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ऐसे शुरू हुआ साड़ी पहनने का चलन, यहां जानिए हैरान कर देने वाला इतिहास
Last Updated on August 23, 2022 by sintu kumar
हमारे देश में साड़ी स्त्रीत्व का प्रतीक माना जाती है। साड़ी (Saree) को हर वर्ग की महिलाएं पहनती हैं। साड़ी पहनने की परंपरा प्राचीन भारतीय संस्कृति की पहचान है। आज के समय में साड़ी कई त्योहारों में तो पहनते ही हैं, लेकिन अब साड़ी एक फैशन स्टेटमेंट बन चुकी है। आज हम आपको साड़ी के इतिहास के बारे में बताएंगे।
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बता दें कि साड़ी को अमीर और गरीब दोनों ही समाज की महिलाएं पहनती थी। भारत के हर राज्य में साड़ी पहनने का अलग-अलग तरीका है। साड़ी का पता 2800 बीसी में सिंधु घाटी (Sindhu Valley) से चलता है। देश में आर्यों के प्रवेश के बाद ही देश का नया इतिहास विकसित हुआ था, वे इस देश में वस्त्र शब्द लाने वाले पहले लोग थे। आर्य जैसे ही भारत के दक्षिण क्षेत्र की ओर गए, उन्होंने कमर के चारों और कपड़ा लपेटने की शैली को अपनाया। महिलाओं ने कढ़ाई के साथ कलरफुल साड़ी पहनना शुरू कर दिया।
इसके बाद भारतीय महिलाओं को पर्शियन और ग्रीक स्टाइल ने आकर्षित किया। दरअसल, पर्शियन और ग्रीक लोगों ने साड़ियों के फैशन में एक बड़ा चेंज किया था। यूनानी लोग कमर पर एक बेल्ट पहनते थे और फारसियों ने ऐसे कपड़े पहने थे, जो कमर से लेकर कंधे पर साथ होते थे। इसी के चलते साड़ी पहनने के तरीके में भी बदलाव आए और महिलाएं इस शैली को अपने फैशन के साथ मिक्स करने लगीं।
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शुरू हुई ऐसी कला
बता दें कि सिलाई और सिले हुए कपड़े पहनने की कला भारत में शुरू हुई। हमारे देश में सिलाई की कला की शुरुआत करने वाले फारसी थे। फारसियों ने भारत में मोतियों और अन्य कीमती पत्थरों के साथ कपड़ों को तराशने की कला को विकसित किया। इसके बाद शाही महिलाओं ने रत्नों से जड़े कपड़े पहनना शुरू कर दिए।
साड़ियों का मॉडर्न स्टाइल
मुगल शासनकाल में भारत में साड़ियों में एक और बदलाव नजर आया। मुगलों को शानदार चमकीले स्टाइल का शौक था और वे सिलाई करने में भी काफी होशियार थे। मुगलों को रेशमी कपड़े काफी पसंद थे। रेशमी साड़ियों का मार्डन स्टाइल मुगल शासनकाल से ही शुरू हुआ।
साड़ी का अलग है क्रेज
हमारे देश में साड़ियों की 30 से ज्यादा रीजनल किस्में हैं। हमारे देश के बनारस की साड़ी देश-विदेश में महिलाओं को आकर्षित करती है। इन साड़ियों में चमकीले कलर में सोने, चांदी और तांबे के धागों से डिजाइन बनाया जाता है। ऐसी बनारसी साड़ियां खासतौर पर दुल्हनों के लिए तैयार की जाती हैं।