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कई हिचकोले खाकर भी नहीं टूटा हौसला और एक दिन बाटा कंपनी ने गाड़े सफलता के झंडे
Last Updated on September 19, 2022 by sintu kumar
क्या आपने बाटा (Bata) का जूता पहना है। यदि पहना है तो आपके मन में भी सवाल आता होगा कि आखिर बाटा कंपनी (Bata Company) की उत्पत्ति कैसे हुई। कैसे इस कंपनी ने सफलता के शिखर छूए। नहीं सुनी है तो आइए आज हम आपको बताते हैं बाटा कंपनी की शुरू होने से शिखर तक पहुंचने की कहानी। यह कंपनी जूते-चप्पल बनाती है। इस कंपनी के जूते बहुत ही मजबूत और शानदार होते हैं। ज्यादातर लोगों को लगता है कि यह कंपनी भारत की है। लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है। इसकी उत्पत्ति मध्य यूरोप के चेकोस्लोवाकिया में हुई। इस कंपनी शुरुआत सन 1894 में चेकोस्लोवाकिया (Czechoslovakia) में की गई थी। इस कंपनी की शुरुआत थॉमस बाटा ने की थी। थॉमस बाटा का जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था। वह जूते बनाने का काम किया करता था।
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गरीबी (Poverty) से परेशान होकर अपने परिवार के हालात बदलने के लिए थॉमस बाटा ने एक प्लान (Plan) बनाया। सबसे पहले उसने अपने ही गांव में दो कमरे किराए पर ले लिए। यहां एक बड़ा सपना लेकर थॉमस बाटा ने जूते बनाने का काम शुरू कर दिया। इस कार्य में उसने अपनी माता, बहन और भाई को भी शामिल कर लिया और अपने बिजनेस में हिस्सेदार बना लिया। उसने अपनी मां से 200 डॉलर लिए और कच्चा माल खरीद लिया। शुरू-शुरू में थॉमस को कारोबार में बहुत सी परेशानियां सामने आईं। इसके बाद भाई-बहन ने साथ छोड़ दिया, लेकिन थॉमस ने हार नहीं मानी। बहुत ज्यादा संघर्ष के बाद एक दिन उसका कारोबार चल निकला। इसके बाद उसने कर्ज लेकर अपने कारोबार को बढ़ाने का प्लान बनाया। मगर इसके बाद फिर उसके हालात बिगड़ गए। उसका कारोबार ठप हो गया। कर्ज ना चुका पाने के कारण उसकी हालत और भी खराब होती चली गई।
अंत में कंपनी को दिवालिया घोषित करना पड़ा। इसके बाद थॉमस बाटा इंग्लैंड आ गए और एक जूता कंपनी में मजदूरी करना शुरू कर दिया। इस दौरान उन्होंने जूते बनाने की बारीकियों को अच्छी तरह से समझा। छह महीने काम करने बाद वह वापस अपने देश लौट आया और नए सिरे से कारोबार करने का प्लान बनाया। जब उसने दोबारा कारोबार शुरू किया तो बिजनेस बढ़ने लगा। सन 1912 तक तक उसका कारोबार इतना बढ़ गया कि उसे 600 मजदूरों की भर्ती करनी पड़ी। बाजार में जूतों की डिमांड बढ़ने लगी। मांग (Demand) पूरी करने के लिए थॉमस ने शहरों कंपनी के स्टोर खुलवा दिए। प्रथम विश्व युद्ध (First world war) में आई मंदी के कारण उसका कारोबार बहुत बुरी तरह से प्रभावित हो गया। इस पर थॉमस ने जूतों के पचास फीसदी दाम कर दिए। अब दाम घटने के बाद उत्पादन में 15 गुना बढ़ोतरी हो गई। इसी का फायदा उठाते हुए थॉमस ने दूसरे देशों में भी स्टोर खोल दिए। सन 1925 तक दुनिया भर में बाटा की 122 ब्रांचें खुल गईं। अब जूतों के साथ मोजे और टायर भी बनाए जाने लगे। देखते ही देखते एक कंपनी अब बाटा ग्रुप में तब्दील हो गई।
वहीं एक हवाई हादसे में थॉमस बाटा की मौत हो गई। उनकी मौत के बाद उसके बेटे ने कारोबार को संभाल लिया। वह बेहतर चमड़े और रबड़ की तलाश में भारत पहुंच गया। यहां पर उसे ज्यादातर लोग बिना जूते के नजर आए। इसलिए उसने भारत में बाटा का कारोबार शुरू करने का प्लान बना लिया। उन्होंने भारत के एक छोटे से गांव से बाटा के कारोबार की शुरुआत कर दी। बाटा फुटवियर की डिमांड बढ़ी और उत्पादन भी दुगुना करना पड़ा।भारत में 4 हजार कर्मचारियों वाली कंपनी ने टेनिस जूतों को डिजाइन करना शुरू किया। कंपनी ऐसा करने वाली पहली कंपनी बन गई। एक ऐसा भी दौर आया जब कंपनी को पैरागॉन से टक्कर मिलने लगी। तब बाटा ने एक अभियान शुरू किया जिसमें टिटनेस से बचने के लिए जूता पहनने की सलाह दी इससे कंपनी की सेल्स में इजाफा हुआ । वर्तमान में बाटा कंपनी में 8 हजार से अधिक कर्मचारी काम करते हैं । दुनिया के 90 देशों में कारोबार फैला हुआ है।