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हिमाचल: भेड़पालकों को राहत, पश्चिमी बाजारों में बढ़ी कांगड़ा की ऑर्गेनिक ऊन की डिमांड
Last Updated on February 26, 2023 by sintu kumar
धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश में भेड़ पालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आजीविका का अभिन्न अंग है। प्रदेश के छोटे और सीमांत किसानों ने कृषि के साथ-साथ भेड़ पालन को अपनाकर अपनी आमदनी में वृद्धि की है। राज्य के ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों के किसानों के लिए भेड़ पालन जीवनयापन का प्रमुख जरिया है। भेड़पालक (Sheep Herder) इससे ऊन, पशु, मांस, खाद और दूध इत्यादि उत्पादों की बिक्री के माध्यम से अपनी आय में वृद्धि करते हैं। गुणवत्ता के लिहाज से विशिष्ट पहचान रखने वाली हिमाचली ऊन की मांग बाज़ारों में निरंतर बढ़ रही है। हिमाचली ऊन (Kangra organic wool) प्रदेश के विभिन्न भागों के साथ-साथ पश्चिमी बाजारों की आवश्यकताओं को भी पूरा कर रही है। प्रदेश के निजी हितधारक भी राज्य के कुछ हिस्सों में हिमाचली ऊन के जैविक प्रमाणन और अन्य प्रमाणन जैसे आरडब्ल्यूएस (रिस्पॉन्सिबल वूल स्टैंडर्ड्स) में निवेश कर रहे हैं।
प्रदेश वूल फेडरेशन ने पशुपालकों की आर्थिकी को किया सुदृढ़
बता दें कि प्रदेश सरकार (State Govt) ग्रामीण अर्थव्यवस्था (Rural Economy) के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार द्वारा गाय और भैंस के दूध तथा गाय के गोबर इत्यादि की खरीद के लिए हाल ही में लिए गए किसान हितैषी निर्णयों में इसकी स्पष्ट झलक देखने को मिल रही है। अब भेड़ पालकों को लाभान्वित करने के लिए भी विभिन्न उपायों पर कार्य किया जा रहा है। राज्य में प्रमुख रूप से गद्दी और रामपुर बुशहरी नस्ल का पालन किया जाता है। गद्दी नस्ल की भेड़ चंबा, कुल्लू, कांगड़ा और मंडी जबकि रामपुर बुशहरी नस्ल किन्नौर, रामपुर और शिमला में पाई जाती है। राज्य में वर्ष 2019 में की गई पशुधन गणना के अनुसार राज्य में कुल 7,91,345 भेड़ें हैं जिसमें विदेशी नस्ल की संख्या 72821 है और स्वदेशी नस्ल की 7,18,524 भेंड़ें है।
भेड़पालकों से ऊन खरीदने के लिए बनाया 133.39 करोड़ रुपए का रिवॉल्विंग फंड
भेड़पालकों के हितों की रक्षा के लिए राज्य की शीर्ष सहकारी संस्था हिमाचल प्रदेश वूल फेडरेशन (Himachal Pradesh Wool Federation) महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। तकनीकी और यांत्रिक उपकरणों के माध्यम से भेड़ की ऊन निकालने की सुविधाएं प्रदान करने के साथ-साथ भेड़पालकों से ऊन की खरीद के लिए 133.39 करोड़ रुपए का रिवॉल्विंग फंड (Revolving Fund) भी बनाया गया है। बाजार को ध्यान में रखते हुए ऊन का 125 से 150 मीट्रिक टन प्रापण किया जाता है। इसके लिए भेड़ पालकों को मौके पर भुगतान भी किया जाता है।
हिमाचल प्रदेश वूल फेडरेशन के एक प्रवक्ता ने बताया कि राज्य में कुल 15.50 लाख किलोग्राम ऊन का उत्पादन किया जाता है, जिसके आधार पर प्रति भेड़ लगभग 1.9 किलोग्राम का उत्पादन होता है। सफेद ऊन की दर 71.50 रुपये प्रति किलोग्राम से लेकर 34.10 रुपये प्रति किलोग्राम और काली ऊन 45 रुपये प्रति किलोग्राम से 25.50 रुपये प्रति किलोग्राम है। हिमाचल प्रदेश वूल फेडरेशन भेड़पालकों को भेड़ों की क्रॉस-ब्रीडिंग प्रक्रिया अपनाने और वस्त्र उद्योग की मांग के अनुसार परिधान निर्माण में उच्च गुणवत्ता वाली ऊन उत्पादित करने के लिए के लिए प्रेरित करती है।