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राष्ट्रीय बालिका दिवस: हिमाचल की बेटी काव्या वर्षा ने एक अंगुली से रच डाला इतिहास
साक्षात्कार- एक अंगुली से सृजन के फलक पर चमकने वाली काव्य वर्षा से मिल कर दांतो तले अंगुली दबा लेंगे आप, ‘नील गगन को छू लेने दो’ की लेखिका से मुलाकात पालमपुर से चंद्रकांता की रिपोर्ट’
‘इस पथ का उद्देश्य नहीं है श्रांत भवन में टिक रहना, किंतु पहुंचना उस सीमा पर जिसके आगे राह नहीं है’- महाकवि जयशंकर प्रसाद की यह ओजस्वी पंक्तियां हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा तहसील के दरकाटी गांव में जन्मी काव्य वर्षा पर एकदम फिट बैठती हैं। अक्सर हम जीवन के नायक-नायिकाओं के लिए सिनेमा या इतिहास की तरफ देखते हैं, लेकिन काव्य वर्षा (Kavya Varsha) वास्तविक जीवन की नायिका हैं। काव्य वर्षा के बारे में ऐसी बहुत सी बातें हैं, जिन्हें जानकर ना केवल आपको हैरानी होगी बल्कि आप दांतों तले अंगुली दबा लेंगे।
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काव्य वर्षा कभी पाठशाला नहीं जा सकीं बचपन में लगातार निमोनिया की वजह से उनका शरीर धीरे-धीरे शिथिल होता गया। वे हाथ की केवल एक उंगली का इस्तेमाल काम करने में करती हैं। जीवन की चुनौतियों के बावजूद पढ़ने-लिखने का उनका जुनून आश्चर्यचकित करता है। वर्षा लेखन के साथ-साथ यूट्यूब, ब्लॉग और फेसबुक पर बहुत सक्रिय हैं। वर्षा कविता के अतिरिक्त कहानी, संस्मरण और गीत भी लिखती हैं। उनके लिखे गीतों पर वीडियो और एलबम भी बनाए जा रहे हैं।वर्षा की रचनाएं प्रदेश व देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। अपनी रचनात्मक ऊर्जा के माध्यम से से वे लेखन व साहित्य में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवा रही हैं। हाल ही में उनका प्रथम काव्य संग्रह ‘नीलगगन को छूने दो’ प्रकाशित हुआ है। आइए काव्य वर्षा की जीवन यात्रा व रचनाधर्मिता को और अधिक बारीकी से जानते हैं-
चंद्रकांता: आप कभी पाठशाला नहीं गईं। आपकी रचनात्मक यात्रा अचंभित करती है। आप प्रशंसा की पात्र हैं। जीवन की कठिनाइयों के बावजूद आपने किस तरह लिखना-पढ़ना सीखा?
काव्य वर्षा: बचपन में निमोनिया की वजह से 8 साल तक अधिकांश बेहोश रहा करती थी कभी कभार जब होश आ जाता था, तो बस इतना याद है कि जब भाई स्कूल जाना शुरु हुआ पढ़ने लगा तो उसके द्वारा पढ़ने गए हर शब्द को बड़े ध्यान से सुनती और समझती थी और उसे सब याद करवाती थी। अब तक उसने क्या पढ़ा था मैं उसे उसकी हर गलती पर टोकती थी। उस समय भाई 3 साल का था और मैं 4 साल की। मैं सब कुछ एक बार सुनकर ही याद कर लिया करती थी। मुझे लगता था कि कल को मुझे भी स्कूल जाना है इसलिए जितना हो सकता था सुनने की कोशिश करती थी कि स्कूल में भाई को क्या पढ़ाया जा रहा है। जब मैं 9 साल की हुई तो हम पिताजी के साथ गुड़गांव चले गए वहां मैं निमोनिया की बीमारी से बाहर आ गई और अब मैं तकिए के सहारे बैठने लगी थी।
