महिला मारपीट मामले की जांच में ढील बरतने पर हिमाचल हाईकोर्ट ने जताया खेद, दिए ये आदेश

शिकायतकर्ता ने पुलिस द्वारा दायर की गई स्टेटस रिपोर्ट पर जताई थी आपत्ति

महिला मारपीट मामले की जांच में ढील बरतने पर हिमाचल हाईकोर्ट ने जताया खेद, दिए ये आदेश

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शिमला। महिला को बुरी तरह से पीटने (Woman Beating Case) के आरोपों की जांच में ढील बरतने पर हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court)ने पुलिस की कार्य शैली पर खेद जताते हुए महिला की शिकायत पर पुनः विचार करने के मजिस्ट्रट कसौली को आदेश (Order) जारी किए है। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने विपाशा द्वारा दायर याचिका पर अपना निर्णय पारित करते हुए कहा कि दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में शिकायतकर्ता ने पुलिस द्वारा दायर की गई स्टेटस रिपोर्ट पर आपत्ति दर्ज की, जिसमें उसने फिर से दोहराया कि जांच निष्पक्ष तरीके से नहीं की गई है और पुलिस द्वारा पुलिस कर्मियों को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं।


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आपराधिक दंड प्रक्रिया की धारा 156(3) के प्रावधानों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि पुलिस द्वारा अपने कर्तव्यों का पालन करने पर मजिस्ट्रेट द्वारा जांच का प्रावधान है और जहां मजिस्ट्रेट को पता चलता है कि पुलिस ने अपना कर्तव्य निर्वहन नहीं किया है या संतोषजनक ढंग से जांच नहीं की है, वह पुलिस को जांच ठीक से करने का निर्देश दे सकता है।

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कोर्ट ने कहा कि शिकायत में लगाए गए आरोप पूरी तरह से यह निष्कर्ष निकालने के लिए मजबूर करते हैं कि पुलिस ने निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम नहीं किया है, केवल पुलिस कर्मियों को बचाने का प्रयास किया गया है। हालांकि, पुलिस उपाधीक्षक परवाणू को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया था लेकिन उसने कसौली थाने में दर्ज शुरुआती शिकायत के आधार पर ही मामले की जांच की है । एक बार जब मजिस्ट्रेट को धारा 156 (3) आपराधिक दण्ड प्रक्रिया के तहत शिकायत मिली थी, जिसमें पुलिस कर्मियों के खिलाफ गंभीर आरोप थे, तो आरोपों की शुद्धता का पता लगाने के लिए जांच के लिए पुलिस को शिकायत भेजनी चाहिए थी।

रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद मजिस्ट्रेट या तो इस कारण कार्यवाही को बंद कर सकता है कि शिकायत में निहित आरोपों के संबंध में प्राथमिकी पहले से ही दर्ज है या वह शिकायत में नामित आरोपी के खिलाफ उचित कानून प्रावधानों के तहत मामला दर्ज करने का आदेश दे सकता है। । हालांकि, उक्त मामले में मजिस्ट्रेट ने निहित आरोपों की शुद्धता का पता लगाने का प्रयास किए बिना शिकायत, जिसे अन्यथा जांच अधिकारी को संदर्भित करके पता लगाया जा सकता है, इस कारण कार्यवाही को बंद करने आदेश पारित किए कि उक्त मामले को लेकर प्राथमिकी पहले से ही दिनांक 25.11.2021 को पंजीकृत है,। हाई कोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, कसौली, जिला सोलन द्वारा पारित निर्णय में त्रुटि पाते हुए निर्णय को रद्द करने व आपराधिक दण्ड प्रक्रिया की धारा 156 (3) के तहत दायर शिकायत पर चार सप्ताह की अवधि के भीतर विचार करने के आदेश जारी किए।

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