-
Advertisement
ओलंपिक पदक विजेता इस दिव्यांग खिलाड़ी की हिमाचल सरकार ने नहीं की कोई कद्र
Last Updated on February 25, 2022 by sintu kumar
वी कुमार/ मंडी। जब ओलंपिक खेलों का आयोजन होता है तो भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ियों को पलकों पर बैठाया जाता है। जब खिलाड़ी मेडल जीतकर वापिस अपने वतन लौटते हैं तो उनपर सरकारें करोड़ों की बौछारें करने के साथ-साथ सरकारी नौकरियों( Govt jobs) का पिटारा भी खोलती हैं। लेकिन ये सिर्फ उन्हीं खिलाड़ियों के लिए होता है जो पूरी तरह से सक्षम होते हैं, अक्षम खिलाडि़यों की शायद सरकार की नजरों में कोई वेल्यू नहीं होती। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सीएम जयराम( CM Jairam Thakur) के गृह जिला मंडी की एक दिव्यांग ओलंपिक विजेता खिलाड़ी बीते 7 वर्षों से अपने हक का इंतजार कर रही है, लेकिन सरकार के पास शायद इस दिव्यांग खिलाड़ी को देने के लिए कुछ भी नहीं है।
यह भी पढ़ें- बजट सत्रः सीएम जयराम बोले- हेल्पलाइन नंबर में सुबह तक 60 लोगों ने रजिस्टर किया
बात मंडी जिला के सरकाघाट उपमंडल के भडरेसा गांव की 21 वर्षीय दिव्यांग खिलाड़ी पलक भारद्वाज की हो रही है। 2015 में पलक ने अमेरिका के लॉस एंजलिस में हुए स्पेशल ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया और रोलर स्केटिंग में देश को दो सिल्वर मेडल दिलाए। जब पलक वापिस अपने देश पहुंची तो सरकार ने इसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। पलक के पिता भीम सिंह भारद्वाज ने 2015 से 2017 तक अपनी बेटी के हक की लड़ाई लड़ी और मीडिया के माध्यम से सरकार तक अपनी बात पहुंचाई। तत्कालीन सरकार ने ऐसे खिलाड़ियों को 25 हजार प्रति मेडल की दर से प्रोत्साहन राशि देने का निर्णय लिया, जिसे पलक के परिजनों ने पूरी तरह से ठुकरा दिया। भीम सिंह भारद्वाज ने बताया कि पड़ोसी राज्यों ने अपने प्रदेश के विशेष खिलाड़ियों पर लाखों रूपए प्रोत्साहन राशि के तौर पर दिए लेकिन हिमाचल सरकार ऐसा नहीं कर पाई। भीम सिंह को इस बात का मलाल है कि सरकार की नजरों में विशेष खिलाड़ियों की उपलब्धि को लेकर कोई उत्साह नहीं है।
भीम सिंह भारद्वाज का कहना है कि ओलंपिक विजेता खिलाड़ियों पर सरकारें करोड़ों रूपए लुटाती हैं और उन्हें उच्च पदों पर सरकारी नौकरियां भी देती हैं। तो ऐसे में क्या दिव्यांग खिलाड़ियों का भी उतना ही हक नहीं बनता। इन्होंने सरकार से मांग उठाई है कि उनकी बेटी को सम्मानजनक प्रोत्साहन राशि और सरकारी नौकरी दी जाए, ताकि वो भी पूरे सम्मान के साथ अपना जीवन यापन कर सके। स्पष्ट रूप से बोलने में असमर्थ पलक भी यही चाह रही है कि सरकार उसे उचित मान-सम्मान दे। पलक ने बताया कि उसे सरकारी नौकरी की जरूरत है ताकि उसका भविष्य सुरक्षित हो सके। सरकार को चाहिए कि वो ओलंपिक और विशेष ओलंपिक में भेदभाव को समाप्त करे। अगर ओलंपिक में मेडल लाने पर देश का मान-सम्मान बढ़ता है तो फिर दिव्यांग खिलाड़ी भी अपनी अक्षमता के बावजूद मेडल लाकर देश का ही गौरव बढ़ाते हैं। देखना होगा कि सरकार की नजरों में इन खिलाडि़यों के प्रति रवैये में बदलाव आता है या नहीं।