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Nepal ने अभी ध्यान नहीं दिया तो उसका भी वही हाल होगा जो Tibet का हुआ था: डॉ. लोबसांग सांगेय
Last Updated on June 24, 2020 by Deepak
धर्मशाला। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (Central Tibetan Administration) के अध्यक्ष डॉ. लोबसांग सांगेय ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि चीन नेपाल (Nepal) के उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों को खरीद कर अपने में मिलाने की नीति पर काम कर रहा है। निर्वासित तिब्बती सरकार के पीएम डॉ. लोबसांग सांगेय ने स्पष्ट शब्दों में नेपाल की सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि जिस तरह से चीन (China) ने पहले तिब्बत (Tibet) तक सड़क बनाई और फिर उसी सड़क से ट्रक, टैंक और बंदूक ला कर तिब्बत पर कब्जा जमाया उसी तरह से चीन नेपाल को भी अपनी सीमा में मिला लेगा। यही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि चीन के सुरक्षा कानून का सबसे पहला शिकार तिब्बत ही था। अगर भारत-चीन का सीमा विवाद (India-China Border Dispute) सुलझता है तो उसे सबसे पहले तिब्बत का मामला सुलझाना चाहिए।
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1959 में तिब्बतियों के विद्रोह को कुचल दिया था चीन ने
तिब्बत का इतिहास बेहद उथल-पुथल रहा है, लेकिन साल 1950 में चीन ने इस क्षेत्र को अपनी सीमा में मिलाने के लिए हज़ारों की संख्या में सैनिक भेज कर आक्रमण कर दिया था। तब तिब्बत के अलावा उससे लगने वाले बाक़ी क्षेत्रों को भी चीनी प्रांतों में मिला दिया गया था। परंतु, साल 1959 में तिब्बतियों ने चीन के ख़िलाफ़ विद्रोह करने की कोशिश की लेकिन तब भी चीन ने उस विद्रोह को बेरहमी से कुचल कर पूरे तिब्बत को चीन की सीमा में मिला लिया और 14वें दलाई लामा को तिब्बत छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी जहां उन्होंने निर्वासित तिब्बत सरकार का गठन किया था। तब से ही तिब्बत चीन के कब्जे में है।
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नेपाल का एक गांव रुई अब चीन के कब्जे में
आज नेपाल की भी वही हालत है और चीन नेपाल के कई क्षेत्रों को पहले ही रोड बनाने के नाम पर हड़प चुका है और अब उसे पूरी तरह से अपनी सीमा में मिलाने की मंशा रखता है। यही नहीं नेपाल का एक गाँव रुई अब चीन के स्वायत्त वाले तिब्बत के कब्जे में आ गया है। 72 घरों वाले इस गांव में चीनी सेना ने जबरदस्ती घुसपैठ कर कब्जा किया था लेकिन अब नेपाल की सरकार इसे छुपा रही है। नेपाल अभी भी रुई गांव को अपने मानचित्र में दिखाती है परंतु, वह क्षेत्र पूरी तरह से चीन के नियंत्रण में है। नेपाल की सरकार ने नेपाली जनता को धोखा देने की हर मुमकिन कोशिश की है। यही कारण है कि अब नेपाली जनता का ध्यान भटकाने के लिए नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार ने भारत के क्षेत्रों को अपने क्षेत्र में दिखा कर विवाद पैदा करना चाहती है और यह सब शी जिनपिंग के इशारों पर ही किया जा रहा है।
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वह दिन दूर नहीं जब नेपाल को चीन के नाम से ही जाना जाने लगेगा
चीन ने नेपाल की सिर्फ जमीन ही नहीं हड़पी है बल्कि उसे बीआरआई के नाम पर इनफ्रास्ट्रक्चर बनाने का लालच दे कर अपने कर्ज के जाल में भी फंसा चुका है। जिस तरह से चीन धीरे-धीरे कर नेपाल को अपनी सीमा में मिलाता जा रहा है, और वहां की राजनीति को अपने हिसाब से नियंत्रित कर रहा है, उससे तो यही लगता है कि अब वह दिन दूर नहीं जब नेपाल को चीन के नाम से ही जाना जाने लगेगा जैसे तिब्बत को अब जाना जाता है। डॉ. लोबसांग सांगेय का कहना बिल्कुल सही है और चीन ऐसी ही मंशा रखता भी है। डॉ. लोबसांग सांगेय कि जब तिब्बत पर कब्जा किया गया था, माओत्से तुंग और अन्य चीनी नेताओं ने कहा था कि तिब्बत वह हथेली है जिस पर हमें कब्जा करना चाहिए, फिर हम पांचों उंगलियों पर भी जाएंगे। पहली उंगली लद्दाख की है। अन्य चार नेपाल, भूटान, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश हैं।