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संघ की बोई फसल को काटने आज भोपाल पहुंच रहे हैं मोदी
भोपाल। आज यानी सोमवार 15 नवंबर को पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल (Bhopal) में रहेंगे। वे मध्य प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार के कई कार्यक्रमों के भागीदार बनेंगे। लेकिन सबकी निगाहें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस महासम्मेलन पर टिक गई है। इसकी दो वजहे हैं, पहला, राज्य की सियासत में जनजातीय आबादी महत्वपूर्ण रोल अदा करती है, तो दूसरे का संबंध आरएसएस से है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस मुहिम को लेकर बीजेपी और मध्य प्रदेश सरकार से कहीं अधिक आरएसएस का फोकस है। इसकी वजह सियासी नहीं बल्कि वैचारिक है।
आजादी से ठीक तीन साल बाद साल 1952 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने मध्यप्रदेश के जशपुर जोकि अभी छत्तीसगढ़ में पड़ता है। वहां अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम की नींव रखी थी। और इसके साथ ही आदिवासियों के बीच संघ की वैचारिक सोच को फैलाने और धर्मांतरण को रोकना का काम शुरु कर दिया था। हालांकि, आरएसएस (RSS) ट्राइबल्स को आदिवासी नहीं बल्कि वनवासी बताता है। जिसका मुख्य कारण उसके मूल वैचारिक सोच से जुड़ा है। और आदिवासी कहने से आरएसएस के उस मूल वैचारिक सोच पर गहरा आघात पहुंचता है।
दरअसल, ट्राइबल्स को संघ आदिवासी नहीं, बल्कि वनवासी कहता है, क्योंकि आदिवासी का मतलब होता है। जो इसी जमीं का बाशिंदा हो। यदि ऐसा है तो फिर ये साबित होता है कि आर्य भारत के मूलनिवासी नहीं थे। संघ का मानना है कि आर्य भारत के मूल निवासी थे। अगर वे उन्हें आदिवासी कहने लगेगा तो उसकी वैचारिक सोच ही छिन्न भिन्न हो जाएगी। इसलिए वो आदिवासियों को वनवासी कहकर पुकारता है।
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मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ , झारखंड, नॉर्थ इस्ट व बिहार के कुछ हिस्सों में आदिवासियों की संख्या बहुतायत है। आजादी के बाद जब संघ धीरे-धीरे देश भर में पांव पसार रहा था, तब उसकी नजर घने जंगलों के बीच रहने वाले इन ट्राइबल्स समुदाय के कनवर्जन यानी धर्मातंरण पर पड़ी। आदिवासी बड़ी संख्या में ईसाई धर्म को अपना रहे थे। जिसको देखते हुए आरएसएस ने इन इलाकों में धर्मातंरण को रोकने के लिए मुहिम छेड़ दी।
वह उन्हें हिंदू सोसायटी से जोड़ने में लग गया जो अभियान अभी तक चल रहा है। RSS ने आदिवासियों के बीच स्कूल खोले, हॉस्टल बनाए। वे एक रिफॉर्म लाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके पीछे उनका एजेंडा आदिवासियों को हिंदू सोसायटी से जोड़ना है। वे ये मानते हैं कि आदिवासी हिंदू ही हैं, जबकि कई आदिवासी संगठन इसका विरोध करते हैं क्योंकि वे खुद को हिंदू नहीं बल्कि सरना धर्म का मानते हैं। RSS इसका मुखर विरोधी है।
आरएसएस के सरसंघचालक रहे सदाशिव माधव राव गोवलकर सियासत में आरएसएस के योगदान को लेकर उतने उत्साहित नहीं थे। उनका मेन फोकस हिंदू धर्म के वैचारिक सोच को लेकर था। आज भी आरएसएस देश में सरकार बीजेपी की बनाने की से बड़ी जीत अपने आइडियोलॉजी के प्रचास प्रसार को मानता है। वह आदिवासियों को हिंदू बताकर हिंदूओं की संख्या सबसे ज्यादा करना चाहते हैं। कुछ ही दिनों में जनगणना भी होनी है। RSS चाहता है कि ट्राइबल्स जिनके बीच वो सालों से काम कर रहा है, अब वो जनगणना में खुद का धर्म हिंदू लिखें।
सरना धर्म लिखने पर क्या होगी स्थिति
एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में देश भर में अनुसूचित जनजाति की आबादी देश की कुल आबादी का 8.14% हैं,और देश के क्षेत्रफल के करीब 15% भाग पर निवास करते हैं। अगर वे जनगणना के कॉलमें अन्य धर्म को लिखेंगे तो इसका सीधा फर्क हिंदू धर्म की आबादी पर पड़ेगा। वहीं, कई राज्यों में सरना धर्म को लेकर खूब सियासी रोटी पकायी जाती है। बंगाल में ममता बनर्जी भी सरना धर्म का समर्थन कर चुकी हैं। झारखंड में हेमंत सोरेन लगातार सरना को एक धर्म के तौर पर शामिल करने की मांग कर रहे हैं। ऐसा होता है तो हिंदूओं की संख्या कम होगी जो RSS की आइडियोलॉजी की एक तरह से हार होगी। इसलिए वे ऐसा नहीं होने देंगे।
सत्ता में क्या है अनुसूचित जनजाति का रोल
साल 2011 की आबादी के हिसाब से देशभर में शेड्यूल ट्राइब्स, यानी ST की आबादी 8.2% है। लोकसभा की 543 में से 47 सीटें ST के लिए रिजर्व हैं। एमपी में जहां बिरसा मुंडा की जयंती मनाई जा रही है वहां ST पॉपुलेशन 21.1% है और यहां विधानसभा की कुल 230 सीटों में से 47 सीटें ST के लिए रिजर्व हैं। साल 2018 में हुए मप्र विधानसभा के चुनाव में BJP को बड़ा झटका लगा था, क्योंकि SC, ST कम्युनिटी उससे दूर हो गई थी। ST के लिए रिजर्व 47 सीटों में से BJP के खाते में सिर्फ 16 आईं थीं, जबकि 2013 में पार्टी ने ST की 31 सीटें जीती थीं। ऐसे में आदिवासियों को दोबारा पार्टी के साथ जोड़ने के लिए बड़े स्तर पर प्रदेश भर में अभियान चल रहा है।
कुछ दिनों पहले इसी सिलसिले में गृहमंत्री अमित शाह भी जबलपुर आए थे। दलितों और आदिवासियों के स्थानीय नायकों को सम्मान दिया जा रहा है। उन्हें संगठन में शामिल किया जा रहा है। एमपी में ये एक्सपेरिमेंट भी है। यहां पॉजिटिव असर दिखा तो पूरे देश में संघ इसे लागू कर सकता है। गौरतलब है कि आरएसएस लंबे समय से आदिवासी इलाके में लगातार काम कर रहा है। इसके नतीजे भी दिखने शुरु हो गए हैं। नॉर्थ इस्ट में बीजेपी सरकार में है। मध्य प्रदेश पर भी बीजेपी काबिज है। वहीं, झारखंड में भी संघ की सोच का व्यापक असर अब आदिवासियों में दिखना शुरू हो चुका है।
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