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महाशिवरात्रि पर क्या है चार प्रहर की पूजा का महत्व, यहां जानें
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवरात्रि का त्योहार सबसे उत्तम है। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने पर भक्तों की सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। महाशिवरात्रि पर शिवभक्त दिनभर व्रत करते हुए मंदिरों में शिवलिंग पर भगवान शिव की प्रिय चीजें भांग, धतूरा, बेलपत्र, शमीपत्र, गंगाजल और दूध-दही अर्पित करते हैं। इस साल महाशिवरात्रि का महापर्व 18 फरवरी को है। व्रत का पर्व मुहूर्त 19 फरवरी को सुबह 06 बजकर 57 मिनट से शाम 03 बजकर 25 मिनट तक रहेगा।
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आप सभी जानते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव दिव्य ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। भगवान शिव की पूजा-उपासना चार प्रहर में करने की मान्यता है। रात के चारों प्रहरों में जागकर शिव जी का अभिषेक करना चाहिए। कहते हैं शिवरात्रि पर शिव जी और पार्वती जी पृथ्वी के भ्रमण पर निकलते हैं। इस रात में जो लोग भक्ति करते हैं, उन्हें शिव-पार्वती की विशेष कृपा मिलती है।
मान्यता है कि चार प्रहर की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन के सभी पापों से मुक्त हो जाता है। धर्म, अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। चार पहर की पूजा यानि प्रदोषवेला से शुरू अगले दिन ब्रह्ममुहूर्त तक की जाती है। इसके तहत पहले प्रहर में शिव के ईशान स्वरूप को दूध से, दूसरे प्रहर में दही से अघोर संदर्भ को, तीसरे प्रहर में घी से वामदेव रूप को और चौथे प्रहर में शहद से सद्योजात स्वरूप को अभिषेक कर संकल्प करें। महाशिवरात्रि में की गई पूजा-आराण विशेष पुण्य प्रदान करती है। अगर कोई चार बार पूजन और अभिषेक ना कर सके और पहले प्रहर में एक बार ही पूजन कर लें, तो भी उसकी विपत्तियों से मुक्ति मिलती है।