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कौव्वे, कुत्ते,गौमाता के बाद लक्ष्मी पूजन; ऐसी होती है गोरखाओं की दिवाली
चंबा (सुभाष महाजन)। गोरखा समाज (Gurkha Community) के लोगों की दिवाली (Diwali) परंपरागत रूप से सबसे अलग होती है। धनतेरस के लिए गोरखा कौव्वों (Worship Crow) की पूजा करते हैं। उसके अगले दिन, यानी नरक चतुर्दशी को ये घर के पालतू कुत्तों (Pet Dogs) की पूजा करते हैं। एक बात समान है। दिवाली के दिन गोरखा समुदाय मां लक्ष्मी की पूजा करता है। इस दिन गौमाता की भी पूजा की जाती है। इन्हीं परंपराओं के साथ गोरखाओं ने डलहौजी के पास बकलोह में धूमधाम से दिवाली मनाई।
कुत्तों को देते हैं उनकी पसंद का भोजन
दिवाली की शुरुआत धनतेरस के दिन सुबह कौव्वों को पूजने के साथ होती है। छोटी दीपावली पर गोरखा समुदाय अपने पालतू कुतों का पूजन करता है। कुत्तों को उनकी पसंद का खाना खिलाया जाता है। फिर दीपावली के दिन सुबह गौमाता (Cow Worship) का पूजन किया जाता है। रात को सभी घरों के लोग मिलकर लक्ष्मी माता पूजन करते हैं।
गांव के बच्चे और बड़े अलग-अलग टोलियों में घर-घर जा जाकर भईली मांगते हैं। नाच गाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं। इसके एवज में उन्हें घरों से पैसे, खिल्ला, पतासा औऱ घर में बनीं मिठाइयां (Sweets), सैल रोटी, गुजिया, बटुक, फैनी दी जाती है। दीपावली से एक महीने पहले घरों में फेनी और गुझिया बनना शुरू हो जाती है। दिवाली के दूसरे दिन भी लोग भईली मांगेंगे। बुधवार को भाई दूज के टीके के साथ पर्व समाप्त होगा।