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हिमाचल हाईकोर्ट ने स्टोन क्रशर लगाने की अनुमति देने पर जारी किया नोटिस, इनसे मांगा जवाब
शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने कांगड़ा जिला के थुरल पंचायत में स्टोन क्रशर स्थापित करने के लिए अनुमति दिए जाने के मामले में कड़ा संज्ञान लिया है। मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायाधीश संदीप शर्मा की खंडपीठ ने ग्राम पंचायत थुरल निवासियों की ओर से मुख्य न्यायाधीश के नाम लिखे पत्र पर संज्ञान लिया है। खंडपीठ ने प्रदेश के मुख्य सचिव सहित सचिव राजस्व, डीसी कांगड़ा और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर जवाब तलब किया है। पत्र के माध्यम से आरोप लगाया गया है कि कांगड़ा जिला के थुरल पंचायत में न्यूगल खड्ड पर स्टोन क्रशर स्थापित करने के लिए राज्य सरकार ने अनुमति प्रदान की है। इस खड्ड पर दो मोक्ष धाम, दो पीने के पानी की स्कीमें और एक लकड़ी का पुल है। स्टोन क्रशर लगने के कारण खड्ड का पानी दूषित हो रहा है और पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है। अदालत ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को आदेश दिए हैं कि वह इस स्टोन क्रशर का निरीक्षण करें और अदालत को बताए कि क्या स्टोन क्रशर लगने के कारण खड्ड का पानी दूषित हो रहा है या नहीं, क्या पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है, इस बारे भी रिपोर्ट दायर किए जाने के आदेश दिए हैं। मामले की सुनवाई आगामी 15 जून को निर्धारित की गई है।
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नौतोड़ स्कीम के तहत आने वाले मामले सिविल कोर्ट के क्षेत्राधिकार
हिमाचल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है कि नौतोड़ स्कीम के तहत आने वाले मामले सिविल कोर्ट (Civil Court) के क्षेत्राधिकार में आते हैं। मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायाधीश संदीप शर्मा की खंडपीठ ने एकलपीठ की ओर से भेजे गए सन्दर्भ में यह निर्णय दिया। हाईकोर्ट की एकलपीठ ने खंडपीठ के समक्ष यह सन्दर्भ भेजा था कि नौतोड़ स्कीम के तहत आने वाले मामले सिविल कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आते है या नहीं। तथ्यों के अनुसार करसोग के दीना नाथ को वर्ष 1980 में नौतोड़ स्कीम 1975 के तहत नौतोड़ भूमि आबंटित की गई थी।
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वर्ष 1984 में उसकी मृत्यु होने के बाद यह जमीन उसके जायज वारसान में बंट गई, जिन्होंने इस जमीन को याचिकाकर्ता को बेच दिया था। नौतोड़ स्कीम 1975 के प्रावधानों के अनुसार ना तो दीना नाथ ने और ना ही उसके जायज वारसान ने नौतोड़ भूमि को दो वर्ष के भीतर कृषि योग्य बनाया, इसलिए डीसी मंडी ने इस नौतोड़ भूमि को सरकार में निहित करने के आदेश पारित किये। याचिकाकर्ता ने डीसी के आदेशो को सिविल कोर्ट ने चुनौती दी, लेकिन सिविल कोर्ट ने हाई कोर्ट की एकलपीठ की ओर से दिए गए निर्णय के अनुसार याचिकाकर्ता के दावे को ख़ारिज कर दिया।
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