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दत्तात्रेय जयंतीः भक्त की संकट की घड़ी में मदद करते हैं भगवान
हर साल मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। दत्तात्रेय को त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप माना गया है। इस बार दत्तात्रेय जयंती 18 दिसंबर शनिवार के दिन पड़ रही है। माना जाता है कि दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी। दत्तात्रेय के नाम पर ही दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। माना जाता है कि भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि, वैभव आदि प्राप्त होता है। यदि संकट की घड़ी में इनके भक्त सच्चे दिल से इन्हें याद करें तो ये उनकी मदद के लिए जरूर पहुंचते हैं।
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दत्तात्रेय जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद पूजा के स्थान पर साफ सफाई करें और गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद एक चौकी रखकर उस पर साफ कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद भगवान दत्तात्रेय को धूप, दीप, रोली, अक्षत, पुष्प आदि अर्पित करें. इसके बाद भगवान दत्तात्रेय की कथा पढ़ें और अंत में आरती करें और प्रसाद बांटें।
पुराणों के अनुसार इनके तीन मुख, छह हाथ वाला त्रिदेवमयस्वरूप है। चित्र में इनके पीछे एक गाय तथा इनके आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं। औदुंबर वृक्ष के समीप इनका निवास बताया गया है। विभिन्न मठ, आश्रम और मंदिरों में इनके इसी प्रकार के चित्र का दर्शन होता है।मान्यता के अनुसार दत्तात्रेय ने परशुरामजी को श्रीविद्या-मंत्र प्रदान की थी। यह भी मान्यता है कि शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेय ने विद्याएं दीक्षा दी थी। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय दत्तात्रेय को ही जाता है। दूसरी ओर मुनि सांकृति को अवधूत मार्ग, कार्तवीर्यार्जुन को तन्त्र विद्या एवं नागार्जुन को रसायन विद्या इनकी कृपा से ही प्राप्त हुई। गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेय की भक्ति से ही प्राप्त हुआ।
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