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पेंटिंग करके घर चलाया, पढ़ाई की…अब दुनियाभर में नाम काम रही यह सक्सेस लेडी
Last Updated on April 30, 2022 by sintu kumar
हमारे अंदर के हुनर को आप प्रकृति का वरदान कहें या भगवान (Lord) का आशीर्वाद। आपको अपने हुनर की कद्र करते हुए इसे आगे ले जाते हुए ऊंचे मुकाम तक पहुंचाना चाहिए। इस दौरान आपको कई कठिनाइयों या अपने के तंज या उपहास का सामना करना पड़ सकता है। कुछ ऐसा ही हुआ बिहार (Bihar) की टीचर और पेंटर ललिता पाठक के साथ। बचपन गरीबी में बता, लेकिन मां-बाप ने आगे बढ़ने कके लिए कभी रोक और हमेशा ऊंची उड़ान भरने के लिए प्रेरित करते रहे। चित्रकारी (Painting) यह कला मुझे मां से मिली हैं। वह घर की दीवारों रंगती थी। आलता और रंगोली भी बनाती थी। देखते-देखते यह हुनर कब मेरे हाथ में आ गया पता ही नहीं चला।
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मेरा मन पूरी तरह रंगों में रंग गया और मुझे रंगोली बहुत भाने लगी। जब मैं सातवीं की कक्षा में पढ़ती थी तो घर के आंगन में रंगोली (Rangoli) सजाती थी। रंगोली को देखकर आसपड़ोस के लोग भी मुझे अपने घर बुला लाते थे। इस तरह शुरू हुआ मेरी चित्रकारी का सफर। अब हर आंगन को मेरे हुनर की आदत पड़ गई थी। वो अब मेरी ही रंगोली से सजते थे।
मां का दिया सबक भी था याद
बचपन में मैंने जिससे पेंटिंग करना सीखा वो ही कहती थी, कुछ पढ़ ले, पेटिंग से जीवन नहीं कटेगा। मां (Mother) की ये बातें कुछ समय के लिए जरूर बुरी लगती थी, पर थोड़ी देर बाद में वही उसी उदेड़बुन में खो जाती थी। स्कूल जाते रास्ते में जो मुझे दिखता मैं उसे अपनी स्लेट पर उतरा देती थी। जमा एक में साइंस (Science) की पढ़ाई कर रही थी। खर्चा भी ज्यादा थां। ट्यूशन का खर्चा बच्चों को पेंटिंग सीखा कर निकालती थी। इस बात का पता घर वालों को नहीं था, क्योंकि उनकी सोच थी कि लड़कियों का कमाना सही नहीं है।
पेंटिंग ने बदल दी, मेरी जिंदगी
12वीं पढ़ने के बाद 2004 में मेरी शादी (Marriage) कर दी गई। जिस वक्त शादी हुई तब ससुराल में आमदनी का कोई जरिया नहीं था। सोचा था रोजी-रोटी का संघर्ष मायके तक ही होगा, लेकिन संघर्ष की रेखाएं इतनी लंबी थीं कि ससुराल तक पीछा नहीं छोड़ा। पति कुछ कमाते नहीं थे और मुझे परिवार का स्वाभिमान ध्यान में रखते हुए काम करना था। चित्रकारी के सिवाय मुझे कुछ और आता नहीं था, तो उसी से जीवनयापन किया। पेंटिंग बेचकर ही 14 हजार का पहला फोन खरीदा।
पेंटिंग बेचकर ही 12वीं की, बीए, पोस्ट ग्रेजुएशन और दो बच्चों की पढ़ाई करवाई। यही नहीं, आज जो सरकारी नौकरी (Government Job) मिली है, उसकी पढ़ाई भी पेंटिंग बेचकर ही की। मुझे फख्र है कि पेंटिंग की बदौलत मैं इतना पढ़ पाई कि आज अपने परिवार में सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की हूं। लोगों ने तानों ने भी इस सफलता की मंजिल पहुंचाने में मेरी बहुत मदद की है।
इतनी भी आसान नहीं थी मेरी सफलता की कहानी
ललिता कहती है कि शादी, परिवार सब संभालते हुए पेंटिंग के कोर्स भी किए, ट्रेनिंग ली (Training) और इसी के साथ-साथ बाकी पढ़ाई भी की। बिहार में टेट देने जाते समय उसने सिर्फ दो समोसे खाए थे। पढ़ाई और घर को संभालते कम ही टाइम मिल पाता था। आज वो प्राइमरी टीचर है। वह देवी-देवताओं और शुभता की पेंटिंग बनाई। छोटे बच्चों को गोद में लिटा कर मैंने पेंटिंग की है।
मुझे घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी। पेंटिंग एग्जीबिशन में आपना हुनर पहुंचाने के लिए मुझे दूसरों की मदद लेनी पड़ी। वह पेंटिंग को बेचते और उस कमाई का कुछ हिस्सा मुझे देते। इस तरह मैंने अपनी कला को जीवित रखा और आज मेरी पेंटिंग देश ही नहीं विदेशों में भी जाती हैं। अब मैं साड़ी, मास्क, जूती, सूट, टी-शर्ट सभी पर मधुबनी पेंटिंग करती हूं। मैंने अपने पति को भी पेंटिंग करना सीख दिया हैं और अब वह भी मेरी मदद करते हैं। बच्चों को वह हर सुविधा दे रही हूं जो मुझे नहीं मिल पाईं।