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इसलिए मनाया जाता सायर का त्यौहार, जानोगे वजह तो आप भी हो जाएंगे नतमस्तक
हिमाचल (Himachal) देवधरा है। यहां हर तरफ देवी-देवताओं का वास है। यहां विभिन्न प्रकार के मेले, त्यौहार (Festival) मनाए जाते हैं, जो पूरी श्रद्धा के साथ मनाए जाते हैं। ये त्यौहार धर्म, आस्था और संस्कृति (Religion, Faith and Culture) से जुड़े होते हैं। इन्हीं त्यौहारों में एक सायर या सैर का त्यौहार है। इस त्यौहार को आश्विन मास की संक्रांति को मनाया जाता है।
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इस त्यौहार को फूलों वाला त्यौहार भी कहा जाता है। वर्षा ऋतु के खत्म होने व शरद ऋतु के आगाज के उपलक्ष्य में ही यह त्यौहार मनाया जाता है। आश्विन महीने की संक्रांति को कांगड़ा (Kangra) , मंडी, हमीरपुर, बिलासपुर (Bilaspur) और सोलन सहित अन्य जिलों में सैर या सायर का त्यौहार बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। अतः भगवान (God) को धन्यवाद करने के लिए भी इस त्यौहार को मनाया जाता है।
वहीं इस समय खरीफ की फसल भी पक जाती है और फसलों की कटाई आरंभ होती है।इसलिए इस दिन सैरी माता को अनाज, फल और फसल का अंश चढ़ाया जाता है। साथ ही राखियां को उतार कर भी सैरी माता को चढ़ाई जाती है। जब यह त्यौहार मनाया जाता है तो ठंडे इलाकों में सर्दी की शुरूआत हो जाती है। लोग सर्दियों को काटने के लिए लकड़ियां और अनाज जमा कर लेते हैं। सैर के बाद अन्य त्योहारों की शुरुआत भी हो जाती है।
ऐसी धारणा है कि बरसात (Rainy Season) के दिनों में लोग कई बीमारियों और प्राकृतिक आपदाओं (Natural Disasters) के शिकार हो जाते थे। जो लोग बच जाते थे वे स्वयं को सौभाग्यशाली समझते थे। अतः यही कारण है कि वे इस त्यौहार को बड़ी प्रसन्नता से मनाते थे। वहीं यह त्यौहार अनाज पूजा और बैलों की खरीदो-फरोख्त के लिए भी मशहूर है। भादों महीने के दौरान देवी-देवता डायनों से युद्ध लड़ने देवालय चले जाते हैं और सायर के दिन देवालय में पहुंच जाते हैं । इस दिन ग्रामीण क्षेत्रों के देवालयों में देवी-देवता के गूर देव खेल के माध्यम से लोगों को देव-डायन युद्ध का हाल बताते हैं और यह भी बताते हैं कि इसमें किस पक्ष की विजय हुई है। वहीं बरसात के मौसम में किस घर के प्राणी पर बुरी आत्माओं का साया पड़ा है।
देवता का गूर इसके उपचार के बारे में भी बताता है। सैर के दिन ही नव दुल्हनें मायके से ससुराल लौट आती हैं। ऐसी मान्यता है कि भादों महीने के दौरान विवाह के पहले साल दुल्हन सास का मुंह नहीं देखती है। ऐसे में वह एक महीने के लिए अपने मायके चली जाती है। वहीं सैर मनाने के अपने-अपने तरीके हैं। सैर मनाने का तरीका हर क्षेत्र का अलग.अलग है। शिमला और सोलन में सैर सामूहिक रूप से मनाई जाती है। इस दिन जगह.जगह मेले लगते हैं और लोग इनमें उत्साह से शामिल होते हैं। ढोल-नगाड़े (Drums) बजाए जाते हैं और अन्य लोकगीतों और लोकनृत्यों का आयोजन किया जाता है। जहां एक तरफ कुल्लू, मंडी, कांगड़ा आदि क्षेत्रों में सैर एक पारिवारिक त्यौहार के रूप में मनाई जाती है, वहीं शिमला और सोलन में इसे सामूहिक तौर पर मनाया जाता है। हर क्षेत्र में सैर मनाने के अलग-अलग तरीके इस प्रकार हैं।
शिमला के मशोबरा और सोलन के अर्की में सांडों का युद्ध करवाया जाता है यह लगभग स्पेन पुर्तगाल और लैटिन अमेरिका में होने वाले युद्ध की तरह ही होते हैं। कुल्लू में सैर को सैरी साजा के रूप में मनाया जाता है। सैर के पिछली रात को चावल और मटन की दावत दी जाती है। अगले दिन कुल देवता की पूजा की जाती है जिसके लिए सुबह से ही तैयारी होना शुरू हो जाती है। साफ-सफाई करने के बाद नहा-धोकर हलवा तैयार किया जाता है और सब में बांटा जाता है। यह त्यौहार रिश्तेदारों से मिलने-जुलने और उनके घर जाने का होता है।
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