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छह बार के सीएम वीरभद्र सिंह एक बार 15 दिन भी नहीं रह पाए थे चीफ मिनिस्टर
शिमला। हिमाचल के छह बार सीएम रह चुके वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) आज दुनिया से रुखसत हो गए। ऐसे में हर कोई उनके कार्यकाल और उनके काम को लेकर चर्चा कर रहा है। हिमाचल में वीरभद्र सिंह के पांच बार सीएम बनने का इतिहास (Virbhadra Singh History) तो मिल जाता है, लेकिन उनके एक कार्यकाल के बारे में बहुत से लोगों को जानकारी ही नहीं है। इस एक कार्यकाल को छोड़े दें तो वीरभद्र सिंह करीब 21 साल 12 दिन तक हिमाचल के सीएम रहे, लेकिन एक बार वीरभद्र सिंह 15 दिन से भी कम समय तक सीएम रहे थे। ये साल था 1998 का, विधानसभा चुनावों (1998 Assembly Elections) के बाद कुछ ऐसी स्थिति बनी की सीएम (CM) की कुर्सी संभालने के बाद 15 दिन से भी पहले वीरभद्र सिंह को पद छोड़ना पड़ा था और इसके साथ ही बीजेपी ने सरकार बना ली थी। सरकार को बीजेपी की बनी थी, लेकिन इसमें अहम भूमिका रही थी पंडित सुखराम और रमेश धवाला की।
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दरअसल वीरभद्र सिंह 1993 में चुनाव जीतकर तीसरी बार हिमाचल के सीएम बने थे। 1998 में वीरभद्र सिंह ने कुछ लोगों की सलाह पर समय से 9 महीने पहले ही चुनाव करवा लिए थे। इसके पीछे की वजह बताई गई थी बीजेपी भीतर शांता और धूमल गुट को लेकर चल रही वर्चस्व की लड़ाई। ऐसे में वीरभद्र सिंह को लगा कि हिमाचल वो आराम से से सरकार बना लेंगे। विधानसभा चुनाव हुए। जानकारी के अनुसार 65 सीटों के लिए विधानसभा चुनाव हुए। इसमें बीजेपी ने 29 व कांग्रेस को 32 सीटों पर जीत मिली। इस चुनाव में बड़ी भूमिका में थी पंडित सुखराम की नई नवेली पार्टी हिमाचल विकास कांग्रेस। सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर हिविकां बनाई थी।
इन चुनावों 4 सीटों पर हिमाचल विकास कांग्रेस ने जीत हासिल की और 1 सीट पर निर्दलीय की जीत हुई। ये निर्दलीय थे रमेश धवाला। हालांकि रमेश धवाला वैसे तो बीजेपी के ही कार्यकर्ता रहे थे, लेकिन उन्हें पार्टी ने ज्वालामुखी सीट से टिकट नहीं दिया था तो निर्दलीय ही मैदान में उतर गए थे। 1998 में उस समय 3 जनजातीय सीटों लाहुल-स्पीति, भरमौर और किन्नौर में चुनाव नहीं करवाए गए थे। इसके अलावा चुनाव नतीजे आने से पहले ही परागपुर से बीजेपी के वीरेंद्र कुमार का निधन हो गया। बीजेपी के पास अब 28 विधायक थे।
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किसी भी दल को हिमाचल में सरकार बनाने के लिए 33 विधायक चाहिए थे। हिमाचल की तत्कालीन राज्यपाल वीएस रमादेवी पर सबकी नजरें टिकी हुई थीं। उनके सामने दो नजीर थीं. सबसे बड़ी पार्टी, या गठबंधन। उन्होंने 32 विधायकों का समर्थन पाए वीरभद्र सिंह को न्योता दिया। वीरभद्र सिंह ने शपथ भी ले ली, मगर तय समय में सपोर्ट नहीं जुटा पाए। ऐसे में सरकार 15 दिन भी नहीं चल पाई। हिमाचल के अस्तित्व में आने के बाद सबसे कम दिनों तक सीएम रहने का रिकॉर्ड भी वीरभद्र के सिर पर मढ़ दिया गया। दरअसल, तब की रिपोर्ट के मुताबिक वीरभद्र सिंह को निर्दलीय जीते रमेश धवाला ने समर्थन दिया था और वही डिसाइडिंग फैक्टर साबित हो रहे थे, क्योंकि पंडित सुखराम कांग्रेस के साथ नहीं जा रहे थे।
ऐसे में कांग्रेस ने धवाला को अपने साथ लेकर वीरभद्र सिंह ने राज्यपाल के पास 5 मार्च, 1998 को सरकार बनाने का दावा पेश किया। उस दौरान कांग्रेस से ही जीतकर आए ठाकुर गुलाब सिंह को विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया। उधर, धवाला के पाला बदलते ही भाजपा ने हिमाचल विकास कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया। धवाला को मिलाकर भाजपा-हिविकां गठबंधन के 33 विधायक हो गए। वीरभद्र सिंह भी सदन पहुंचे, लेकिन वो जानते थे कि वो अब बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे। ऐसे में पूरे नाटकीय घटनाक्रम में बहुमत साबित करने से पहले ही वीरभद्र सिंह ने इस्तीफा दे दिया।
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24 मार्च, 1998 को बीजेपी की सरकार बन गई। पहली बार प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल सीएम बने। ठाकुर गुलाब सिंह को ही विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया, क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष के लिए ऐसा कोई नियम नहीं था कि अध्यक्ष सत्तारूढ़ पार्टी से ही होना चाहिए। अगले चुनावों को ठाकुर गुलाब से भी बीजेपी का दामन थाम लिया और बीजेपी की ही टिकट पर चुनाव भी लड़े। इस तरह 1998 में वीरभद्र सिंह कुछ दिन के लिए मुख्यमंत्री बने थे।
एक और दिलचस्प बात यह है कि उस दौरान विधानसभा में रमेश धवाला ने कपड़े उतार दिए थे और अपनी पीठ पर निशान दिखाते हुए कहा आरोप लगाया था कि उनसे मारपीट की गई और जबरन उनका समर्थन हासिल किया था। एक ओर बात यह कि धवाला वीरभद्र सरकार में पांच मार्च को कैबिनेट मंत्री बने थे। उसके बाद 24 मार्च को धूमल सरकार में भी कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली थी।
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