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मेरी मां बीमार हो गई और हमें अपने घर हिमाचल प्रदेश दरकोटा वापस आना पड़ा। यहां ताई जी की बेटियों के जो पुराने रंग बचते थे मैं उनको संभाल कर रखती और एक झाड़ू की लकड़ी या टूथपिक लेकर पुरानी ड्राइंग बुक में गिनती लिखती या कुछ कुछ बनाया करती। घर के लैंडलाइन फोन के कीपैड पर एबीसी लिखी होती थी वहीं से मैंने एबीसी सीखी। जब भी पास के सरकारी स्कूल में प्रार्थना होती तो साथ-साथ में भी गुनगुनाती एक दिन ताई जी की बेटी स्कूल से पूरी प्रार्थना मेरे लिए लिखवा कर ले आई मैं खुश हुई, लेकिन जैसे ही कागज को खोलकर पढ़ने लगी तो मुझे एक शब्द भी समझ नहीं आया क्योंकि मैं पढ़ना नहीं जानती थी उस दिन कागज को देखकर मुझे बहुत रोना आया। जब मैं 15 वर्ष की रही होंगी तो पिताजी ने जम्मू बुला लिया वहां घर में बहुत सारी अखबार आती थी उन्हें देख देख कर पढ़ना भी सीख गई। बहन नई-नई कॉपियां और हर रंग के पेन लेकर आती इसलिए खुशी-खुशी में बहुत जल्दी लिखना भी सीख गई।
अखबार में जो शायरी लिखी होती मैं उसे लिखती फिर मैं गाने लिखती या कोई ख्याल आता तो उसे लिखती मेरे दाएं हाथ में काम करना बंद कर दिया फिर मैंने बाएं हाथ से लिखना और खाना पीना शुरू किया। इसके बाद हम फिर से गांव वापस आ गए यहां शिक्षा का कोई खास महत्व नहीं था। मैं सबको थोड़ा-थोड़ा सिखाती थी और गलत बोलने पर टोकती थी। धीरे-धीरे में अपने मोहल्ले की इंजीनियर बन गई जिसका भी गैजेट खराब होता था वे उसे ठीक करने के लिए मेरे पास लाते। घर वालों ने मुझे भी मोबाइल ला कर दिया जिस पर मैंने बहुत कुछ सीखा।
चंद्रकांता: शिक्षित होना एक बात है और साहित्य लिखना दूसरी। आपकी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत किस तरह हुई? जब आपने कविता या कहानी लिखना शुरू किया तो आपको किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
काव्य वर्षा: पता नहीं कब मैंने यह तय कर लिया कि मुझे सॉफ्टवेयर इंजीनियर (Software Engineer) बनना है बस मेरा कल आने दो। इसी इंतजार में 28 साल की हो गई, लेकिन मेरा कल नहीं आया। अब दिमाग पर निराशा हावी होने लगी थी सामने टीवी चल रहा होता था, लेकिन मैं वहां नहीं होती थी। मेरा मन भटकता रहता था ऐसे समय में भगवान मेरे दोस्त और रिश्तेदार बन गए। हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, गणेश अथर्वशीष, देवी सुक्तम का पाठ करना मेरी दिनचर्या का अंग बन गया था। साथ में इंग्लिश सीखना और सामान्य ज्ञान भी काफी अच्छा हो गया था। यह सब मैंने मोबाइल के माध्यम से ही किया।
जल्द ही एक पत्रिका में मेरी कुछ रचनाएं चयनित हो गई। लेखन में बहुत कमियां थी पर बड़े लेखकों के साथ मेरी रचना प्रकाशित होना मेरे हौसलों को पंख दे गया। दीदी और जीजाजी की मदद से 4जी फोन लिया जल्द ही पत्रिका में कविताएं चयनित होने लगी। अब मेरे शब्दों को खूब पहचान मिल रही थी। मैंने सब से अपनी पहचान छुपाई मैं नहीं चाहती थी कि लोग मुझे सहानुभूति दें, मेरी पहचान मेरा हुनर हो ना कि मेरी शारीरिक अक्षमता। मां ने मुझे घर में रहने के लिए एक शांत कमरा दे दिया अब मेरी आवाज खुलने लगी मैं अपनी कविताएं रिकॉर्ड करने लगी।
चंद्रकांता: ‘नीलगगन को छूने दो’ काव्य संग्रह के समर्पण को आपने आपकी माताजी और भाभीजी को समर्पित किया है। आपकी साहित्यिक यात्रा में उनकी क्या भूमिका रही?
