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इस बार बिना रोहिणी नक्षत्र के मनानी होगी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
Last Updated on August 9, 2020 by Deepak
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बिना रोहिणी नक्षत्र के ही मनाना होगा। तीन महानिशाओं में से एक मोहरात्रि का उत्सव मनाने के अधिकतम योग 11 एवं 12 अगस्त को मिल रहा है, जबकि रोहिणी नक्षत्र का मान 13 अगस्त को भोर में एक घंटा, 55 मिनट के लिए मिलेगा। रोहिणी की निकटता और विशेष मान्यता को देखते हुए 11 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना अधिक धर्म संगत है।
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वशिष्ठ ज्योतिष सदन के अध्यक्ष पंडित शशिपाल डोगरा ने बताया कि काशी, उज्जैन और देश के अन्य हिस्सों से प्रकाशित विभिन्न पंचांगों में ग्रह गणना के मूलभूत अंतर के कारण तिथियों में भिन्नता आती है। यही वहज है कि 11 और 12 दोनों ही दिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने के योग बन रहे हैं। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि का प्रारंभ 11 अगस्त को सुबह 09 बजकर 04 मिनट पर होगा। यह तिथि 12 अगस्त को दिन में 11 बजकर 11 मिनट तक रहेगी। रोहिणी नक्षत्र का प्रारंभ 12 अगस्त की रात्रि को 03 बजकर 20 मिनट से हो रहा है और समापन 13 अगस्त की सुबह 05 बजकर 16 मिनट पर होगा। ऐसे में 11 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना सही रहेगा। अष्टमी पूजन का सर्वमान्य मुहूर्त 11 अगस्त की रात्रि 12 बजकर 05 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक है। 43 मिनट के इस शुभ मुहूर्त में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का विधान पूर्ण करना श्रेयषकर होगा।
पंडित डोगरा के मतानुसार शैव संप्रदाय के लोग 11 एवं वैष्णव संप्रदाय के लोग 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे। मथुरा और द्वारिका में 12 अगस्त को जन्मोत्सव मनाया जाएगा। धर्म सिंधु, श्रीमद भगवत, विष्णु पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण में भी अर्ध रात्रि युक्त अष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म की पुष्टि की है। इसलिए 11 अगस्त (मंगलवार) को ही व्रत करना शुभ और फलदायक है। धर्म सिंधुकार ने एकादशी, अष्टमी आदि व्रतों मे गृहस्थ जनों को पूवर्विधा में ही व्रत करने का निर्देश दिया है। जबकि वैष्णव को पर व्रती कहा गया है।