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आज रात लगेगा उपच्छाया चंद्रग्रहण इन राशियों के लोग बरतें सावधानी
आज इस वर्ष का दूसरा चंद्रग्रहण लगेगा। भारत में यह चंद्रग्रहण रात में 11 बजकर 15 मिनट से शुरू होगा और 2 बजकर 34 मिनट पर खत्म होगा। इस ग्रहण काल के दौरान चंद्रमा वृश्चिक राशि में होंगे। इस लिए इस ग्रहण काल में मिथुन और कन्या राशि के लोगों को विशेष सावधानी बरतने की जरुरत है। आज लगने वाला चंद्र ग्रहण उपच्छाया ग्रहण है, इसलिए बहुत अधिक प्रभावशाली नहीं होता है, इस दौरान सूतक काल भी मान्य नहीं होता है। ग्रहण को एशिया, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के लोग देख पाएंगे। हालांकि ये उपच्छाया चंद्र ग्रहण होने के कारण सामान्य चांद और ग्रहण में अंतर कर पाना मुश्किल होगा। ग्रहण के समय चंद्रमा के आकार में कोई परिवर्तन नहीं आएगा। बल्कि इसकी छवि कुछ मलिन हो जाएगी। यानी चांद इस दौरान मटमैला सा दिखाई देगा।
उपच्छाया चंद्र ग्रहण का सूतक काल मान्य नहीं होता। क्योंकि इसे वास्तविक ग्रहण नहीं माना गया है। ज्योतिष में उसी ग्रहण को गंभीरता से लिया जाता है जिसे खुली आंखों से देखा जा सके।
समझें क्या होता है उपच्छाया चंद्र ग्रहण: —
चंद्रग्रहण एक खगोलीय घटना है। जो तब घटित होती है जब चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाता है। ऐसा तभी हो सकता है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा इस क्रम में लगभग एक सीधी रेखा में स्थित रहें। तो वहीं उपच्छाया चंद्र ग्रहण तब लगता है जब पृथ्वी की परिक्रमा करने के दौरान चंद्रमा पेनुम्ब्रा से हो कर गुजरता है। ये पृथ्वी की छाया का बाहरी भाग होता है। इस दौरान, चंद्रमा सामान्य से थोड़ा गहरा दिखाई देता है।
कुशा डालने की मान्यता
ग्रहण के दौरान निकलने वाली नकारात्मक ऊर्जा से बचाव के सभी उपाय किये जाते हैं, इन में कुशा शामिल है। ग्रहण काल में हर वस्तु में कुशा डालने की मान्यता है। कुशा एक प्रकार का घास होता है। सदियों से कुशा का इस्तेमाल पूजा के लिए किया जाता रहा है। इसलिए धार्मिक दृष्टि से कुश घास को पवित्र माना जाता है। लेकिन पूजा के अलावा भी औषधि के रुप में कुशा का अपना एक महत्व होता है शायद इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। मंदिरों से लेकर घरों तक हर वस्तु की शुद्धि के लिए तमाम साधन उपयोग में लाए जाते हैं। इन्हीं साधनों में सबसे अहम है कुशा का प्रयोग। कुशा का महत्व सनातन धर्म के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत अधिक है।
कुशा ऊर्जा का कुचालक है। इसीलिए सूर्य व चंद्रग्रहण के समय इसे भोजन और पानी में डाल दिया जाता है जिससे ग्रहण के समय पृथ्वी पर आने वाली किरणें कुश से टकराकर परावर्तित हो जाती हैंं। ऐसा करने से भोजन व पानी पर उन किरणों का विपरीत असर नहीं पड़ता।पंडित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं की इस दौरान व्यक्ति को कुशा का तिनका अपने शरीर से स्पर्श करते हुए भी रखना चाहिए। पुरुष अपने कान के ऊपर कुशा का तिनका लगा सकते हैं वहीं महिलाएं अपनी चोटी में इसे धारण करके रखें। कुशा की पवित्री उन लोगों को जरूर धारण करनी चाहिए, जिनकी राशि पर ग्रहण पड़ रहा है।
कुश या कुशा से बने आसन पर बैठकर तप, ध्यान और पूजन आदि धार्मिक कर्म-कांडों से प्राप्त ऊर्जा धरती में नहीं जा पाती क्योंकि धरती व शरीर के बीच कुश का आसन कुचालक का कार्य करता है। पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की अध्यात्म और कर्मकांड शास्त्र में प्रमुख रूप से काम आने वाली वनस्पतियों में कुशा का प्रमुख स्थान है। जिस प्रकार अमृतपान के कारण केतु को अमरत्व का वर मिला है, उसी प्रकार कुशा भी अमृत तत्व से युक्त है। यह पौधा पृथ्वी का पौधा न होकर अंतरिक्ष से उत्पन्न माना गया है। मान्यता है कि जब सीता जी पृथ्वी में समाई थीं तो राम जी ने जल्दी से दौड़ कर उन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु उनके हाथ में केवल सीता जी के केश ही आ पाए। ये केश राशि ही कुशा के रूप में परिणत हो गई। केतु शांति विधानों में कुशा की मुद्रिका और कुशा की आहूतियां विशेष रूप से दी जाती हैं। रात्रि में जल में भिगो कर रखी कुशा के जल का प्रयोग कलश स्थापना में सभी पूजा में देवताओं के अभिषेक, प्राण प्रतिष्ठा, प्रायश्चित कर्म, दशविध स्नान आदि में किया जाता है।