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गणगौर व्रत आज, कैसे हुई थी शुरुआत; शुभ-मुहूर्त के साथ जानें सबकुछ
Last Updated on April 11, 2024 by Himachal Abhi Abhi
Gangaur Vrat 2024: गणगौर का पर्व हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। भगवान शिव (Shiv) और मां पार्वती (Maa Parvati) को समर्पित गणगौर एक हिंदू पर्व है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती है और पूजा करती हैं। इस दिन अविवाहित महिलाएं भी व्रत रख सकती हैं, ताकि उन्हें मनचाहा जीवनसाथी मिल सके। इस साल चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का प्रारंभ 10 अप्रैल को शाम 05 बजकर 32 मिनट से होगा और इसका समापन 11 अप्रैल को दोपहर 03 बजे होगा। ऐसे में गणगौर व्रत (Gangaur Vrat) 11 अप्रैल को किया जाएगा। गणगौर व्रत के दिन सुबह 06 बजकर 29 मिनट से लेकर 08 बजकर 24 मिनट तक पूजा करने का शुभ मुहूर्त है।
गणगौर व्रत कथा
पौराणिक कथा (Story) के अनुसार, एक समय की बात है जब भगवान शिव, माता पार्वती और नारद मुनि (Narad Muni) भ्रमण पर निकले। सभी एक गांव में पहुंचें। जब गांव वालों को इस बारे में पता लगा तो सभी महिलाएं तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाने की तैयारी में जुट गईं, ताकि प्रभु अच्छा भोजन ग्रहण कर सकें। वहीं, गरीब महिलाएं पहले ही उनके पास जो भी साधन थे उन्हें लेकर भगवान के पास पहुंच गई। मां पार्वती उनकी श्रद्धा से बहुत प्रसन्न हुई और महिलाओं पर सुहाग रस छिड़क दिया। कुछ ही देर बाद संपन्न परिवार की महिलाएं भी माता के पास पहुंची। अब मां पार्वती के पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा था, तो ऐसे में माता ने अपनी अंगुली चीर कर छींटों से उन महिलाओं को अपना आशीर्वाद दिया। इसी दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया का दिन था इसके बाद सभी महिलाएं घरों को लौट गई।
इसके उपरांत मां पर्वती ने नदी के तट पर स्नान किया और बालू से महादेव की मूर्ति बनाई और पूजा की। पूजा के बाद माता ने बालू के पकवान बनाकर ही शिव को भोग लगाया और प्रसाद ग्रहण किया। शिवजी तो सब जानते थे लेकिन फिर भी माता को छेड़ते हुए उन्होंने मां पार्वती से पूछा कि स्नान करने में बहुत देर लग गई? इसके जवाब में माता ने कहा कि उनके भाई और भावज ने दूध-भात बना रखा था उसी को खाकर आई हूं। फिर भोले नाथ भी दूध-भात खाने की जिद करने लगे तो ऐसे में माता ने खुद को फंसा हुआ महसूस किया।
इसके बाद नारद मुनि को साथ लेते हुए तीनों लोग नदी तट की तरफ चल दिये। वहां पहुंच कर देखा कि एक महल बना हुआ है। जहां पर खूब आवभगत हुई। इसके बाद जब वहां से तीनों लोग चलने लगे तो कुछ दूर चलकर भगवान शिव माता से बोले कि मैं अपनी माला आपके मायके में भूल आया हूं। माता पार्वती के कहने पर नारद जी वहां से माला लेने के लिए उस जगह दोबारा गए तो वहां पहुंचकर हैरान रह गए क्योंकि उस जगह चारों ओर कुछ भी नहीं था। तभी एक पेड़ पर उन्हें भगवान शिव की रूद्राक्ष की माला दिखाई दी उसे लेकर वे लौट आए और भगवान शिव को सारी बात बताई। तब भगवान शिव ने कहा कि यह सारी माया देवी पार्वती की थी। वे अपने पूजन को गुप्त रखना चाहती थी इसलिए उन्होंने झूठ बोला और अपने सत के बल पर यह माया रच दी।
इस बात को जानकर नारद जी ने देवी माता से कहा कि मां आप सौभाग्यवती और आदिशक्ति हैं। ऐसे में गुप्त रूप से की गई पूजा ही अधिक शक्तिशाली और सार्थक होती है। तभी से जो स्त्रियां इसी तरह गुप्त रूप से पूजन कर मंगल कामना करेंगी महादेव की कृपा से उनकी मनोकामनाएं जरूर पूरी होंगी। इसी काथा के कारण महिलाएं अपने व्रत को पति से छिपाकर करती है ताकि उन्हें पता ना चले।