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सिफारिशों पर तबादलेः हिमाचल हाईकोर्ट हुआ सख्त, डीओ नोट पर स्थानांतरण मान्य नहीं
Last Updated on October 9, 2021 by Vishal Rana
शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट ने झंडूता विधानसभा क्षेत्र के विधायक जीत राम कटवाल की सिफारिश पर आधारित तबादला आदेश को गलत ठहराया है। हाईकोर्ट ने राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला दसलेहरा जिला बिलासपुर में तैनात टीजीटी प्रोमिला के तबादला आदेशों को रद्द कर दिया है। प्रार्थी के अनुसार विधायक की सिफारिश को आधार बनाकर निजी प्रतिवादी को एडजस्ट करने के उद्देश्य से उसे मौजूदा स्थान से राजकीय उच्च पाठशाला कुनेड़ जिला चंबा भेजा जा रहा है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने पाया कि स्थानांतरण आदेश विधायक द्वारा की गई सिफारिश के आधार पर किया गया है जबकि हाईकोर्ट द्वारा विभिन्न मामलों में पारित निर्णयों के दृष्टिगत डीओ नोट के आधार पर जारी स्थानांतरण आदेश कानूनन मान्य नहीं है।
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प्रार्थी का यह भी आरोप था कि उसका तबादला सरकार द्वारा स्थानांतरणों पर बैन लगाने के बावजूद किया गया है। न्यायालय ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन कर पाया कि विधायक ना केवल प्रार्थी के तबादले की सिफारिश की बल्कि कुल 15 कर्मचारियों के तबादलों की सिफारिशें की जिन्हें दुर्भाग्यपूर्ण कम्पिटेंट अथॉरिटी ने बिना प्रशासनिक विभागों की विवेचना के स्वीकार भी कर लिया गया। कोर्ट ने पाया कि यह स्थानांतरण आदेश पूरी तरह से राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते किये गए हैं। न्यायालय ने स्थानांतरण आदेशों को कानून के विपरीत ठहराते हुए रद्द कर दिया।
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पदाधिकारियों की सिफारिश पर तबादलों पर लिया कड़ा संज्ञान
हाइकोर्ट ने विद्युत बोर्ड के कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों की सिफारिश पर किए जा रहे तबादला आदेश को गैर कानूनी पाते हुए कड़ा संज्ञान लिया है। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्तिगत कर्मचारी, अधिकारी या मान्यता प्राप्त अथवा गैर-मान्यता प्राप्त संघ का पदाधिकारी किसी भी जबरदस्ती या डराने-धमकाने या अनुशासनहीन कृत्यों या व्यवहार में लिप्त होता है, तो नियोक्ता उसके खिलाफ हमेशा कानूनी तौर पर कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होता है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि बोर्ड, निगम या कोई अन्य संस्थान, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 और 226 के तहत ‘राज्य’ की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं, किसी भी व्यक्ति विशेष अथवा संघ या संगठन द्वारा की गई सिफारिशों पर विचार करने और निर्णय लेने के लिए बाध्य नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि अगर कर्मचारी संघ या यूनियन की सिफारिश संबंधी मामला कोर्ट के समक्ष आता है, जिसमें कर्मचारी की सहमति ना हो तो संघ या यूनियन को अन्य कार्रवाई के अलावा अयोग्य ठहरा दिया जाएगा। कोर्ट ने आदेश दिए कि कोर्ट की रजिस्ट्री इस आदेश की प्रति हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को सरकार के सभी विभागों, सभी बोर्डों, निगमों आदि को निर्देश जारी करने के लिए भेजे। न्यायालय ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सुशील कुमार के मामले में दिए गए निर्णय का कर्मचारी संघों या यूनियनों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है, क्योंकि वे खुले तौर पर गैर-सहमति तबादले के लिए सिफारिशें करना जारी रखे हुए हैं, जैसा कि उक्त मामले के तथ्यों से स्पष्ट है। न्यायालय ने हालांकि समय से पहले दायर उक्त याचिका को खारिज कर दिया।
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