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#Dalai_Lama का नोबेल हुआ 31 साल का, जानिए क्या है शख्सियत
Last Updated on December 10, 2020 by
दलाई लामा विश्वभर में शांति के रूप में तिब्बती धर्मगुरु के नाम से जाने जाते हैं। दलाई लामा को 10 दिसंबर 1989 को शांति का नोबेल पुरस्कार (Nobel Peace Prize) मिला था। दलाई लामा का नाम तेनजिन ग्यात्सो है और उनका जन्म छह जुलाई 1935 को तिब्बत (Tibet) में हुआ। पिता का नाम चोक्योंग त्सेरिंग और माता का नाम डिकी त्सेरिंग था। दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर और दलाई लामा के वंशज करुणा, अवलोकेतेश्वर के बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं। ऐसा विश्वास है कि दलाई लामा अवलोकितेश्वर या चेनेरेजिंग का रूप हैं जो कि करुणा के बोधिसत्त्व तथा तिब्बत के संरक्षक संत हैं। दलाई लामा अभी तक शांति और प्रसन्नता के प्रचार-प्रसार के लिए पूरी दुनिया के 65 से भी अधिक देशों की एक से अधिक बार यात्रा कर चुके हैं। वर्ष 1959 से लेकर अभी तक दलाई लामा (Dalai Lama) को 85 से भी ज्यादा पुरस्कार मिल चुके हैं।
दो वर्ष की उम्र में बन गए थे दलाई लामा
दलाई लामा तिब्बतियों (Tibetans) के धर्मप्रमुख ही नहीं, विश्व शांति के दूत भी हैं। आधी सदी से ज्यादा समय से वह निर्वासन में हैं। बेशक वह चीन (China) की आंखों में खटकते हैं लेकिन उनका व्यक्तित्व ऐसा है कि सामने पड़ जाएं तो मन में असीम श्रद्धा व सम्मान की भावना उमड़ने लगती है। तेनजिन ग्यात्सो को जिस समय दलाई लामा के तौर पर मान्यता मिली थी, उस वक्त वे मात्र दो वर्ष के थे। कुंबुम मठ में अभिषेक के बाद उन्हें माता-पिता का ज्यादा साथ नहीं मिल पाया। कारण सीधा था ल्हासा से दस किमी दूर उतर-पूर्वी दिशा में पैदा हुआ दो वर्षीय बालक लहामो चेढ़प दलाई लामा बन चुका था। उसकी शिक्षा-दीक्षा उसी अनुरूप होनी थी। दलाई लामा ने स्वयं एक किताब में लिखा है कि एक छोटे बच्चे के लिए मां-बाप से इस तरह अलग रहना सचमुच बहुत कठिन होता है। उस वक्त तो उन्हें यह भी पता नहीं था कि दलाई लामा होने का मतलब क्या है। उन्हें सिर्फ यही पता था कि मैं दूसरे कई छोटे बच्चों की तरह एक छोटा बच्चा था। बचपन में उन्हें एक खास शौक था कि वह एक झोले में कुछ चीजें डालकर उन्हें कंधे पर लटका लेते थे व ऐसा नाटक करते थे कि कि एक लंबी यात्रा पर जा रहे हैं। अक्सर कहा करते थे कि वे ल्हासा जा रहे हैं। दलाई लामा खाने की मेज पर हमेशा जिद करते थे कि मुझे सबसे प्रमुख स्थान पर बिठाया जाए।
15 वें साल में राजनीतिक जिम्मेदारियों का निर्वाह
दलाई लामा केवल 15 वर्ष के थे तो उन्होंने अपनी सरकार के वरिष्ठ होने के नाते राजनीतिक जिम्मेदारियों का निर्वाह शुरू कर दिया था। वर्ष 1954 में महामहिम चीनी नेताओं से बातचीत करने चीन की राजधानी बीजिंग (Beijing) गए, जब चीन तिब्बत के बारे में असहयोगपूर्ण रवैया अपनाए हुए था। वर्ष 1956 में वे महात्मा बुद्व की 2500वीं वर्षगांठ पर भारत आए व तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) से तिब्बत की दुर्दशा पर लंबी बातचीत की। अंततः तिब्बत में चीन सरकार के बढ़ते आतंक से उत्पन्न खतरे को भांपकर उन्हें 1959 में तिब्बत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
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केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (Central Tibetan Administration) कशाग ने आज टी-बिल्डिंग के सिक्किंग हॉल (Sikyong Hall, T-building) में दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार की 31 वीं वर्षगांठ (31st Anniversary of Conferment of Nobel Peace Prize) मनाने के लिए एक आधिकारिक कार्यक्रम का आयोजन किया। इसमें दलाई लामा को 31 वर्ष पहले मिले शांति के नोबेल पुरस्कार मिलने की खुशी के पलों को याद किया गया। दलाई लामा कोविड-19 (Covid-19) के प्रकोप के चलते बीते मार्च माह से इस वक्त हिमाचल प्रदेश के मैक्लोडगंज (McLeodganj) स्थित पैलेस में ही हैं। इस अवधि में वह किसी से नहीं मिले।