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आज होगी देवउठनी एकादशी पूजा, जानिए क्या है विधि
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को हर साल भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप और मां तुलसी का विवाह किया जाता है। शालिग्राम के साथ तुलसी के आध्यात्मिक विवाह को देवउठनी एकादशी कहते हैं। इस दिन तुलसी विवाह की पूजा का खास महत्व है। इस तिथि के बाद विवाह के शुभ मुहूर्त व मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं।
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इस साल एकादशी तिथि 14 नवंबर सुबह 5.48 मिनट से शुरू होकर 15 नवंबर सुबह 6.39 मिनट तक है। व्रत तोड़ने का समय 15 नवंबर को 1.10 मिनट से 3.19 बजे तक रहेगा। जबकि हरि वासर खत्म होने का समय रात 1.00 बजे तक है। इस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करने से लाभ मिलता है।
उठनी एकादशी की पूजा को पूरी विधि विधान से किया जाता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नहा कर स्वच्छ कपड़े धारण करके भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और फिर उन्हें जागने का आवाहन कर व्रत किया जाता है। वहीं, शाम के वक्त पूजा स्थल पर रंगोली बनाई जाती है और फिर घी के 11 दीये जलाकर गन्ने का मंडप बनाकर बीच में विष्णु जी की मूर्ति रखी जाती है। उसके बाद भगवान विष्णु को लड्डू, पतासे, गन्ना, सिंघाड़ा, मूली आदि मौसमी सब्जियां अर्पित किए जाते है। मान्यता है कि सिंघाड़ा माता लक्ष्मी का सबसे प्रिय फल है। इसका प्रसाद लगाने से लक्ष्मी माता खुश होती हैं। मोक्ष के साथ धन लक्ष्मी की कामना रखने वाले को एकादशी के दिन घर को साफ रखना चाहिए और पूरी रात पूजा घर में लक्ष्मी नारायण के सामने अखंड दीप जलाना चाहिए। यह घी का दीपक रात भर जलता रहना चाहिए।
देवउठनी एकादशी के दिन उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये, त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥ उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव, गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥ शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव मंत्र का उचारण करके देव को जागने का आवाहन किया जाता है।