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प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होना भी अपराध,सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट (The Supreme Court) ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम कानून (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत प्रतिबंधित संगठनों की सदस्यता पर अपने ही 12 साल पुराने फैसले को गलत करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट आज केंद्र और असम सरकार की रिव्यू पिटीशन पर फैसला सुना रहा था। जस्टिस एमआर शाह सीटी रविकुमार और संजय करोल की बेंच ने 2011 में दिए फैसले को खारिज कर दिया। बेंच ने कहा कि यदि कोई प्रतिबंधित संगठन का सदस्य (Member of a Banned Organisation) है तो उसे अपराधी (Considering him as Criminal) मानते हुए अनलॉफुल एट्रोसिटीज प्रिवेंशन एक्ट के तहत कार्रवाई की जा सकती है। यानी उसके खिलाफ भी मुकदमा चलेगा। कोर्ट ने आठ फरवरी को रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई शुरू की थी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, सीनियर एडवोकेट संजय पारिख को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
2014 में मामले को बड़ी बेंच के पास भेजा था
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस मार्कंडेय काटजू (Supreme Court bench of Justice Markandey Katju) और जस्टिस ज्ञान सुधा की बेंच ने 2011 में अरूप भुइयां बनाम असम सरकार इंद्र दास बनाम असम सरकार और केरल सरकार बनाम रानीफ केस का फैसला सुनाया था।बेंच ने कहा था कि केवल प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने से कुछ नहीं होगा। एक व्यक्ति तब तक अपराधी नहीं जब तक कि वह हिंसा का सहारा नहीं लेता है या लोगों को हिंसा के लिए उकसाता नहीं है। जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम सप्रे की बेंच ने 2014 में इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया था। तब केंद्र सरकार ने अपील दायर करते हुए कहा था कि सरकार का पक्ष सुने बिना केंद्रीय कानूनों की व्याख्या की गई।