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100 साल पुराना लाल पुल बदहाल, बड़े हादसे के इंतजार में है प्रशासन
वी कुमार/ मंडी। पंडोह बाजार में 100 साल पुराना लाल पुल किसी दिन किसी बड़े हादसे को अंजाम देकर लहु के लाल रंग से रंगा हुआ नजर आएगा। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि 100 साल पुराने इस पुल की हालत खस्ता है और मुरम्मत के नाम पर यहां सिर्फ लीपापोथी हो रही है। पुल की नींव से लेकर इसकी तारें और बिछाई गई लोहे की चादरें और गाडरें सरेआम अपनी बदहाली की गवाही दे रही हैं। पंडोह पंचायत के पूर्व उपप्रधान राधा कृष्ण वर्मा, स्थानीय निवासी देवी सिंह ठाकुर ओर रोहित कुमार ने बताया कि विभाग मुरम्मत के नाम पर लीपापोथी करने में लगा हुआ है जबकि वास्तविकता से किनारा किया जा रहा है। इन्होंने सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू और लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह से एक साल पहले हुई पुल की मुरम्मत पर जांच करने की मांग उठाई है।
अधिक भारी वाहन भी गुजारे जा रहे हैं
बता दें कि द्रंग विधानसभा क्षेत्र के ईलाका बदार की एक दर्जन पंचायतों के लोग इसी पुल से होकर पंडोह बाजर पहुंचते हैं। स्थानीय निवासी लीलाधर, महेंद्र पाल सिंह और नीतू ने बताया कि पुल से गुजरने में अब डर लगता है। बावजूद इसके यहां से वाहन गुजारना और खुद गुजरना लोगों की मजबूरी है। आज इस पुल से 5 टन वजन ले जाने की अनुमति है लेकिन इससे अधिक भारी वाहन भी इसपर बेरोकटोक गुजारे जा रहे हैं।
अधिशाषी अभियंता झाड़ रहे अपनी जिम्मेदारी से पल्ला
जब इस बारे में अधिशाषी अभियंता सुरेश कौशल से बात की गई तो वे अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए नजर आए। उन्होंने कहा कि पुल की देखरेख का जिम्मा मैकेनिकल विंग कुल्लू के पास है और वही इसकी मुरम्मत कर रहे हैं। गत एक वर्ष पहले मुरम्मत का कार्य उनके द्वारा ही किया गया था। पुल काफी पुराना हो चुका है, इसलिए इसपर अधिक भार ले जाने पर मनाही है।वहीं, जब अधिशाषी अभियंता मैकेनिकल विंग शमशी जिला कुल्लू जीएल ठाकुर से बात की गई तो उन्होंने बताया कि पुल की देखरेख का जिम्मा उनके पास नहीं है। मुरम्मत के लिए 35 लाख के करीब पैसा जारी हुआ था, उससे मुरम्मत करवा दी गई है।
1923 में हुआ था निर्माण
पंडोह का लाल पुल 1923 में बनकर तैयार हुआ था। इसे अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था। जब पंडोह डैम नहीं था तो कुल्लू-मनाली के लिए इसी पुल से होकर गाड़ियां जाती थी। मंडी शहर में विक्टोरिया पुल के पास एक और पुल बनाकर उसे धरोहर के रूप मे ंतो सहेज लिया गया है लेकिन इस पुल को धरोहर के रूप में सहेजने का कोई ईरादा नजर नहीं आ रहा है।