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आखिर क्यों रखी जाती है चोटी, यहां जानिए इसका धार्मिक महत्व और वैज्ञानिक कारण
Last Updated on January 29, 2022 by sintu kumar
नई दिल्ली। दुनिया (World) के सभी धर्मों के रीति रिवाज अलग-अलग होते है। सभी लोग अपने-अपने धर्म के रीति-रिवाजों का पालन करते है। ये रीति-रिवाज (Customs and Traditions) कुछ धार्मिक होते हैं तो कुछ का वैज्ञानिक महत्व होता है। हिंदू (Himdu) धर्म में पूजा-पाठ और कर्मकांड कराने वालों को चोटी रखना अनिवार्य माना गया है। वहीं, कुछ लोग अपनी इच्छा पर चोटी रखते हैं। आमतौर लोग चोटी रखने वालों को कट्टर सोच का व्यक्ति मान लेते हैं, लेकिन हिंदू धर्म में शिखा यानि चोटी रखने की परंपरा बहुत पुरानी है। जानते हैं कि चोटी रखने के पीछे क्या कारण हैए साथ ही इस बारे में किस ग्रंथ में उल्लेख किया गया है।
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मुंडन-यज्ञोपवीत के बाद रखी जाती है चोटी
हिंदू परंपरा के मुताबिक पहले साल के अंत, तीसरे और पांचवें साल में बच्चों का मुंडन कराया जाता है। इस दौरान सिर में कुछ बाल छोड़ दिए जाते हैंए जिसे चोटी कहा जाता है। इस संस्कार को मुंडन संस्कार (Shaved Rites) कहा जाता है। यह सोलह संस्कारों में से एक है। इसके अलावा शिखा यानि चोटी रखने का संस्कार यज्ञोपवीत या उपनयन में भी किया जाता है। मुंडन या यज्ञोपवीत संस्कार के दौरान जिस स्थान पर चोटी रखी जाती है, उसे सहस्त्रार चक्र कहा जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर मनुष्य की आत्मा निवास करती है। वहीं, विज्ञान (Science) के अनुसार सहस्रार मस्तिष्क (Brain) का केंद्र है। यहीं से बुद्धि, मन और शरीर के अंगों का नियंत्रण होता है। जानकारों का मानना है कि इस स्थान पर चोटी रखने से मस्तिष्क का संतुलन अच्छा रहता है। चोटी रखने से सहस्रार चक्र जागृत रहता है।
सुश्रुत संहिता में है जिक्र
शास्त्रों में चोटी के आकार के बारे में भी बताया गया है। सुश्रुत संहिता के मुताबिक चोटी गाय (Cow) के खुर के आकार का रखना चाहिए। इस आकार की चोटी रखने से मन और मस्तिष्क का संचालन बेहतर रहता है।
सभी इंद्रियां होती हैं सुसंचालित
सुश्रुत संहिता के मुताबिक चोटी के स्थान पर सभी नाड़ियों का मिलन होता है। इस स्थान को अधिपतिमर्म कहा जाता है। यहां चोट लगने से इंसान की तक्काल मौत हो सकती है। इस स्थान पर सुषुम्ना नाड़ी का संगम होता है। इस नाड़ी का संबंध मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर की सभी इंन्द्रियों से रहता है।