काव्य वर्षा: मां की भूमिका तो पूरे जीवन में ही है।वो तो बगैर कहे ही सब कुछ समझती आई हैं। बगैर पूछे सब सवालों के जवाब देती आई हैं। भाई की शादी हुई घर में भाभी आई उन्होंने आते ही मेरे अंदर का किरदार पकड़ लिया। भाभी ने पूछा पढ़ाई क्यों नहीं की? फ्यूचर का क्या प्लान है? भाभी मुझ में कोई कमी नहीं देखी, जबकि वह खुद एक डॉक्टर हैं। उनका एक सवाल मेरे मन में दस और सवाल खड़ा कर देता।
पहले-पहले मैं भाभी के सवालों से भागती रही फिर मैंने भाभी से कहा मुझे घुटन होती है। बाहर जाने का मन होता है। मैं भी पढ़ना चाहती हूं! उन्होंने कहा हां तो पढ़ो जाओ बाहर जो करना है करो। जिंदगी दोबारा नहीं मिलेगी। फिर मैंने खुद से पूछा मैं कैसे करूं! मेरे हाथ काम नहीं करते! भाभी ने कहा तुम्हारी एक उंगली तो है ना! कंटेंट राइटिंग जानती हो ? पता करो क्या होता है। बाद मैंने गूगल पर कंटेंट राइटिंग (Content Writing) सर्च किया फिर फेसबुक पर मुखबिर से मुलाकात हुई उन्होंने दिल्ली के वेब डिजाइनर से मिलवाया, जिन्होंने एक ब्लॉग बना दिया काव्य वर्षा के नाम से। उन्होंने ऐसे एप्स भी बताएं जहां में लिख सकती हूं और जहां सीख सकती हूं।
चंद्रकांता: यह आपकी प्रथम पुस्तक है। इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए आपको किन बाधाओं का सामना करना पड़ा? क्या आपको भी नए लेखकों की तरह खूब पापड़ बेलने पड़े?
काव्य वर्षा: ‘पर्वत की गूंज’ के माध्यम से मैं विशाल ठाकुर से मिली। वे हिमाचल पुलिस में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वे बहुत अच्छे कवि हैं और अब मेरे बहुत अच्छे भाई भी बन गए हैं। उनके जरिए वीरेंद्र शर्मा वीर ने मुझसे संपर्क किया उन्होंने मेरी कविताओं को चंडीगढ़ कवि गोष्ठी में मंच तक पहुंचाया। बड़े-बड़े लेखकों के बीच मेरी कविता का पढ़ा जाना बहुत बड़ी बात थी। डॉ. विजय कुमार पुरी के संपादन में देश भर के एक सौ नौ कवियों का साझा संकलन ‘संवेदना की वीथियों में’ से अखिल भारतीय सृजन सरिता परिषद और निखिल प्रकाशन समूह आगरा द्वारा मुझे सम्मान पत्र प्राप्त हुआ। मेरी कविताओं को भी एक घर मिल गया यानी मेरी कविताएं भी प्रकाशित हो गई।
इसके बाद मेरी कविताओं की पांडुलिपि को निखिल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया। यह कैसे हुआ यह सब तो वीरेंद्र शर्मा वीर ही जाने मैंने तो सिर्फ कविताएं लिखी हैं और अपना परिचय दे रही हूं। मैं बहुत हैरान हूं क्या सब मेरा इतना साथ दे रहे हैं। माता-पिता ने भगवान ने तो जीवन दिया है मुझे इन्होंने तो मेरे साथ चलना ही है, लेकिन बाकी सब क्यों वह भी मुझे बिना देखे बिना जाने मेरा हौसला बढ़ाते आए हैं।
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चंद्रकांता: आप कविता के अतिरिक्त गीत, कहानी और संस्मरण भी लिखती हैं। आपके गीतों पर अब वीडियो एल्बम भी बन रही हैं। आपकी इस रचनात्मक यात्रा के बारे में बताएं!
