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कबाड़ बीनने वाले बच्चों के लिए तेजसिया ने बना दिया ‘बस में क्लासरूम’
नई दिल्ली। मुझे बड़े होकर एक पुलिस अधिकारी बनना है बस के अंदर चल रही क्लास रूम में बैठे निर्मल ने अपने भविष्य को लेकर यह बात कही। दिल्ली की सड़कों पर हर दिन 4 बस झोंपड़ पट्टियों में रहने वाले बच्चों शिक्षा पहुंचाने के लिए निकला करती हैं। इन बसों के माध्यम से उन बच्चों तक शिक्षा पहुंचाई जा रही है जिनका स्कूल शिक्षा से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है।
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यह सभी बच्चे कूड़ा कचरा उठाना और कबाड़ बीनने का काम करते हैं। हर दिन 4 बसें दिल्ली की अलग अलग 8 लोकेशन पर जाती हैं और इन बच्चों को मूलभूत शिक्षा प्रदान की जाती है। एक समय पर एक बस में करीब 50 बच्चे पढ़ाई करते हैं।दरअसल दिल्ली के विभिन्न लोकेशन पर बस में स्थानीय गरीब और झोंपड़ पट्टी वाले बच्चों को हर सुविधा मुहैया कराई जाती है जो एक क्लास रूम में होती है। एक बस में ड्राइवर, हेल्पर और दो टीचर होते हैं, बच्चों को चॉक और स्लेट दी जाती है। साथ ही बस के अंदर ही ब्लैक बोर्ड लगाया जाता है और फिर छोटे ‘अ से अनार’ और ‘ए फॉर एपल’ आवाज शुरू हो जाती है। पढ़ाई के साथ ही बच्चों को भोजन भी दिया जाता है।
‘तेजसिया’ नामक निजी एजीओ जो बीते 10 सालों से समाज के लिए काम कर रहा है। इनके द्वारा बच्चों को पढ़ाने पहुंचाने का काम किया जा रहा है, इस प्रोजेक्ट का नाम ‘होप बसेस‘ है।यह प्रोजेक्ट कई साल पहले एक बस के साथ शुरू किया गया था, लेकिन बीते सालों में 4 बसों द्वारा दिल्ली की विभिन्न स्थानों पर इन्हें भेजा जाने लगा।दरअसल एजीओ द्वारा पहले उस जगह का सर्वे किया जाता है यदि एजीओ की टीम को लगता है कि यहां ऐसे बच्चों की संख्या ज्यादा है जिन्हें पढ़ाई की जरूरत है। उधर एक बस को भेजा जाता है। इसी तरह सारी 8 लोकेशन ढूंढी गई।
पिछले कई सालों में कई बच्चों का सरकारी स्कूल में एडमिशन करा कर पढ़ाई करवाई गई। इसके अलावा बच्चों को किस तरह रहना चाहिए, किस तरह बात करनी चाहिए या सभी बातें इस क्लासरूम में बताई जाती हैं। एजीओ में कार्यरत एबना एडविन बताती हैं कि, हम जगहों पर बच्चों को पढ़ा रहे हैं इनमें कीर्ति नगर स्थित कमला नगर, आर के पुरम स्थित एक कॉलोनी और गुरुग्राम स्थित इन बसों को भेजा जाता है।सुबह 9 बजे से शुरू होता है, बस एक घंटे में सभी लोकेशन पर पहुंच जाती है उसके बाद 10 बजे से 12 बजे तक एक क्लास दी जाती है।उसके बाद ही वही बस वहां से दूसरी लोकेशन पर जाकर 2 बजे से 4 बजे तक अन्य बच्चों को पढ़ाई मुहैया कराते हैं। एजीओ के अनुसार, 80 फीसदी बच्चे ऐसे है, जिन्होंने कभी स्कूल नहीं देखा। कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो बीच बीच में स्कूल जाते रहे लेकिन फिर जाना छोड़ दिया। दरअसल सभी बच्चों के माता पिता भी रिक्शा चलाने का काम करते हैं, कुछ घरों में काम, सड़कों से कूड़ा उठाने का काम आदि करते हैं। इसलिए यह बच्चे पढ़ाई से दूर रह जाते हैं।
हालांकि बस के अलावा एक छोटे स्कूल भी है, लेकिन कोविड के कारण स्कूल में बच्चों को पढ़ाना बंद कर दिया, इसके अलावा बसों में भी तभी पढ़ाना शुरू किया जब सरकार ने डीटीसी बसों में यात्रा करने की इजाजत दी।इस एजीओ के साथ करीब 40 वॉलेंटियर्स जुड़े हुए हैं वहीं करीब 900 बच्चों को पढ़ाया जाता है।बच्चों को पढ़ाने के लिए 20 से अधिक टीचिंग टीम है। जो वॉलंटियर्स करने के साथ साथ बच्चों को पढ़ाते हैं।टीचर्स बच्चों को इतना तैयार करते हैं जितने में वो सरकारी स्कूल में एडमिशन ले सकें। हालांकि बच्चों के पहचान पत्र आदि कागजात पूरे न होने पर एजीओ के द्वारा एडमिशन कराया जाता है।इनमें एक टीचर ऐसे भी हैं जिनकी कोविड के दौरान नौकरी चली गई, जिसके बाद उन्होंने एजीओ के साथ काम करना शुरू किया। हालांकि आर्थिक स्थिति ठीक रहे इसलिए एनजीओ द्वारा टीचर को आर्थिक मदद भी दी जाती है।हालांकि बच्चों के अलका एजीओ विकलांग बच्चों को भी पढ़ाने का काम करती है, वहीं महिलाओं को सिलाई भी सिखाई जाती है।
–आईएएनएस
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