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सीएम बोले- वॉटर सेस लगाना राज्य का अधिकार क्षेत्र, पंजाब – हरियाणा सरकार की चिंता बेवजह
शिमला। सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा हिमाचल प्रदेश अपने पड़ोसी राज्यों को सम्मान देते हुए कहना चाहता है कि प्रदेश में सरकार द्वारा Water Cess on Hydro Power Generation Act 2023 जो लागू किया है वह किसी प्रकार की अन्तरराजीय संधियों का उल्लंघन नहीं करता न ही Indus water treaty के प्रावधानों का उल्लंघन करता है। पंजाब व हरियाणा द्वारा यह कहना कि हिमाचल सरकार का जल उपकर लगाने का फैसला अंतरराजीय जल विवाद अधिनियम-1956 (Inter State River dispute Act 1956) के खिलाफ है, कहना तर्कसंगत नहीं है क्योंकि इसमें पड़ोसी राज्यों को छोड़े जाने वाले पानी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस अधिनियम का कोई भी प्रावधान पड़ोसी राज्यों के जल अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है।
जल उपकर लगाना राज्य के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत
उन्होंने कहा कि वे उनके संज्ञान में लाना चाहते हैं कि Power Generation पर जल उपकर लगाना राज्य के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत है और यह तर्कसंगत है कि राज्य में बीबीएमबी की तीन परियोजनाओं के जलाशयों से प्रदेश की लगभग 45000 हेक्टेयर भूमि जलमग्न हो गई है। हिमाचल प्रदेश में इन परियोजनाओं से बने जलाशयों से प्रदेश को पानी पर तो कोई भी अधिकार प्राप्त नहीं है अपितु इन जलाशयों के विपरित पर्यावरण प्रभाव हिमाचल दशकों से झेल रहा है, वो चाहे क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन (Local Climate Change) हो, कृषि और बागवानी में विपरीत परिवर्तन हो, स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से सामना हो, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन हो, इन सभी परिवर्तनों ने इन परियोजनाओं के जलाशयों के आस पास मानवीय जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है।
यह विडम्बना है कि आज जल विद्युत परियोजनाएं जब बनती हैं तो इन सभी विपरीत प्रभावों की क्षतिपूर्ति हेतु ESIA (Environmental Social Impact Assessment ) पर्यावरण और सामाजिक प्रभावों का आकलन होता है और इसके लिए ESMP (Environmental Social Management Plan) पर्यावरण, सामाजिक प्रबंधन योजना अनुमोदित होकर उस पर अमल होता है और व्यापक रूप से स्थानीय क्षेत्र के उत्थान और पर्यावरण और समाजिक सुरक्षा हेतु कार्य किया जाता है।
उत्तराखंड ने 2013 में व जम्मू और कश्मीर ने 2010 में पारित किया Water Cess Act
सीएम सुक्खू ने कहा बीबीएमबी की किसी भी परियोजना ने इन सभी मुददों के लिए जरूरी पग नहीं उठाये हैं और स्थानीय आबादी को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। इन जलाशयों ने ना सिर्फ कृषि और बागवानी की भूमि निगली है, यातायात के साधन बाधित किए हैं। पानी के स्त्रोत जलमग्न हुए हैं, धार्मिक स्थल व शमशान घाट डूबे हैं अपितु 50-60 वर्ष पहले उजड़े हुए विस्थापितों का पुनर्वासन पूरी तरह नहीं हो पाया है।
पंजाब सरकार का यह कहना कि हिमाचल सरकार का यह कदम गैर कानूनी है तर्कसंगत नहीं है क्योंकि प्रदेश सरकार ने अपने राज्य में स्थापित जल विद्युत परियोजनाओं द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले जल पर उपकर लगाया है ना कि पड़ोसी राज्य की सीमाओं में बहने वाले पानी पर।
