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इन मंदिरों में पुरुषों को जाने की नहीं इजाजत, जानिए क्या हैं नियम-कानून
आपने ऐसे कई मंदिरों के बारे में सुना होगा जहां पर महिलाओं को जाने की या फिर पूजा करने की इजाजत नहीं होती है। इस चीज का काफी समय से विरोध भी होता आया है। लेकिन भारत में ऐसे भी कई मंदिर हैं जहां पर पुरुषों को लेकर खास नियम बनाए गए हैं। इन मंदिरों में पुरुषों का जाना वर्जित है। आज हम आपको इन्हीं मंदिरों के बारे में जानकारी देने वाले हैं …
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कोट्टनकुलंगरा मंदिर
कन्याकुमारी में स्थित इस मंदिर में मां भगवती की पूजा होती है। माना जाता है कि इस जगह पर सती माता की रीढ़ की हड्डी यहां गिरी थी। इस मंदिर में सिर्फ महिलाओं और किन्नरों को ही पूजा करने का अधिकार है। पुरुषों का मंदिर में आना वर्जित है। यदि कोई पुरुष मंदिर में आना चाहता है तो उसे महिलाओं की तरह सोलह श्रंगार करके आना पड़ेगा।
कामाख्या मंदिर
कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किमी दूर है। इसे माता की शक्तिपीठ में से एक माना जाता है। मान्यता है कि यहां माता सती का गर्भ और योनि गिरी थी। यहां मातारानी को तीन दिन तक माहवारी होती है। माता के माहवारी उत्सव के दौरान इस मंदिर में पुरुषों का जाना प्रतिबंधित होता है। इस दौरान सिर्फ महिला पुजारी ही माता की पूजा करती हैं। ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां महिलाओं को माहवारी के समय भी जाने की इजाजत है।
संतोषी माता का मंदिर
संतोषी माता का व्रत और पूजन ज्यादातर महिलाओं के लिए ही हैं। इसके कड़े नियम के पालन करने पड़ते हैं। हालांकि संतोषी माता का पूजन तो पुरुष भी कर सकते हैं, लेकिन शुक्रवार के दिन संतोषी माता के किसी भी मंदिर में पुरुषों का जाना और पूजा करना प्रतिबंन्धित होता है।
चक्कुलाथुकावु मंदिर
ये मंदिर केरल के नीरात्तुपुरम में है। इसे महिलाओं का सबरीमाला मंदिर कहा जाता है। माना जाता है कि इसी स्थान पर मातारानी ने शुम्भ और निशुम्भ दैत्यों का वध किया था। दिसंबर के महीने में यहां पुरुष पुजारी महिलाओं के लिए 10 दिन तक व्रत रखते हैं और इसी माह के पहले शुक्रवार को यहां नारी पूजा होती है। इसे धनु कहा जाता है। इस दौरान 10 दिन तक व्रत रखने वाले पुरुष महिलाओं के पैर धोते हैं। नारी पूजा के दौरान मंदिर में पुरुषों का प्रवेश वर्जित होता है।
ब्रह्मा जी का मंदिर
पुष्कर में ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर है। इस मंदिर के अंदर विवाहित पुरुष को जाने की इजाजत नहीं है। मान्यता है कि शादीशुदा पुरुष अगर यहां आएंगे तो उनके जीवन में दुख आ जाएगा इसलिए वे सिर्फ आंगन तक ही आते हैं। मंदिर के अंदर जाकर महिलाएं ही पूजा करती हैं।