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हिमाचल में सेब पर संग्राम जारी: ‘आज रेट तय कर रहा है अडानी, किसान की औकात खत्म’
Last Updated on September 6, 2021 by Deepak
शिमला। सेब के दाम पर लगातार किसान और बागवान संगठन सरकार (Government) पर दबाव बना रहे हैं। वहीं, आज राजधानी शिमला के रोहड़ू में राज्य के 8 किसान संगठनों (Farmers Union) ने बैठक में भाग लिया। इस दौरान किसान संगठनों ने कहा कि सेब की खेती पर गंभीर संकट आ गया है। सरकार द्वारा बागवानी में दी जा रही सब्सिडी बंद कर दी गई है। जिससे सेब की खेती (Apple Farming) की लागत बहुत अधिक बढ़ गई है। मौसम की मार से सेब की खेती पर असर बुरा पड़ रहा है। एक ओर लागत लगातार बढ़ रही है। वहीं, दूसरी तरफ उत्पादन घट रहा है। इसके साथ ही सरकार और एपीएमसी की लचर कार्यप्रणाली से किसानों का मंडियों में शोषण किया जा रहा है। आज मंडियों में गैर कानूनी रूप से कारोबार किया जा रहा है।
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एपीएमसी कानून का हो रहा उल्लंघन
एपीएमसी कानून के अनुसार जिस दिन मंडी में किसान का उत्पाद बिकेगा, उसी दिन भुगतान किया जाएगा। लेकिन ना तो अडानी और ना ही मंडियों में भुगतान कानून के अनुसार हो रहा है। लेबर, छूट, बैंक ड्राफ्ट और बैंक चार्ज में गैरकानूनी तरीके से कटौती की जा रही है। एक ओर सरकार बागवानों से बात नहीं कर रही है, दूसरी ओर सरकार के मंत्री मंडियों में आढ़तियों और लदानीयों से मिल रहे हैं। हाल ही में सरकार के मंत्रियों के द्वारा लगातार फल मंडियों के दौरे करने के बावजूद भी गैरकानूनी कारोबार जारी है। इससे सरकार की अदानी जैसी कंपनियों और आढ़तियों व लदानी के साथ गठजोड़ स्पष्ट होता है।
बागवानी मंत्री को पद से हटाया जाए
बागवानी मंत्री ने ठियोग में किसानों को आश्वासन दिया था कि सरकार एपीएमसी कानून को सख्ती से लागू करेगी। कंपनियों को उनके कोल्ड स्टोर में कम से कम 20 प्रतिशत किसानों को उनका सेब रखने के आदेश जारी किये जायेंगे, लेकिन बागवानी मंत्री द्वारा मानी गई मांगों पर आज तक कोई भी अमल नहीं किया गया है। इससे बागवानी मंत्री और सरकार की मंशा पर संदेह होता है। किसानों ने बैठक के दौरान कहा कि बागवानी मंत्री की पद पर रहने का कोई हक नहीं है। सीएम जयराम ठाकुर उन्हें फौरन पद से हटाएं।
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आज सेब के रेट अडानी ग्रुप तय कर रहा है
आज सरकार अदानी व अन्य कंपनियों के दबाव में काम कर रही है। बीते साल जो रेट 88 रुपये प्रति किलो था। वह इस वर्ष घटा कर 72 रुपये प्रति किलो कर दिया है, जबकि इस वर्ष खाद, फफूंद नाशक, कीटनाशक व अन्य लागत वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। इन सब के बावजूद इस वर्ष अडानी ने करीब 17 प्रतिशत की कटौती की है। आज ये कंपनियां रेट अपनी मर्जी से तय करती है। इस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। जिससे किसानों का शोषण बड़े पैमाने पर हो रहा है।