पड़ोसी राज्य में जो Water Cess on Hydro Power Generation Act-2023 का मामला उठाया जा रहा है वह तर्कसंगत नहीं है क्योंकि यह भी बताना उचित होगा कि हिमाचल प्रदेश देश का पहला राज्य नहीं है, जिसने परियोजनाओं के उपयोग में आने वाले जल पर उपकर लगाया है। इससे पहले पड़ोसी राज्य उत्तराखंड ने 2013 में व जम्मू और कश्मीर ने 2010 में Water Cess Act पारित किया गया है। यह कहना भी उचित होगा कि पहाड़ी राज्यों के पास आय की सीमित साधन होने की स्थिति में राज्य को अपने आय के स्त्रोतो को बढ़ाने का पूरा अधिकार है। इस तर्ज पर अन्य पड़ोसी राज्यों जैसे कि उत्तराखंड व जम्मू और कश्मीर ने पहले ही Water Cess Act लागू कर दिया है। जिनसे राज्य को आय प्राप्त हो रही है। अतः यह कहना गलत है कि राज्य को अपने जल स्त्रोतो पर Water Cess लगाने का अधिकर नहीं है।
जल संसाधनों पर राज्य का अधिकार
संवैधानिक प्रावधान के अनुसार, पानी राज्य का विषय है और इसके जल संसाधनों पर राज्य का अधिकार है। इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश सिंधु जल संधि, 1960 को मान्यता देता है और हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा प्रख्यापित जल विद्युत उत्पादन अधिनियम, 2023 पर हिमाचल प्रदेश जल उपकर उक्त संधि के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है। क्योंकि जल उपकर लगाने से न तो पड़ोसी राज्यों को पानी छोड़े जान पर कोई प्रभाव पड़ता है और ना ही नदियों के प्रवाह पैटर्न में कोई परिवर्तन होता है। इसलिए यह अध्यादेश पंजाब राज्य के किसी भी तटीय अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है।
इसके अलावा, यह प्रस्तुत करना उचित है कि जल विद्युत उत्पादन अधिनियम, 2023 पर हिमाचल प्रदेश जल उपकर का कोई भी प्रावधान अंतरराज्यीय नदी विवाद अधिनियम, 1956 के न खिलाफ हैं ना उल्लंघन करता है और राज्य को बिजली उत्पादन पर जल उपकर लगाने से रोकता नहीं है। पानी के उपयोग पर और इस अधिनियम की धारा 7 के तहत जल उपकर लगाने पर कोई रोक नहीं है। अंतरराज्यीय नदी विवाद अधिनियम, 1956 की धारा 7 यह प्रावधान करती है।
अध्यादेश किसी के भी Legitimate Right को प्रभावित नहीं करेगा
जहां तक भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) का संबंध है, इसकी स्थापना विद्युत मंत्रालय द्वारा पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधानों के अनुसार भाखड़ा नांगल परियोजना के प्रशासन, रखरखाव और संचालन के लिए की गई थी, जो संयुक्त है। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और चंडीगढ़ राज्यों का उपक्रम है, इसलिए बीबीएमबी के प्रबंधन पर पंजाब व हरियाण राज्यों का ही नियंत्रण नहीं है। इसलिए, बीबीएमबी की परियोजनाओं में हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा लगाए गए जल उपकर का भार हिमाचल प्रदेश सहित पांच राज्यों में समान रूप से वितरित किया जाएगा।
उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर सरकार जैसी विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा जल उपकर पहले ही लगाया जा चुका है। इसी तर्ज पर हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य का राजस्व बढ़ाने के लिए विभिन्न बिजली उत्पादन एजेंसियों द्वारा पानी के उपयोग पर जल उपकर लगाया है। राज्य को पानी के उपयोग पर उपकर लगाने का पूरा अधिकार है क्योंकि पानी राज्य का विषय है। सीएम ने कहा यह अध्यादेश किसी भी तरह से Inter State River Dispute Act-1956 या अन्य किसी MoU के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है और वे पड़ोसी राज्यों अधिनियम को आश्वस्त करना चाहता हूं कि यह अध्यादेश किसी के भी Legitimate Right को प्रभावित नहीं करेगा