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पीड़ित पिता की दास्तांः रोजगार गया, पत्नी की मौत हुई , बेटियों को भेजना पड़ा आश्रम
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के झंझीड़ी इलाके में बीमार पिता मोती लाल को अपने दो बच्चियों को खुद से दूर करना पड़ा। दो साल पहले मोती लाल को पैरालिसिस का अटैक पड़ा। इसके दो महीने बाद ही पैरालिसिस होने की वजह से मोतीलाल का रोजगार चला गया। कुदरत ने ऐसा खेल रचा कि दो महीने बाद ही पत्नी की भी मौत हो गई। मोतीलाल की तीन बेटियां और एक बेटा है। पहले बच्चों के सिर से बीमार पिता का दर्द और फिर सिर से मां का साया उठ जाना बच्चों के लिए अपार दु:ख लेकर आया। मोतीलाल के आर्थिक हालात इतने खराब हैं कि वे ना तो अपनी दवाइयां खरीद सकते हैं और ना ही मकान का किराया दे पा रहे हैं।
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पैरालिसिस से पीड़ित बीमार मोती लाल का कहना है कि जब तक वह स्वस्थ थे, तब तक घर परिवार का गुजर-बसर आसानी से हो रहा था, लेकिन अब हाथ पैर साथ नहीं देते। 2 साल तक जैसे तैसे घर का गुजारा हुआ। बच्चों की मदद से ही घर पर सब काम करते हैं, लेकिन पैरालिसिस होने की वजह से रोजगार के साधन नहीं हैं। ऐसे में उन्होंने अपनी दो बेटियों को आश्रम भेजने का मन बनाया है।
चाइल्ड वेल्फेयर कमेटी की मदद से दोनों बेटियां आश्रम में रहकर पढ़ाई करेंगी, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। सीडब्ल्यूसी की चेयरपर्सन अमिता भारद्वाज ने मोतीलाल से बड़ी बेटी और छोटी बेटी को भी आश्रम भेजने चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट भेजने के लिए मन बनाने को कहा है, ताकि बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सके। उन्होंने मोतीलाल की सहायता के लिए जिला प्रशासन से भी बात करने संपर्क करने की बात कही है। मोती लाल के चार बच्चे हैं, जिनमें तीन बेटियां और एक बेटा है। बड़ी बेटी की उम्र 14 साल, दूसरी बेटी की उम्र 10 साल, तीसरी बेटी की उम्र 7 साल जबकि सबसे छोटे बेटे की उम्र 6 साल है। बेटी मुस्कान ने बताया कि दो साल पहले पिता बीमार हुए। उसके बाद मां का साया भी सिर से उठ गया। अब सब बच्चे मिलकर घर पर पिता की मदद करते हैं। स्कूल जाने से पहले सारा काम कर स्कूल जाते हैं। उन्हें उम्मीद है कि पिता जल्द स्वस्थ होंगे और पहले की तरह काम पर जाने लगेंगे
बीमार मोती लाल ने बताया कि दो साल पहले जब वे रोजाना की तरह दुकान पर काम कर रहे थे, तो शिवरात्रि के दिन अचानक वे बीमार पड़ गए। अस्पताल जाकर पता लगा कि पैरालिसिस का अटैक पड़ा है। इसके बाद काम पर जाना भी मुश्किल हो गया। 2 महीने बाद ही पत्नी की भी मौत हो गई। बच्चों के सिर से मां का साया उठ गया। अब बच्चे ही घर पर सारा काम करते हैं। ना तो अपने घर परिवार से सहयोग मिलता है और ना ही सरकार से। पड़ोसी ही मदद के लिए आगे आते हैं। बीते एक साल से मकान मालिक ने भी कमरे का किराया तक नहीं लिया है। मोती लाल को जरूरत है सरकार-प्रशासन की मदद की। दरकार है उन योजनाओं के लाभ की, जिसके वे हकदार हैं। जन हितैषी होने का दावा करने वाली सरकार को मोती लाल की मदद के लिए आगे आना चाहिए, ताकि वह जल्द से जल्द स्वस्थ हो और एक बार फिर बच्चों को अपने पास बुला सकें।
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