काव्य वर्षा: सोशल मीडिया ने फिर से मेरा साथ दिया। एक लड़की ईशा कश्यप के माध्यम से मुझे एकलव्य सेन को जानने का मौका मिला। एकलव्य बतौर एक्टर, राइटर और फिल्म डायरेक्टर काम कर रहे हैं। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में अभी कदम रखा ही था। उन्होंने मेरे लिखे गीत रिकॉर्ड करवा लिए जो उन्होंने खुद गाए हैं। मेरी लिखी कहानी पर उन्होंने एक लघु फिल्म भी बनाई है। अगली फिल्म ‘आखिरी नोट’ जल्दी ही रिलीज होगी। मेरे हुनर को एकलव्य जी की मेहनत ने सींचा।
चंद्रकांता: आपकी लिखी कहानी पर एक लघु फिल्म आई है ‘दी पिलो’ (The Pillow) बहुत भावुक कर देने वाला विषय है। यह संवेदनशील कहानी लिखने के पीछे क्या प्रेरणा रही?
काव्य वर्षा: एकलव्य सेन (निर्देशक) को एक नई और अलग किस्म की कहानी चाहिए थी। उन्होंने मुझे कहा आप नॉन लिविंग थिंग (Non-Living Thing) पर कुछ लिखो। उन्होंने यह भी पूछा की क्या मैं ‘नान लिविंग थिंगस’ को समझती हूं। मेरा भाई बचपन में पिलो लेकर हमेशा घूमता रहता था उसे तकिए से इतना अधिक लगाव था कि वह उसे छोड़ता ही नहीं था। यहां से मैंने तकिये को विषय के रूप में उठाया और एक अलग सी कहानी बन दी। अब यह कहानी एक लघु फिल्म के रूप में आप सभी दर्शकों के सामने है।
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चंद्रकांता: भाषाएं साहित्य को समृद्ध करती हैं। आप कितनी भाषाओं में पढ़-लिख लेती हैं? क्या कभी पहाड़ी भाषा में आपका कोई काव्य-संकलन आने की संभावना है?
काव्य वर्षा: हिंदी, पहाड़ी, पंजाबी भाषा आती है। मैंने इन तीनों ही भाषाओं में गीत भी लिखे हैं, जिनमें कुछ पर एलबम भी आ रही हैं। पहाड़ी गीत भी आ रहे हैं। प्रसिद्ध पहाड़ी सिंगर राजेश डोगरा जो मेरे गीतों को लेकर आ रहे हैं। पहाड़ी कविता संग्रह पर भी काम कर रही हूं, जो जल्द ही आप पाठकों के सामने होगा।
चंद्रकांता: आप लाखों करोड़ों युवाओं की प्रेरणा हैं। युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगी?
काव्य वर्षा: जिन भी लोगों ने यहां तक साथ दिया उनका बहुत-बहुत आभार। संघर्ष में कर रही हूं मुझे बस प्यार की जरूरत है। मैं उन लोगों से कहना चाहूंगी जो भटक जाते हैं और शिक्षा से दूर हो जाते हैं- मैं केवल एक उंगली से काम करती हूं, लेकिन आपके पास दस अंगुलियां हैं, आप बहुत कुछ कर सकते हैं। आपके शरीर और आपकी शिक्षा की कद्र कीजिये। कुछ करने से पहले एक बार पीछे देख लें कि आप किस काम के लिए दुनिया में आए हैं! स्वयं से पूछते रहिए कि आप हैं कौन हैं? मैं भी खुद से पूछा करती थी। अब लोग पूछते हैं और मुझे बताना नहीं पड़ता। जीवन की कद्र कीजिए हारना बहुत आसान होता है जीत कर देखिए।
साभार: चंद्रकांता