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दुनिया में छठे नंबर का अमीर भारतीय जो हो गया दिवालिया, आखिर कैसे हुआ ये सब
Last Updated on April 25, 2023 by sintu kumar
क्या आपको लगता है कि कभी दुनिया के अमीरों (Richest in World) में छठे नंबर पर रहने वाला और 42 अरब डॉलर की संपत्ति का मालिक दिवालिया (Bankrupt) भी हो सकता है। लेकिन ऐसा हुआ भी और ज्यादा दूर नहीं बल्कि हिंदुस्तान में ही ऐसा हुआ। मुकेश अंबानी के छोटे भाई अनिल अंबानी (Anil Ambani) के साथ ऐसा हुआ है। अब वो दुनिया के अमीरों की लिस्ट से काफी दूर हैं और कुछ बिजनेस (Business)तो पूरी तरह से बंद हो गए हैं।
ये सब था अनिल अंबानी के पास
अनिल अंबानी के पास कई तरह के बिजनेस थे। इन कंपनियों में रिलायंस (Reliance) कम्युनिकेशन, रिलायंस कैपिटल, रिलायंस पावर, रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर, रिलायंस नेवल के नाम सबको पता है। हम सभी जानते हैं कि अंबानी परिवार की संपत्ति उनके पिता धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani)ने कमानी शुरू की थी। लेकिन जब चीजें अनिल अंबानी के हाथ में आई तो सब खत्म होता चला गया।
धीरूभाई की मौत और 2 भाइयों में बंटवारा
धीरूभाई अंबानी ने रिलायंस ग्रुप की शुरुआत 1958 में की थी। 2002 में धीरूभाई अंबानी की मौत हुई तो दोनों बेटों मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और अनिल अंबानी के बीच कारोबार का बंटवारा हो गया। बंटवारे में बड़े भाई मुकेश अंबानी को पेट्रोकेमिकल टेक्सटाइल और रिफाइनरी का कारोबार मिला तो अनिल अंबानी को टेलीकॉम फाइनेंस और एनर्जी सेक्टर की कंपनियां मिल गईं।
नए दौर का बिजनेस था लेकिन फिर भी डूब गया
अनिल अंबानी के पास जो कंपनियां आईं थी वो आज के दौर की सबसे ज्यादा जरूरत थीं। इन सेक्टर में खूब पैसा कमाया जा सकता था। लेकिन अनिल अंबानी उनमें सफल नहीं हो पाए और आज उनकी कई कंपनियां दिवालिया हो गई। अनिल अंबानी ने कई गलतियां हुई जिसकी वजह से कभी दुनिया का छठे नंबर के अमीर आदमी को इन हालात का सामना करना पड़ा।
वो गलतियां जिससे होता गया नुकसान
अनिल अंबानी करना काफी कुछ चाहते थे लेकिन सटीक प्लानिंग के बगैर कारोबार को आगे बढ़ाने की जल्दबाजी में नुकसान होता चला गया। बिना तैयारी के एक के बाद एक नए प्रोजेक्ट्स( New Projects) में पैसा लगाया लेकिन वो प्रोजेक्ट नुकसान में जाते चले गए। अनुमान से ज्यादा लागत आने के कारण भी कई जगह नुकसान झेलना पड़ा। जब प्रोजेक्ट पर ज्यादा पैसा लगा तो बंद भी नहीं कर सकते थे क्योंकि बाजार में साख थी तो लागत को पूरा करने के लिए कर्ज लेना पड़ा और कर्ज के जाल में फंस गए। एक कारोबार पर फोकस करने की जगह अलग जगहों अलग अलग प्रोजेक्ट्स की शुरुआत करने से पैसा अटकता चला गया। फैसले महत्वाकांक्षाओं के कारण लेने से कर्ज बढ़ता चला गया और 2008 की मंदी में सैटबैक लगा।