकाल से ही होली में रही है। उस जमाने में मंदिर के प्रांगण में पीतल के बड़े बर्तनों में रंग घोला जाता था। राजा अपने दरबारियों के साथ यहां होली खेलते थे। यही नहीं राजा घोड़े पर सवार होकर प्रजा के बीच भी होली खेलने जाते थे। उस समय स्थानीय स्तर पर प्राकृतिक रंगों की महक से होली की रंगत सराबोर होती थी। राजा और प्रजा का मेल आज भी जारी है। राजदेवता माधो राय जनता के बीच जाते हैं।
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