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हिमाचल हाई कोर्ट से सरकार को बड़ी राहत, मरीजों को मिलेगी यह सुविधा
शिमला। हिमाचल उच्च न्यायालय (Himachal High Court) ने राज्य सरकार को आईजीएमसी शिमला (IGMC Shimla) में पूरी तरह मानवीय आधार पर Covid-19 के रोगियों को इलाज मुहैया करवाने के उद्देश्य से नया ओपीडी (OPD) ब्लॉक ध्ट्रॉमा सेंटर खोलने की अनुमति दे दी है । इस अंतरिम आदेश को पारित करते हुए न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश सत्येन वैद्य ने पर्यावरण एवं वन पर्यवेक्षी समिति के निर्णय व एनजीटी (NGT) के फैसले के खिलाफ दायर राज्य सरकार की याचिका पर यह आदेश दिए। कोर्ट ने कहा कि Covid-19 की गंभीरता को देखते हुए आवश्यक समझा की याचिकाकर्ता राज्य को आईजीएमसी शिमला में विशेष रूप से मानवीय आधार परए पूरी तरह से Covid-19 के रोगियों को इलाज मुहैया करवाने के उद्देश्य से नया ओपीडी ब्लॉक ध्ट्रॉमा वार्ड खोलने की अनुमति दे दी जाए। अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि प्रचलित परिस्थितियों की अत्यावश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए यह आदेश पारित किया जा रहा है और इसे किसी भी प्रकार का उदाहरण या अधिकार पेश करने के लिए नहीं माना जाएगा। याचिकाकर्ता.राज्य सरकार या कोई अन्य व्यक्ति या प्राधिकरण इस आदेश को एक मिसाल के रूप में उद्धृत नहीं करेगा जब तक की क्षेत्राधिकार यानी जूरिडिक्शन (Juridiction) का मुद्दा तय नहीं किया जाता है। कोर्ट ने केंद्रीय मंत्रालय को भी नोटिस जारी किया ।
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राज्य सरकार की ओर से दायर याचिका में पर्यावरण एवं वन पर्यवेक्षी समिति के निर्णय को चुनौती दी गयी है, जिसमे की राज्य सरकार को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal) के समक्ष आवेदन दाखिल कर ओपीडी ब्लॉक के आगे अनुमोदन ध्स्वीकृति के लिएए आईजीएमसी में ट्रामा वार्ड का निर्माण करने की अनुमति मांगने की सलाह दी गयी थी। राज्य सरकार की ओर से विशेष रूप से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विनय कुठियाला ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की याचिका में तर्क दिया कि राज्य सरकार एचपी टाउन कंट्री प्लानिंग एक्ट (HP Town Country Planning Act) के साथ-साथ एचपी नगर निगम अधिनियम के तहत सरकार का एक वैधानिक कर्तव्य और दायित्व है, मगर एनजीटी के आदेश के कारण अपनी वैधानिकता व संवैधानिक कर्तव्य का पालन करने में असमर्थ है और यह भी आरोप लगाया गया कि एनजीटी उक्त आदेश पारित करते समय अपने क्षेत्राधिकार से बाहर हो गया है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि एनजीटी को इस तरह के आदेश पारित करने का क्षेत्राधिकार नहीं है जो मामले वनए जल और पर्यावरण से संबंधित अधिनियम के दायरे में नहीं आते हैं।
कुष्ठ रोग गृह के निरीक्षण और मरम्मत के आदेश
फागली स्थित कुष्ठ कॉलोनी में मूलभूत सुविधाओं की कमी से जुड़े मामले में प्रदेश हाईकोर्ट ने उपायुक्त शिमला को कुष्ठ कॉलोनी फागली (Leprosy Colony Fagli) स्थित कुष्ठ रोग गृह का निरीक्षण करने व चार सप्ताह की अवधि के भीतर आवश्यक मरम्मत कार्य सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने यह आदेश नीरज शाश्वत द्वारा दायर याचिका पर पारित किए। आरोप लगाया गया है कि लगभग एक दशक पहले सरकार द्वारा कुष्ठ रोगियों को शिमला के फागली (Fagali) में एक इमारत आवंटित की गई थी।
जो अब जर्जर हालत में बदल गई है। प्रार्थी ने आरोप लगाया है कि तब से राज्य सरकार द्वारा उस भवन में कोई रखरखाव नहीं किया गया है। आरोप लगाया गया है कि कुष्ठ रोगियों के पास शौचालय (Toilet) तक नहीं है, पानी की उचित सुविधा नहीं है, बिजली की फिटिंग खतरनाक स्थिति में है, खिड़कियां और दरवाजे टूटे हैं, सीवरेज सिस्टम में रिसाव है जिसके कारण मरीजों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। इस मामले को विभिन्न अधिकारियों के समक्ष भी उठाया गया था, लेकिन उनमें से किसी ने भी इन लोगों की स्थिति में सुधार के लिए कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। सर्दी का मौसम शुरू हो गया है और बर्फबारी से मरीजों की परेशानी और बढ़ जाएगी। याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार को तत्काल प्रभाव से कुष्ठ कॉलोनी को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है। कोर्ट ने मामले को अनुपालना के लिए 07-03-2022 के लिए सूचीबद्ध किया।
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